मानव तस्कर और बलात्कारी के लिए काम कर रही है सिद्धार्थनगर पुलिस
नजीर मलिक
“उत्तर प्रदेश में जंगलराज का सबसे सटीक उदाहरण सिद्धार्थनगर पुलिस हेडक्वार्टर है। पुलिस नहीं जानती कि दो साल तक रेप का शिकार हुई नाबालिग की सही उम्र क्या है। पुलिस ने यह तथ्य जानने की कोशिश भी नहीं की। उसने पीड़िता का मेडिकल कराए बगैर महज संदेह के आधार पर दोनों आरोपियों को छोड़ दिया जिनपर मानव तस्करी और बलात्कार का आरोप है।”
नाबालिग ने 5 अगस्त को सिद्धार्थनगर पुलिस के त्रिलोकपुर थाने पहुंचकर पूरी वारदात का ब्यौरा दिया था लेकिन उसके साथ न्याय नहीं किया गया। कपिलवस्तु पोस्ट से हुई बातचीत में थानाध्यक्ष ओमप्रकाश चौबे ने कहा कि उन्हें लड़की की उम्र पर संदेह है। लिहाज़ा, आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई का कोई आधार नहीं बनता। दिलचस्प यह कि थानाध्यक्ष ओमप्रकाश चौबे ने महज संदेह के आधार पर यह बयान दे दिया। पीड़िता की शिकायत मिलने के बाद उन्होंने ना तो उसे मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा और ना ही इस केस में दिलचस्पी दिखाई।
पीड़ित नाबालिग इटवा के महादेव नंगा की रहने वाली है। यह गांव उत्तर प्रदेश विधानसभा स्पीकर माता प्रसाद पांडेय के विधानसभा क्षेत्र में आता है। यह गौर करने वाली बात है कि जब एक दिग्गज समाजवादी नेता के विधानसभा क्षेत्र में कानून व्यवस्था का यह आलम है तो ज़िले के दूसरे इलाकों का क्या होगा।
बहरहाल, पीड़िता इंसाफ के लिए दर-दर भटक रही है। उसे या फिर उसके लाचार पिता को समझ नहीं आ रहा कि वे इंसाफ के लिए किसकी चौखट पर गुहार लगाएं। नए-नवेले पुलिस कप्तान अजय कुमार साहनी भी इस सनसनीखेज वारदात पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं। अभी तक उन्होंने इस केस में कोई भी बयान जारी कर अपना स्टैंड साफ नहीं किया है। सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या इस केस में कार्रवाई इसलिए नहीं हो रही क्योंकि पीड़िता अल्पसंख्यक समुदाय से है।