डुमरियागंजः भयानक तपिश में जूझ रहे प्रत्याशी, मगर चुनावी धुंध अभी कायम
— जगदम्बिका पाल ने ओबीसी व ब्राह्मण वोटर तो आफताब आलम ने अति पिछड़ा वर्ग के मतादाताओं को बनाया टारर्गेट
— डा. चन्द्रेश की सधी चाल, ब्राह्मण व मुस्लिम मतदाताओं को साधने और कांग्रेस के परम्परागत वोटरों को रोकने की कोशिश
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। स्थानीय संसदीय सीट पर चुनावी तपिश अपने चरम पर है। भयानक गर्मी के बीच प्रत्याशी और उनके समर्थक बिना रुके, अनवरत चल रहे हैं। भाजपाई अपनी जीत को बरकरार रखने के लिए मेहनत कर रहे है तो गठबंधन के लोग इस बार हार हाल में सीट इस पर कब्जा कर लेने को कटिबद्ध हैं। कांग्रेस पार्टी भी सीधी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। मगर सियासी आसमान पर धुंध अभी कायम है। चुनावी परिदृश्य साफ नहीं है।
जगदम्बिका पाल और भाजपा खेमें में हलचल बढ़ी
भाजपा और उनके सांसद प्रत्याशी जगदम्बिका पाल कांग्रेस से पूर्व सासंद मु. मुकीम को टिकट मिलने को लेकर बहुत आशान्वित थे, मगर कांग्रेस से डा. चन्द्रेश को टिकट मिलनेसे अचानक समीकरण गठबंधन के पक्ष में झुकने लगा। पाल जैसे अनुभवी राजनीतिज्ञ को इसके बाद अत्यधिक मेहनत की जरूरत पड़ रही है। वह अपने जनससम्पर्क का अधिकांश समय ब्राहमण समाज और अति पिछड़ा वर्ग के बीच गुजार रहे। रोड शो और सभाओं में अब वे विकास को कम मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाने पर अधिक जोर दे रहे हैं।
यकीनन उन्हें मुद्दों की समझ है। उनके खेमे में महिलाओ की कई सश्शक्त टीम है जो घर घर जनसम्पर्क कर माहौल को भाजपा के पक्ष में करने में लगी हुई हैं। इसके अलावा उनके राजनीतिक सम्पर्क बहुत व्यापक है, इसलिए आये दिन कोई न कोई बड़ा नेता उनके पक्ष में प्रचार हेतु आ जा रहा है। कह सकते हैं कि कागजी आंकडे उनके पक्ष में न होने पर भी उनको कमजोर आंकना बड़ी भूल होगी। महिला प्रचारको के मामले में विपक्ष के मुकाबले पाल मीलों आगे हैं।
आफताब आलम और गठबंधन खेमे में उत्साह
भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले गठबंधन के उम्मीदवार आफताब आलम का राजनीतिक अनुभव कम भले है लेकिन राजनैतिक समीकरण पक्ष में होने के कारण उनके खेमे में उत्साह है। उन्होंने अपने जनसम्पर्क कार्यक्रम और सभा व रोड शो में सारा जोर अति पिछड़ों पर केन्द्रित कर रखा है। सपा बसपा गठबंधन के नाते आफताब आलम को मुस्लिम, मतदाताओं पर पूरा भरोसा है। विपक्ष उनके मुसलमानों के बीच अधिक उठने बैठने से चुनाव को फिरकापरस्ती का रंग न दे पाये, इसलिए वे मुस्लिम मतदातओं के बीच जरूरत से ज्यादा नहीं रहते।
वो मानते है १९ फीसदी दलित, ३० फासदी मुस्लिम और ९ फीसदी यादव यानी ५८ फोसदी मतदाताओं पर गठबंधन की पकड़ है। इसलिए वे अति पिछड़ी जातियों पर ध्यान अधिक देकर अपने जीत का अंतर बढाने की रणनीति पर अमल कर रहे हैं। वैसे उनके खेमे में कम ही सही ब्राह्मण भी देखे जा रहे हैं। आफताब आलम की यह रणनीति सफल रही तो परिणाम बदल सकता है।
कांग्रेस बढ़ रही है, चुनाव को त्रिकोण बनाने में जुटी
जहां तक कांग्रेस का सवाल है उसकर जनाधार कमजोर, लेकिन प्रत्याशी सक्षम है। कांग्रेस उम्मीदवार डा. चन्द्रेश उपाध्याय बहुत कुशलता से अपनी चालें चल रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस के पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री नर्वदेश्वर शुक्ल, पूर्व सांसद डा.चन्द्र शेखर त्रिपाठी, जिलाध्यक्ष ठाकुर तिवारी , कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सच्चिादानंद पांडेय सहित कांग्रेस के मुस्लिम नेता व पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम, सहित काजी सुहेल अहमद, बख्तियार उस्मानी को लेकार ब्राह्मण मुस्लिम का गठजोड़ बनाने में जुटे हैं।
इस बीच उन्होंने पूर्व मंत्री और जिले के धाकड़ नेता व पूर्व मंत्री मलिक कमाल यूसुफ को अपने पाले में ला कर अपनी स्थिति में बहुत सुधार किया है। काल युसुफ का व्यक्तिगत जनाधार सर्वविदित है। अगर उन्हें इन दोनों वर्गो में समर्थन मिला तो तथा कांग्रेस का परम्परागत वोट इनसे जुडा तो चन्द्रेश त्रिकोण का तीसरा कोण बन सकते हैं।
नोट पर वोट देने देने वाले ५ फीसदी मतदाता महत्वपूर्ण?
कुल मिला कर तीनों धुरंधर प्रत्याशी एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में जी तोड़ प्रयास में लगे हैं। लेकिन धन की आस लगाये बैठा ५ प्रतिशत मतदाता अभी भी ‘तू डाल-डाल, मै पात-पात’ की नीति पर चल रहा है। वह ‘ पहले नोट मिले फिर देंगे वोट’ की रणनीति पर चल रहा है। यही फ्लोटिंग वोट अक्सर चुनाव को प्रभावित करता है। मगर यदि सारे प्रत्याशियों ने कानूनी दायरे को नहीं लांघा तब ये फलोटिंग वोट किसके पक्ष में जायेगा. यह बताना मुश्किल है, लेकिन इनका वोट चुनावी फैसले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, इसमें कोई संदेह नहीं