नेपालः पीएम के.पी. ओली दल विभाजन कर अपनी कुर्सी बचाने की फिराक में
— पूर्व पीएम कामरेड प्रचंड व वर्तमान पीएम ओली टकराव की राह पर
परमात्मा प्रसाद उपाध्याय
कृष्णानगर, नेपाल। नेपाल की सियासत में अचानक हलचल बढ़ गई है। पार्टी के अंदर से ही ओली ‘प्रचंड’ तूफान का सामना कर रहे ओली ने गुरुवार दोपहर अचानक नेपाल के राष्ट्रपति से मुलाकात किया है। वह आज देश को भी संबोधित करने वाले हैं। उधर प्रचंड के निवास पर भी बैठकों का दौर जा जारी है। नेपाल के प्रधानमंत्री के. पी. ओली ने नई चाल, चलकर विभाजन अध्यादेश लाकर अपनी कुर्सी बचाने की कोशिश शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि तीन साल पहले केपी ओली और पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी और कम्युनिस्ट पार्टी यूएमएल का विलय कर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी बनाई थी। अब एक बार फिर दोनों पार्टियां विभाजन के कगार पर हैं।
ओली कैबिनेट में दल विभाजन अध्यादेश लाने की तैयारी में है। और इसको लेकर उन्होंने तैयारियां शुरू कर दी हैं। अभी नेपाल के कानून के मुताबिक दल विभाजन के लिए 40 प्रतिशत संसद सदस्य और 40 प्रतिशत पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य के समर्थन की आवश्यकता होती है, लेकिन नए अध्यादेश में इन दोनों में से कोई एक भी समर्थन होने पर दल विभाजन को मान्यता दे दी जाएगी।
ओली ने गुरुवार की सुबह कैबिनेट की बैठक कर इस निर्णय पर मुहर लगवा लिया है। इससे पहले ओली ने गुपचुप तरीके से एक नई पार्टी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) बना ली थी। अपनी कुर्सी को बचाने के लिए ओली के लिए यह एक मात्र रास्ता है। नया विभाजन अध्यादेश लागू होने पर ओली अपने पद पर रहते हुए इसका फायदा उठा सकते हैं। अगर दल विभाजन के बाद संसद में रहे दलों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाती है और किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं मिल पाता है तो ऐसे में वे संसद को भंग कर मध्यावधि चुनाव करा सकते हैं।
पड़ोसी मित्र राष्ट्र नेपाल के सूत्रों से मिली खबर के अनुसार सुबह नेपाल के प्रधानमंत्री आवास में जबरदस्त ड्रामा हुआ. 11 बजे कम्युनिस्ट पार्टी की स्थाई समिति की बैठक होनी थी, लेकिन ओली बैठक को दो घंटे टाल कर पहले राष्ट्रपति से मिलने गए, फिर कैबिनेट की बैठक की। उसी दौरान लगभग घंटे भर से इंतजार कर रहे स्थाई समिति के सदस्य पूर्व प्रधानमंत्री कामरेड प्रचंड की अध्यक्षता में पीएम आवास में ही बैठक करने लगे। ओली ने कैबिनेट में विभाजन अध्यादेश कानून को लाने पर मुहर लगवा ली।उसके बाद प्रचंड ने ओली से मिलने की कोशिश की लेकिन ओली नहीं मिले।
जाहिर है उन्हें लगता है कि विभाजन अध्यादेश लाकर वे अपनी सरकार बचा सकते हैं। दूसरी तरफ अगर प्रचंड के नेतृत्व की पार्टी और दोनों विपक्षी पार्टियां साथ में आ जाएं तो सरकार बनने की एक संभावना बन सकती है।लेकिन उसके लिए पहले सत्तारूढ़ दल में फूट जरूरी है और यह भी देखना है कि ओली के साथ कितने सांसद जाते हैं और प्रचंड के साथ कितने?