EXCLUSIVE: नेपाल में समानांतर ‘मधेस सरकार’ का गठन, संविधान की घोषणा टली
नज़ीर मलिक
“संविधान के मौजूदा ड्राफ्ट का विरोध कर रहे संयुक्त मधेसी मोर्चा के उग्र धड़े ने नेपाल में समानान्तर सरकार की घोषणा कर दी है। नेपाल की प्रभुसत्ता को चुनौती देते हुए उग्र धड़े ने इसे मधेस सरकार का नाम दिया है। साथ ही, यह चेतावनी भी जारी की गई है कि अगर मधेसियों की मांगों पर अमल नहीं किया गया तो नेपाली सेना की तर्ज़ पर मधेसी सेना का गठन भी किया जा सकता है। इस नए संकट की वजह से नेपाल सरकार ने संविधान की घोषणा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी है।”
प्रस्तावित संविधान में अपनी मांग शामिल करवाने के लिए मधेसी संगठनों ने एक सप्ताह से तराई इलाक़े में हड़ताल कर रखा था। जिसकी वजह से यहां जनजीवन असमान्य था। मगर अब कानून-व्यवस्था चरमराने के कारण यहां हिंसा का ख़तरा पैदा हो गया है।
मधेस सरकार का एलान 19 दलों के गठबंधन वाले संयुक्त मधेसी मोर्चा के एक नेता दीपक पांडेय ने किया है। मधेस सरकार के सैकड़ों समर्थकों ने गुरुवार की शाम कपिलवस्तु ज़िला मुख्यालय के महेंद्र गेट पर मधेस सरकार का बैनर भी टांग दिया है। महेंद्र गेट कपिलवस्तु के कलेक्टर ऑफिस से महज़ चंद कदम की दूरी पर है।
बाग़ी नेता दीपक पांडेय नेपाल में मधेसियों के सबसे बड़े राजनीतिक दल मधेसी जनाधिकार फोरम के सचिव हैं। महेंद्र गेट पर बैनर टांगने के बाद मधेसी यानी भारतीय मूल के नेपालियों ने वहां नई मधेस सरकार के समर्थन में नारे लगाए। यहां दीपक पांडेय ने पहाड़ी नेताओं के भेदभाव की चर्चा करते हुए एलान किया कि अगर मधेसियों को स्वायत्त प्रदेश नहीं दिया गया तो वह जल्द ही मधेस आर्मी का भी गठन करेंगे।
दीपक पांडेय की इस घोषणा के बाद नेपाली नागरिकों में सिहरन दौड़ गई है। 1995 से 2007 तक माओवादी आंदोलन के दौरान हुए रक्तपात की याद एक बार फिर इनके ज़ेहन में ताज़ा हो गई है। माओवादियों की सशस्त्र क्रांति के दौरान नेपाल में 20 हज़ार से अधिक नेपालियों की हत्या हुई थी।
मधेस सरकार की नई घोषणा से पहाड़ी और तराई नागरिकों के बीच तनाव बढ़ गया है। मुमकिन है कि इन हालात में नेपाल नस्लीय हिंसा की ज्वाला से फिर घिर जाए। हालांकि मधेसी मोर्चा के नेता सांसद अभिषेक शाह, पूर्व मंत्री बृजेश गुप्ता जैसे ज़िम्मेदार नेता नेपाल के विभाजन के दावे को खारिज करते हैं मगर सच्चाई यह भी है कि उग्र धड़ा इन नेताओं के काबू में नहीं है। वहीं दूसरी तरफ नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री कॉमरेड प्रचंड और सीनियर लीडर बाबूराम भटृटराई का कहना है कि संविधान घोषणा के बाद उसमें विचार विमर्श और संशोधन की गुंजाइश रखी गई है।
नेपाल की कुल जनसंख्या लगभग चार करोड़ है जिसमें तकरीबन डेढ़ करोड़ नागरिक भारतीय मूल के हैं। नेपाल में इन्हें मधेसी कहा जाता है। इनका प्रतिनिधित्व करने वाले सभी मधेसी दलों की मांग है कि नेपाल में प्रांतों के सीमांकन को बदल कर अलग से एक स्वायत्त मधेस प्रांत का गठन किया जाए। इन दलों का आरोप है कि सीमांकन में नेपाली सरकार ने जानबूझकर गड़बड़ी की है और हर ज़िले में पहाडी मूल का प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश में जुटी है।
ज़ाहिर है कि ऐसा करने पर पहाड़ी और भारतीय मूल के नेपालियों में टकराव की आशंका बढ़ गई है। इन्हीं आशंकाओं को टालने के लिए मधेस समर्थक सभी 19 राजनीतिक दलों ने गठबंधन कर संयुक्त मधेसी मोर्चा बनाया है और बीते एक सप्ताह से नेपाल में आंदोलन छेड़ रखा है।
लगातार जारी इस आंदोलन की वजह से नेपाल में हज़ारों सैलानी प्रभुनाथ, बुटवल, स्यांगजा, नारायण घाट जैसे इलाक़ों में फंसे हुए हैं। सब्ज़ी, नमक जैसी रोज़मर्रा की खाद्य सामग्री का भी यहां संकट पैदा हो गया है।