ऐसे काम करता है डॉक्टर, दवा विक्रेता और दलालों का नेटवर्क
“उत्तर प्रदेश का सिद्धार्थनगर ज़िला सूबे के पिछड़े जनपदों में शुमार है। इसकी बेहतरी के लिए सरकार ने 1995 में अत्याधुनिक सुविधाओं वाला ज़िला अस्पताल शुरू किया था। इस उम्मीद के साथ कि ग़रीब मरीज़ों को मुफ़्त इलाज सेवा मिलेगी। मगर अस्पताल में जड़ कर चुके डॉक्टरों-दलालों के मज़बूत नेटवर्क ने इसपर पानी फेर दिया है। यहां सक्रिय दलाल ग़रीबी मरीज़ों की जेब काटने के लिए किसी भी हद तक जाने को आमादा रहते हैं। आइए समझते हैं कि कैसे ज़िला अस्पताल के डॉक्टर, दवा विक्रेता और दलाल ग़रीब मरीज़ों का खून चूस रहे हैं।”
ज़िला अस्पताल पर मरीज़ों की आवाजाही सुबह 8 बजे से शुरू होती है। इन्हीं के साथ दलाल भी अस्पताल में प्रवेश करते हैं। मरीज़ पर्ची कटवाने के लिए खिड़की के पास लाइन में लगता है। दलाल भी इनके आगे-पीछे खड़े रहते हैं। मरीज़ के साथ-साथ दलाल भी खिड़की से अपने नाम की पर्ची कटवाते हैं। फिर मरीज़ के पीछे-पीछे डॉक्टर के चेंबर के बाहर खड़े हो जाते हैं।
चेंबर में बैठा डॉक्टर मरीज़ को देखने के बाद दवा की एक पर्ची थमाता है। जैसे ही मरीज़ बाहर निकलता है, बाहर खड़ा दलाल उसकी पर्ची ले लेता है। फिर वह सीधे अस्पताल के ठीक पीछे पहुंचता है जहां दवा की दर्जनों दुकानें खुली हुई हैं। दलाल मरीज़ और उनकी पर्ची के साथ इन दुकानों पर पहुंचा देते हैं। इसके बाद दूसरे मरीज़ की तलाश में वापस अस्पताल पहुंच जाते हैं। यह सिलसिला सुबह से लेकर शाम पांच बजे तक जारी रहता है।
शाम के वक्त दलाल अपने-अपने मरीज़ों का लेखा-जोखा दवा विक्रेताओं के सामने रखते हैं और अपने हिस्से की रकम लेकर कट लेते हैं। इन्हीं दवा विक्रेताओं की तरफ से एक हिस्सा उन डॉक्टरों को भी जता है जो पर्दे के पीछे रहकर इनके रैकेट का हिस्सा बने हुए हैं।
हर दिन ज़िला अस्पताल के डॉक्टर और दलाल इस तरह सैकड़ों रुपए कमाई अवैध तरीके से कर रहे हैं। यहां यह बताना ज़रूरी है कि मरीज़ के साथ-साथ दलाल भी खिड़की से पर्ची इसलिए कटवाता है ताकि छापा पड़ने की स्थिति में वह पर्ची दिखाकर यह साबित कर सके कि वह दलाल नहीं मरीज़ है।
ये दलाल ज़िला अस्पताल के आसपास बने गांवों में रहने वाले अशिक्षित और बेरोज़गार युवा हैं। सभी दलाल डॉक्टर के चेंबर से लेकर इमरजेंसी के बाहर हर वक्त खड़े मिलते हैं। अस्पताल के विश्वसनीय सूत्रों का दावा है कि चेहरे से हर डॉक्टर हर दलाल को पहचानता है। मगर इस अवैध कमाई का हिस्सा उन्हें भी जाता है, इसलिए कभी आपत्ति नहीं जताते।