जिला पंचायत अध्यक्ष पद सामान्य होने से सियासी हलचलें बढ़ीं, कई दिग्गज घराने उतरेंगे मैदान में
आधा दर्जन सियासी घरानों के लोगों सहित कई बड़े सूरमाओं ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए कसी कमर
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिला पंचायत अध्यक्ष सिद्धार्थनगर का पद अनारक्षित होने के कारण सियासी हलचलें पूर्व की अपेक्षा काफी तेज हो गई हैं। अनारक्षित सीट होने के कारण इस पर कब्जे को लेकर सवर्ण व प्रभावशाली तबके के लोगों की दावेदारी अरसे बाद ऊफान मारने लगी है। कुछ पिछड़े वर्ग के लोग भी अनारक्षण का लाभ पुनः लेने के लिए ताकतवर तबके से दो दो हाथ करने के लिए अपने मोर्चे मजबूत करने में लग गये हैं। इस कारण यहां समय से पहले ही चुनावी माहौल बनता दिख रहा है।
जिले में कुल 45 जिला पंचायत क्षेत्र हैं। इनमें राजनीतिक गतिविधियां काफी जोरों पर हैं। जिला पंचायत सदस्य के भावी उम्मीदवार नुक्कड़ों और गंवई चायघरों पर बैठ कर सियासी किस्सागोई में मशगूल हो चुके हैं। पैसे वाले लोग अपने वाहनों पर उम्मीदवारी से सम्बंधित स्टिकर, पोस्टर लगा कर चलना शुरू कर दिये हैं। हालांकि कि अभी सदस्य क्षेत्र का आरक्षण घोषित नहीं हुआ है।
समर्थन के लिए अभी से जोड़-तोड़
इन भावी उम्मीदवारों की सक्रियता यों ही नहीं है। इसके पीछे जिला पंचायत अध्यक्ष का सपना देखने वाले लोगों का सपोर्ट है। दरअसल अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की मंशा रखाने वाले कई धनाढ्य व प्रभावशाली लोग अभी से हर क्षेत्र से सदस्य पद का चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को आथिर्क मदद कर रहे हैं। उनका मानना है कि कोई भी जीतेगा तो उससे अध्यक्ष पद के लिए समर्थन लेना आसान हो जाएगा।
भावी उम्मीदवारों को अभी से मदद
इस जिला पंचायत में कुल 45 सदस्य चुने जाने हैं। इस लिहाज से अध्यक्ष पद के कई दावेदार एक एक क्षेत्र के कम से कम तीन तीन मजबूत दावेदारों को अभी से मदद करना शुरू कर चुके हैं। यह मदद केवल चुनावी प्रचार के लिए ही नहीं बल्कि उनके घरों के शादी-ब्याह, बच्चों की फीस दवा आदि के लिए भी हो रही है।ऐसा वे जिला पंचायत का कई सौ करोड़ रुपये के विकास कार्यों में मिलने वाली कमीशन की रकम के मद्देनजर कर रहे हैं।
चुनाव पूर्व ही कमा लेने की जुगत
एक पूर्व जिला पंचायत सदस्य बताते हैं कि यही कमाने का समय है। जिला पंचायत के गठन के बाद दसे पूछने वाला कोई नहीं रहता। कभी कभी तो उसके क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों का कमीशन भी नहीं मिलता है। वे जिला पंचायत के पिछले कार्यकाल का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि पिछली बार सपा नेता गरीब दास चुने गये। अभी कुछ काम शुरु हुआ था कि भाजपा सरकार में आ गई। उसके बाद विवाद इतना बढ़ा कि सदस्यों के हाथ कुछ न लग पाया।
इस बार हो सकता है सबसे महंगा चुनाव
फिलहाल जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए सदस्य का चुनाव जीतना जरूरी होता है। इस नजरिये से देखा जाए तो कम से कम आधा दर्जन राजनीतिक घरानों के लोग चुनावी कमर कसे हुए हैं। क्योंकि आरक्षण के नाते निरंतर कई सालों से यहां सवर्ण तबके को इस पद के लिए मौका ही नहीं मिल पाया है। बताया जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के लिए बांसी क्षेत्र के एक अरबपति कान्ट्रैक्टर भी चुनाव में उतरने का मन बना रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह चुनाव धन के लिहाज से अब तक का सबसे महंगा जिला पंचायत चुनाव होगा।