Exclusive- सैलाब में डूबता ज़िला: बचाने को नाव नहीं, ज़िम्मेदार मोटरबोटों पर पिकनिक मना रहे
नज़ीर मलिक
सिद्धार्थनगर। कल यानी रविवार का दिन। समय 11 बजे का है। जोगिया कोतवाली के पास दो मोटरबोट पर ज़िले के दो आला अफसरों का परिवार है। दोनों परिवार अभी सैलाब में पिकनिक मना कर वापस लौटा है। उनके आगे पीछे पुलिस का अमला लगा हुआ है। दोनों परिवार बोट से उतरते है औऱ गाड़ियों में बैठ कर मिला मुख्यालय रवाना हो जाते हैं।
बोट खाली होते ही वहां वहां उदास कड़ी आधा दर्जन औरतों की उम्मीद जागती है। वे महिलाये वहां खड़े दारोगा जी से कहती है कि वे टेडिया बाजार की रहने वाली हैं। घर पर बच्चों को छोड़ कर किसी तरह यहाँ खाने पीने का सामान लेने आई थी, मगर वापस नहीं हो पा रहीं है। महिलाये रुआंसी होकर कहती हैं के कल से बच्चे घर पर भूखे बैठे होंगे। साहब हमें टेडिया तक पहुँचा दो, बड़ी कृपा होगी। नायाब दारोगा जी उंन्हें हिकारत की नज़र से देखते हैं और साहब के परिजनों को अंतिम सलाम करने चले जाते हैं। महिलाये वही सड़क पर बैठ कर सिसकने लगती हैं।
जनाब ये है सिद्धार्थनगर के बाढ़ पीड़ितों की मदद का अंदाज़। पूरा ज़िला सैलाब की चपेट में है और सक्षम लोग उनकी मदद के बजाये सैर सपाटा व् पिकनिक मन रहे है हैं। ज़िले में एक दर्जन मोटर बोटों में किसी पर बैठ कर अफसर उफनती दरिया का नज़ारा देख रहे हैं तो किसी को सत्ताधारी दल के नेता ने कब्ज़ा कर लिया है है और वह उसपर बैठ कर क्षेत्र में अपने ख़ास लोगो को दर्शन द्दे रहा है।
मज़े की बात है कि इस बहती गंगा में मीडिया भी हाथ साफ कर रहा है। वो भी मोटर बोटों में बैठे अपनी तस्वीर फेसबुक पर अपडेट कर अपना वजन बढ़ाने में लगा है। उसकी जीरो ग्राउंड की रिपोर्ट कहाँ छपी या किस चैनल पर दिखी, ये कोई नहीं बता सकता।
हेलीकाप्टर से रसद बाँटने के लिए डिस्पैचर की ज़रूरत होती है। इसके लिए आम तौर पर कर्मचारी जाते हैं। लेकिन ज़िले के एक एसएमआई को हेलीकाप्टर में बैठने की चाह इतनी थी की वो डिस्पैचर बन गए। नतीजा जो काम डिस्पैचर का था, वो वायुसेना के जवानों को करना पड़ा। दरसल ये सैलाब अगर ज़िले के गरीब तबके के लिये मौत का फरमान है तो ताक़तवर लोगो के लिए पिकनिक का मौसम।
कटान का निरीक्षण करते ज़िलाधिकारी और एसपी सिद्धार्थनगर
कलक्टर साहब सुधार कीजिये
ज़िले के तमाम राजनीतिज्ञों ने डीएम से क्षेत्र भ्रमण के नाम पर पिकनिक मनाने की हरकतों पर रोक लगाने की मांग की है। पूर्व मंत्री कमाल युसूफ का कहना है कि संकट की इस घड़ी में प्रशासन को ज़िम्मीदारी से कम लेना चाहिए। बताते चलें कि क्षेत्र के भाजपा सांसद भी राहत बचाव के लिए प्रशासन की सार्वजनिक रूप से निंदा कर चुके हैं। आम ख्याल है कि ज़िले में “रोम जल रहा” की तर्ज़ पर “सिद्दार्थनगर जल रहा औऱ ज़िम्मेदार पिकनिक मना रहे” की कहानी चल रही