एक अदना गांव की प्यास न बुझा सका तीस साल का पंचायत राज
अजीत सिंह
राजीव गांधी के कार्य कार्यकाल में लागू हुई पंचायत राज व्यवस्था को तीस साल हो चुके है, मगर यह व्यवस्था बीते तीन दशकों में पिपरा गांव के लोगों के विकास की कौन कहे उन्हें पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं करा पाई है। जिले में ऐसे गांवों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, पिपरा तो एक मिसाल भर है।
खेसरहा ब्लाक के इस गांव की आबादी तकरीबन सात सौ हैं। यहां कुल 11 कुएं हैं, जिनमें आधे से अधिक पट चुके हैं। बाकी का पानी भी पीने लायक नहीं है। गांव में कुल साठ साधारण हैंडपंप लगे हैं, जो 30 से 40 फीट बोर पर है। उनका पानी पूरी तरह दूषित है। सरकार ने वहां सात इंडियामार्का लगवा रखा है, मगर उनमें चार बंद पडे हैं। तीन का पानी दूषित है।
गांव में पानी की समस्या से लोग परेशान हैं। सुमिरन कहते हैं, कि पिछले तीस साल में 6 प्रधान आये, मगर किसी ने गरीब के पानी की फिक्र नहीं किया। बताया जाता है कि बीते तीस सालों में गांव के विकास के लिए शासन द्धारा विकास मद में लगभग डेढ़ करोड़ रुपया खर्च किया गया है। इसमें नरेगा का मद शामिल नहीं है।
गांव में अब तक सात में मात्र चार विकलांगों को पेंशन मिल सकी है। अस्सी के सापेक्ष सिफ एक शौचालय बना है। गांव की सुगना देवी कहती है कि अब तो प्रधानों से कोई उम्मीद रही नहीं। इस जनम में शायद ही उन्हें साफ पानी मिल सके। ब्लाक के वीडियो राजाराम का कहना है। कि अब कुछ नहीं हो सकता। चुनाव के बाद वह इस गांव की समस्या हल करने की कोशिश करेंगे।