Exclusive- सत्ता के दबाव में पुलिसिया आतंक से गांव के मुस्लिम घरों पर लटक रहे ताले, महिलाएं भी घर से भागीं,

May 10, 2018 5:03 PM0 commentsViews: 1982
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— गोरया कांड, निर्दोष मुसलमानों को फंसाने का सच  

— गोरया गांव में दहशत के कारण कई मुस्लिमों की शादियों में न तो दूल्हन के डोले उतरे और न ही निकल सकी कोई बारात, पुलिस ने नहीं किया कंट्रोल का प्रयास

— बाप की गैर मौजूदगी में बेटे की निकाह, विदा होकर दूल्हन दूसरे गांव में उतरी, बेटी की निकाह दूल्हे के गांव में कराने की दर्दनाक मिसाल बना गोरया गांव

नजीर मलिक

सन्नाटे में डूबा गोरया गांव, कहां  और क्यों भागे मुर्लिम

यूपी के सिद्धार्थनगर जिले में राजनीति और पुलिस के नापाक गठजोड़ ने एक दलित और मुस्लिम परिवार के बीच हुई मारपीट की घटना को इस प्रकार अंजाम दिया कि गांव में हर ओर दहशत का माहौल खड़ा हो गया है। गांव के सभी मुस्लिम परिवार घर छोड़ कर फरार हैं। यहां तक की महिलाएं भी गांव से भागी हुई हैं। घरों पर ताले लटक रहे हैं। नेताओं के दबाव में पुलिस इस कांड को प्रदेश स्तर पर चर्चित बना चुकी है। गांव के कई मुस्लिम घरों में शादियो का मौका नहीं मिला। दूल्हनों के डोले तक गांव में नहीं उतारे जा सके। इस राज में मुसलमानों को तबाह करने का सच तो पढ़िये।

इटवा थाना क्षे़त्र के गोरया गांव में 6 मई की शाम को एक वैवाहिक कार्यक्रम में दलित भगवती और मुस्लिम ग्राम प्रधान रहमान के बीच विवाद हुआ। रहमान मलिक व उनके साथ के लोगों ने भगवती के दूल्हा बने पुत्र प्रमोद व कई लोगों को पीट दिया। यह एक घटना थी। भगवती गांव की राजनीति में ग्राम प्रधान रहमान मलिक का ही समर्थक था। लिहाजा वह सीधी सीधी मरपीट की घटना थी, न कि जातीय या नस्ली उन्ताद से प्रेरित।। मगर घटना की खबर पर राजनैतिक लोगों के इशारे पर 20 नामजद और और 50 अज्ञात लोग  लगभग एक दर्जन गंभीर धाराओं में मुलजिम बना दिये गये।

7 मई की सुबह वहां क्षेत्रीय भाजपा विधायक सतीश चंद्र द्धिवेदी समेंत कई भाजपा नेताओं का दौरा हुआ। गांव में भारी फोर्स लगा दी गई। एसपी सिद्धार्थनगर खुद मौके पर पहुंचे। उसके बाद लोगों की धर पकड़ होने लगी। जो जहां पाया दबोच लिया गया। 6 लोगों को सुबह पकड़ा गया तो लोग दहशत से घर से फरार हो गये। रात में छापे मार कर 15 अन्य को छापेमारी कर पकड़ा गया। इसकी सूचना मिलने पर गांव की महिलाएं भी घरों पर ताले लटका कर चली गईं। तब से गांव में घरों पर ताले लटके हुए हैं।

राजनीतिक दबाव में पुलिस ने की काली करतूत

इस घटना में पुलिस उन लोगों को भी घर पकड़ रही है, जिसका घटना से ताल्लुक नही तथा वह ग्राम प्रधान के धुर विरोधी हैं। लोगों की उनसे बातचीत तक बंद है। शादी ब्याह में आना जाना तक नहीं है। बस उनका कसूर इतना है कि वे नाम से मुसलमान है।

 मिसाल के लिए गांव में सद्दाम नामक युवक की 8 मई को शादी थी। वह इसके लिए गुजरात से आया था, मगर उसको छोड़ उसके पूरे परिवार को अभियुक्त बनाया गाया। उसका सारा परिवार फरार है। उसकी शादी की रस्म दूसरे गांव में बिना बाराती के पूरी हुई। लेकिन दहशत की वजह से इसकी पत्नी का डोला गांव में नहीं उतर सका। इतना बड़ा पुलिसिया आतंक तो भरत में कम ही देखने को मिलता है।

पुलिस ने बेकसूर को दौड़ा कर पकड़ा, क्या मुसलमान होना जुर्म हैं?

