नज़रियाः कटियार जी! तो भगा दो मुसलमानों को, फोड़ दो मादरे वतन की एक आंख।
नज़ीर मलिक
मुसलमानों को इस देश से बाहर भेजने की ताजा मांग विनय कटियार ने उठाई है। कई लोग इसका विरोध कर रहे हैं, मगर मैं जाना चाहूंगा। कटियार जी सारा मुसलमान चला जावेगा। वह अपने माल असबाब की गठरी भी साथ ले जाएगा। कटियार जी वह जाएगा तो उसके साथ उसकी गठरी में हिंदवी ज़ुबान भी जाएगी, जिसके बिना आप् एक वाक्य भी नही बोल सकते। गठरी में इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा भी होगा, रसखान और रहीम के दोहे भी होंन्गे। फ़िराक़ का गुलों नगमा और जायसी की पद्मावत भी साथ जाएगी।
वो जाएगा तो लालकिला भी जाएगा, गुलांब का फूल भी जाएगा, भदोही के शानदार कालीन भी जाएंगे, यहां तक कि आपकी राष्ट्रीय ड्रेस शेरवानी चली जायेगी और जो कुर्ता, पजामा पहन आप संसद विधान सभाओं में दहाड़ते हो न,वो भी चला जायेगा। ये सब तो है हमारी ही है न?
क्या क्या दे सकोगे कटियार साहब? मुसलमान स्व. रफी साहब का भजन “मन तड़पत हरि दर्शन को आज” खुसरो की छाप तिलक जैसे बोल भी साथ ले के जाएंगे।यहां तक कि ये जो आपके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नाम में ये जो शाह नाम की टाइटिल लगी हैं न, वो भी साथ जाएगी। वो भी हमी लाये थे।
मुसलमान जाने को तैयार है कटियार साहब। हमारी साझा तहज़ीब मादरे वतन की दो आंखें हैं। एक आंख गई तो माँ कुरूप हो जाएगी। हम माँ की खूबसूरती के कायल हैं, लेकिन आप्? मगर आप् क्या चाहतें हैं। आपकी जमात तो अतीत में भारत और तिरंगे के खिलाफ रही और आज भी है। तो भगा दो मुसलमानों को, फोड़ दो मादरे वतन की एक आंख। मुस्लमानों को उसकी गठरी द्दे दो वह जाने को तैयार है।