भविष्य में सशस्त्र संघर्ष से इंकार नहीं : प्रचंड

August 4, 2015 3:38 PM0 commentsViews: 355
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नेपाल अब एprachandक नए संविधान को अंतिम रूप देने के करीब है। देश की चार बड़ी पार्टियां नेपाली कांग्रेस, सीपीएन-यूएमएल, यूसीपीएन-माओवादी और मधेशी पीपुल्स फोरम डेमोक्रेटिक संविधान निर्माण के विवादास्पद मुद्दे को सुलझाने के लिए 16 सूत्री समझौते पर पहुंची हैं। संविधान का पहला मसौदा पिछले हफ्ते संविधान सभा में पेश तो किया गया, लेकिन मसौदे को लेकर कई आशंकाएं भी हैं। सबसे बड़ी आशंका दलितों, पिछड़ों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकारों को लेकर है। इन्हीं तमाम मसलों पर अभिषेक रंजन सिंह ने भारत की यात्रा पर आए नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और एकीकृत नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड से ख़ास बातचीत की।

नेपाल के नए संविधान निर्माण में आपकी भारत यात्रा कितनी महत्वपूर्ण है ?

कई वर्षों के राजनीतिक मतांतर के बाद नेपाल में नए संविधान बनने का रास्ता साफ़ हो गया है। भारत सरकार के आमंत्रण पर मैं नई दिल्ली आया हूं. इस संबंध में मैंने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और गृह मंत्री से भी मुलाक़ात की. हमारी यह यात्रा भारत और नेपाल के बीच आपसी सहयोग और संबंधों के लिहाज से काफ़ी अहम है.

 नए संविधान में जनजातियों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के हितों से जुड़ीं क्या-क्या बातें होंगी ?

नया संविधान नेपाली जनता को बेहतर भविष्य देगा। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के सशक्तिकरण पर हमारा काफ़ी जोर है। नए संविधान में ग़ैर-बराबरी ख़त्म करने के कई प्रावधान होंगे।

आपसी व वैचारिक मतभेदों की वजह से नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियां कई धड़ों में बंट चुकी हैं। इस विघटन पर आपकी क्या सोच है ?

राजशाही के ख़ात्मे के लिए हमने एक दशक तक सशस्त्र संघर्ष किया। राजशाही समाप्त होने के बाद क्या माओवादियों को सक्रिय राजनीति या डेमोक्रेटिक सिस्टम में आना चाहिए?  यह हमारे लिए एक बड़ा प्रश्न था। वैसे, मार्क्सवाद सैद्धांतिक रूप से हमें यह छूट देता है कि हम संसदीय राजनीति का हिस्सा बनें। जहां तक कम्युनिस्ट पार्टियों के विघटन का सवाल है, मेरा मानना है कि नेपाल में माओ-त्से-तुंग की विचारधारा पर विश्वास रखने वाली कम्युनिस्ट पार्टियों को एक मंच पर आना चाहिए। हालांकि, मैं इस दिशा में प्रयासरत हूं कि आने वाले समय में नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों में आपसी एकता बने।

 क्या नेपाल की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से आप संतुष्ट हैं ?

सशस्त्र क्रांति का युग समाप्त होने के बाद अब नेपाल में नई क्रांति का दौर शुरू हुआ है। इसे आप समाजवादी क्रांति भी कह सकते हैं। पहले हमारा संघर्ष नेपाल में सामंतवाद और विदेशी हस्तक्षेप के विरूद्ध था, लेकिन अब हम नेपाल को उस दौर में ले जाना चाहते हैं, जहां शोषण और असमानता जैसी समस्याएं न हों। इसलिए अब हम सोशलिस्ट रेवोल्यूशन पर ज़ोर दे रहे हैं। यह रेवोल्यूशनरी प्रोसेस सिर्फ सदन तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह हर शहर, हर गांव और सड़कों पर भी दिखाई देगा। जब हम समाजवादी क्रांति की बात करते हैं तो, इसका आशय है असमानता, दलाल पूंजीपतियों और नौकरशाही का ख़ात्मा। संसदीय राजनीति में आने का मतलब यह नहीं है कि हम उसकी ख़ामियों को नज़रअंदाज़ करते रहें। एक सच्चा कम्युनिस्ट होने के नाते मेरा यह मानना है कि समाजवादी क्रांति बल प्रयोग से ही संभव है।

नेपाल में भूमि सुधार शुरू ही नहीं हुआ तो वहां सामंतवाद कैसे खत़्म किया जा सकता है ?

राजशाही के खात्मे के बाद भूमि सुधार क़ानून बनाने की आवश्यकता महसूस हुई। इस दिशा में सबसे पहले राजा ज्ञानेंद्र के ‘नारायण हिती’ महल समेत कई महलों को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया गया। उसके बाद बड़े-बड़े ज़मींदारों और जागीरदारों को चिन्हित किया गया। ऊपरी नेपाल के ज़िलों के कई बड़े ज़मींदार माओवादी सशस्त्र संघर्ष के दौरान अपनी संपत्ति छोड़कर शहरों में बस गए। बाद में उनकी ज़मीनों पर भूमिहीन किसान दख़लकार हो गए। भूमि सुधार संबंधी कई प्रस्तावों का जिक्र नए संविधान के मसौदे में है। नेपाल में अब पहले जैसी स्थिति नहीं है। यहां बड़े ज़मींदार लगभग नगण्य हैं। फिलहाल नेपाल में सीलिंग एक्ट नहीं है, लेकिन भूमि सुधार के लिए इस दिशा में एक ठोस क़ानून बनाने की ज़रूरत है।

भारत-नेपाल मैत्री समझौता-1950 की समीक्षा पर क्या आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चर्चा करेंगे ?

नेपाल में राणाशाही के समय हुए इस समझौते की समीक्षा की मांग सिर्फ प्रचंड की नहीं है, बल्कि नेपाली जनता भी यही चाहती है। छह दशक पहले हुए इस समझौते को नए रूप से परिभाषित करने में कोई बुराई नहीं है। प्रधानमंत्री बनने के बाद जब मैं पहली बार दिल्ली आया था, उस वक्त भी तत्कालीन भारत सरकार से इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। भारत सरकार के साथ संयुक्त बयान के दौरान भी मैंने इस संबंध में बयान दिया था। मेरी इस भारत यात्रा के दौरान नेपाल में बन रहे नए संविधान के मसौदे पर ही फोकस होगा।

नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए वहां की कई पार्टियां और संगठन प्रयास कर रहे हैं। क्या यह संभव है ?

राजा समर्थक पार्टी की अगुवाई कर रहे कमल थापा और नेपाली कांग्रेस नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की वकालत कर रहे हैं। परोक्ष रूप से यूएमएल भी इस मांग में शामिल है, लेकिन यह कतई संभव नहीं है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों के रहते यह मुमकिन नहीं है। दुनिया के ज्यादातर लोकतांत्रिक देश संवैधानिक रूप से धर्म निरपेक्ष हैं। हालांकि, नए संविधान के मसौदे में प्रलोभन देकर या जबरन धर्म परिवर्तन कराने संबंधी कृत्य को अपराध माना गया है। इसके लिए कठोर दंड के प्रावधान तय किए गए हैं।

 

 

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