डीएम साहबǃ पत्नियों के जेवर लाये हैं, नायब साहब को दिला कर जमीन की पैमाइश करा दीजिए
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियांगज तहसील हेडक्वार्टर पर दर्जनों फरियादी डीएम से याचना कर रहे थे कि सहब हम अपने वीवी बच्चों के जेवर लेकर आये हैं। नायब तहसीलदार साहब से कहिए कि उन्हें ले लें, मगर हम गरीबों की विवादित जमीन की पैमाइश करें। अब और भटकने की ताकत हममें नहीं रह गई है।
जिलाधिकारी कुणाल सिलकू के नौकरी के जीवन में शायद सह पहला वाकया था, जिसमें फरियादी इस तीह घूस देने के लिए फरियाद कर रहे थे। उन्होंने पूरी बात सुना और काम का अश्वासन भी दिया, लेकिन तहसील दिवस खतम हुआ तो उन फरियादियों की पीड़ा को भूल गये अफसर। फरियादी भी मन मसोस कर कर अपने घर चले गये।
डुमरियागंज तहसील परिसर में कल माली मैनहां गांव के कई दर्जन ग्रामीण जुटे हुए थे। उनके हाथें में उनकी औरतों की चांदी की पायलें लहरा रहीं थीं। ग्ररमीण इजहार, हरिश्चन्द्र, शहंशाह, मो. अली, कासिम भानु आदि डीएम को पता रहे थे कि उनके गांव के 42 लोगों को जमीन का पट्टा मिला हुआ है। पैमाइश कर उसे अलग करने के लिए नायब तहसीलदार लालता प्रसाद उनसे पांच पांच हजार रुपया रिश्वत मांग रहे हैं।
ग्रामीणों के मुताबिक आज आपके आने की खबर सुन कर वे अपनी बीबियों की चांदी की पायलें लाये हैं। डीएम साहब इसे बिकवा कर नायब साहब को पैसा दिला दीजिए और हमारा काम करा दीजिए। डीएम कुणाल सिलकू ने मामले को जानना चाहा तो एनटी लालता प्रसाद ने कहा कि यह झूठ है। उन्हें फंसाया जा रहा है। एसडीएम राजेन्द्र प्रसाद ने जमीन के मुकदमें में होने की बात कही। डीएम ने मामले को देखने का अश्वासन दिया और मामला खत्म।
सवाल है कि जमीन विवादित है तो एसडीएम साहब उस बारे में फैसला क्यों नहीं करते। पट्टा सम्बंधी विवाद तो पत्रावली देख कर हल किया जा सकता है। अगर मामला पैमाइश का है तो क्यों नहीं की जाती। इसका जवाब कोई नहीं देता। तहसील में यह बात उठी, बड़े अफसर कुब मिनट के लिए नाराज हुए फिर मामला खत्म। बस यही है तहसील दिवस का सच। जनता जाये भाड़ में। उसे रिश्वत तो देनी ही पड़ेगी।