पंचायत चुनावःतो अब नेता के परिवार से ही निकलेगा नेता, कार्यकर्ताओं की कोई औकात नहीं
नजीर मलिक
मौजूदा जिला और क्षेत्र पंचायत के चुनाव में एक बार फिर परिवारवाद का जादू सर पे चढ़ कर बोला है। इससे तमाम दलों के कार्यकर्ताओं में हताशा है। उन्होंने मान लिया है, कि नई सियासी व्यवस्था में वर्कर का कोई वजूद नहीं। इससे लगता है कि निकट भविष्य में पार्टी से वर्करों का पलायन तेजी से होने जा रहा है।
हाल में हुए पंचायत चुनावों के विश्लेषण से कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। इस बार के चुनाव में बड़े नेताओं ने या तो अपने परिजनों को चुनाव लड़ाया या फिर अपनी विरुदावलि गाने वालों को। खांटी कार्यकर्ता बेचारा तरसता रह गया। इससे उनमें बेहद गुस्सा है, जिसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।
इस चुनाव में परिवार और रासोवाद का सबसे बड़ा उदाहरण सरकारी पार्टी में दिखा। कपिलवस्तु के विधायक व सपा नेता ने अपनी पत्नी मंजू पासवान, भाभी पियारी देवी, भाई रामलाल पासवान और एक अन्य रिश्तेदार को जिला पंचायत के चुनाव में उतारा, तो बांसी के पूर्व विधायक लालजी यादव नेे अपनी पत्नी नीलम यादव को मैदान में उतार दिया।
डुमरियागंज विधान सभा से चुनाव लड़ने वाले राम कुमार उर्फ चिनकू यादव ने जिला पंचायत चुनाव में अपनी पत्नी पूजा, भाई छोटे यादव ही नही अपने वाहन चालक गरीब दास तक को मैदान में उतार दिया।
इसके अलावा सपा जिलाध्यक्ष झिनकू चौधरी ने अपने सबे भाई राम सिंह को चुनाव लड़ाया तो महिला आयोग की सदस्य जुबैदा चौधरी खुद मैदान में उतरीं और दूसरी मेंबर इन्द्रासना त्रिपाठी ने अपने बेटे अमित विारी को अखाड़े में उतारा।
भाजपा भी इससे अछूती नहीं रही। भाजपा के जिला अध्यक्ष नरेंन्द्र मणि ने अपने बेटे शक्ति त्रिपाठी को, पूर्व सांसद रामपाल सिंह ने बहू सुजाता सिंह को और इटवा से चुनाव लड़ाने वाले हरिशंकर सिंह ने अपनी अनुज बहू पुष्पा सिंह को चुनाव लड़ाया। भाजयुमो जिलाध्यक्ष ने अपनी पत्नी वंदना पासवान को लड़ाया।
बसपा में दिग्गज नेता सैयादा मलिक ने अपने दोनो चाचा को तो पूर्व जिलाध्यक्ष पीआर आजाद ने अपनी पत्नी को चुनाव लडद्याया तो वर्तमान अध्यक्ष दिनेश गौतम खुद लड़ गये। हालांकि चारों ही चुनाव हार गये।
नेताओं में बढ़ते इस परिवारवाद से कार्यकर्ता बेहद हताश हैं। सपा के एक कार्यकर्ता का कहना है कि हम लोग सड़कों पर लाठियां खाते हैं और चुनाव के मौसम में नेता अपने परिवार को फिट कर देते हैं। ऐसे में अब पार्टी के लिए कौन कार्यकर्ता लड़ना चाहेगा।
भाजपा के एक नेता का कहना है कि अगर कार्यकर्ता को वक्त पर उसका हक न मिले तो क्या फायदा। उसने कहा कि आजाद रहेगा तो चुनावों में किसी से दस पांच हजार लेकर प्रचार करेंगा। अब इन नेताओं के साथ रहना बेकार है। जाहिर है कि अब नेता के खिलाफ वर्कर बगावत के मूड में दिख रहे हैं।