exclusiv- डुमरियागंजः गठबंधन हुआ तो, माता प्रसाद के मुकाबले बसपा के आफताब आलम की होगी तगड़ी दावेदारी

March 24, 2018 1:19 PM0 commentsViews: 2466
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर। गोरखपुर, फूलपुर उपचुनाव की जीत के बाद राज्यसभाचुनाव में बसपा की हार के बाद भी अखिलेश यादव और मायावती के बीच एकता को लेकर समझ और भी विकसित हुई है। इससे आगामी लोकसभा चुनाव में सीटों के समझौते की बात लगभग तय हो चुकी है।  इसी क्रम में डुमरियांगंज लोेकसभा के समीकरणों पर चर्चा जरूरी है, क्योंकि अब इस लोकसभा को वीआईपी सीट का दर्जा प्राप्त हो चुका है। समझौते की दशा में इस सीट का नक्शा क्या होगा, यह अहम सवाल है।

पिछले चुनाव की स्थिति

2014 के चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी  के बड़े नेता और तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष माता प्रयाद उम्मीदवार थे। उनकी बुरी गत हुई थी। वह लगभग 1.74 लाख मत प्राप्त कर तीसरे स्थान पर रहे थे।  इसके बरअक्स तत्कालीन बसपा उम्मीदवार मुहम्मद मुकीम दो लाख से कुछ कम मत हासिल कर दूसरे नम्बर पर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीद्रवार यहां से लगभग सवा लाख वोटों से जीते थे।

समझौता में बसपा का पलड़ा भारी

सपा बसपा के तालमेल की दशा में इस सीट पर बसपा का पलड़ा भारी है। एक तो गत चुनाव में बसपा यहा से दूसरे नम्बर पर थी, इसलिए उसकी दावेदारी मजबूत है। दूसरे इस सीट पर मुस्लिम वोटर 30 प्रतिशत है और बसपा ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार (आफताब आलम) घोषित कर रखा है। हलांकि अखिलेश यादव यहां से माता प्रसाद को चुनाव लड़ाने के इच्छुक हैं, मगर बसपा जिद पर अड़ी तो अखिलेश यादव इस सीट से दावेदारी छोड़ने में तनिक नहीं हिचकेंगे। इसलिए कि वह मायावती के प्रति बेहद नर्म और संतुलित रुख रखने लगे हैं।ॽ और गठबंधल के प्रबल आकांक्षी भी हैं।

बसपा को लड़ाने से होगा फायदा

राजनीतिक प्रेक्षक इस सीट पर गठबंधन के तहत  बसपा को लड़ाने में लाभा मानते हैं। राजनीतिक जानकार कलाम खान कहते हैं की इस क्षेत्र में मुस्लिम बोट 30 प्रतिशत है। उसका बड़ हिस्सा सपा ने नाराज है। इसलिए कि सपा ने गत विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम कंडीडेड नहीं दिया। वर्तमान में उसके पास  मुस्लिम के नाम पर बड़ा स्थानीय चेहरा भी नहीं है। यही नहीं सपा के पास लोकसभा के सभी विधानसभा क्षेत्रों में कद्दावर नेता भी है, जबकि सपा के पास एक भी नहीं हैं। ऐसे में यदि बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार आफताब आलम के टिकट का रास्ता सपा ने रोका तो समाजवादी पार्टी का साथ बचे खुचे मुस्लिम भी छोड़ सकते हैं।

फिलहाल राज्यसभा चुनाव के बाद दो दल में संवाद बढ़ रहा है। एक माह बाद दोनों दल तालमेल/गठबंधन के रास्ते पर आगे बढेंगे। अखिलेश यादव का बदला रुख बताता है कि वह तालमेल में बसपा से कड़ी सौदेबाजी भी नहीं करेंगे। इसलिए यह सीट बसपा के लिए छोड़ी जा सकती है। लेकिन यह केवल कयासबाजी है। तालमेल के अंतिम क्षण में स्थितियां क्या बनती हैं, फैसला उसी के आधार पर होगा।

 

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