इसी प्रकार शाहिद नाम का 17 साल का किशोर गांव मे एक शादी में शामिल होने आया था। 7 मई की सुबह सत्ता पक्ष के एक नेता के ललकारने पर पुलिस ने उसे खदेड़ कर पकड़ा। शाहिद का परिवार भी मुख्य अभियुक्त और ग्राम प्रधान का राजनैतिक विरोधी है। वह उस झगड़े में नहीं था, लेकिन प्रधान का सजातीय होने के कारण उसे जेल के सीखचों के अंदर पहुंचा दिया गया। ग्राम प्रधान रहमान के एक और विरोधी अनारू मलिक के बेटी की 9 मई को शादी थी, लेकिन अनारू के फरार होने की वजह से बेटी की बारात नहीं आ सकी। बाद में लड़की को दूल्हें के गांव ले जाकर निकाह कराई गई।

गोरया से सटे टेकुइया चौरहे पर चाय की दुकान पर चर्चा चलने पर वैस मुहम्मद नामक व्यक्ति ने कहा कि राजनीतिक दबाव में पुलिस ने जिस प्रकार गावं के एक वर्ग के सभी लोगों को अभियुक्त बनाया और ऐसी दहशत पैदा किया की कई शादियों की रस्म तक गांव में न हो सकी। लड़की की शादी में बाप भाई तक शामिल न हो सके। उन्होंने कहा कि पुलिस और राजनीतिक गठजोड़ का ऐसा क्रूर चेहरा उन्होंने अपने 65 साल की उत्र में कभी नहीं देखा।

रहमान तो दोषी है, लेकिन उसकी पूरी बिरादरी मुल्जिम क्यों

?

इस पूरी घटना में एक दलित को मारने मारने पीटने की घटना में रहमान, उसके बेटे सहित एक दर्जन लोग शामिल थे। उन्हें सख्त से सख्त सजा देनी चहिए, लेकिन बाकी 60 बेकसूरों को पुलिस ने किस आधार पर मुलजिम बनाया? इस सवाल के जवाब में गांव के यार मोहम्मद कहते हैं कि वह इसकी वजह तो नहीं बता सकते, लेकिन गांव में पुलिस ने जब बेकसूरों को पीटना और उन्हें गिरफ्तार करना शुरू किया तो लोगों को घर छोड़ कर भागना पड़ा। उन्होंने कहा कि पुलिस अपराधियों के अलावा बाकी मुसलमानों का उत्नीड़न कर रही है। क्या ये गलत लहीं है?

रो पड़े अनारू, कहा- मै प्रधान का दुश्मन, तो उनके साथा मुलजिम क्यों?

इस संवाददाता ने गोरया से फरार चल रहे अनारू से सम्पर्क किया तो वे रो पड़े। उन्हों ने बताया कि उनकी ग्राम प्रधान से दुश्मनी चल रही है। ऐसे में वे ग्राम प्रधान के साथ मिल कर दलितों को कैसे पीट सकते हैं। घर में बेटी की शादी की तैयारियां चल रही भीं, लेकिन योगी (सीएम आदित्यनाथ) जी के नेता और उनकी पुलिस के तांडव के कारण दूसरे लोग बेटी को दूल्हें के गांव ले गये, वहां उसकी निकाह हुई। पुलिस के डर से मै मौके पर नहीं पहुंच पाया । यह मेरी बदनसीबी है।

पुलिस के एसपी और सीओ ने कहा—

इस मामले में 7 मई की शाम जब कपिलवस्तु पोस्ट ने एसपी धर्मवीर सिंह से सवाल किया तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वहां दलितों के साथ जुल्म हुआ है और पुलिस अपनी कर्रवाई कर रही है। संवाददाता ने पूछना चाहा कि निर्दोष क्यों पकडे जा रहे है तो उन्होंने इस सवाल को टालते हुए केवल यही कहा कि आप जाइये वहां देखिए कि दलितों पर कितना जुल्म हुआ है।   जबकि सीओ इटवा इटवा नईम खान मंसूरी ने कहा कि  रिपोर्ट के आधार पर पुलिस कार्रवाई जरूर कर रही है, लेकिन जांच में निर्दोष पाये जाने पर उसे न्याय जरूर दिया जायेगा।

 

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