डुमरियागंजः गठबंधन का स्वरूप लिखेगा कमाल यूसुफ के आखिरी चुनाव में हाऱ़-जीत की इबारत

March 12, 2021 1:05 PM0 commentsViews: 1974
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नजीर मलिक

सिद्धार्थनगर।  डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में सियासी शतरंज की विसात बिछना शुरू हो गई हैं। जिसमें इस क्षे़त्र से कई बार विधायक व मंत्री रहे कद्दावर नेता कमाल यूसुफ मलिक ने भी अपनी चालें चलनी शुरू कर दीं हैं। उनका चुनाव लड़ना तकरीबन तय है। लोगों में अभी से मैसेज दिया जा रहा है कि वे इस बार वे अपने जीवन का आखिरी चुनाव लड़ेंगे। 

गत २८ फरवरी को उनके द्धारा बुलाई गई वर्करों की बैठक का एजेंडा हालांकि उनकी पार्टी प्रसपा द्धारा तय कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाना था, मगर इस बैठक के माध्यम से अपनी मौजूदा ताकत का आंकलन भी था। उनकी इस बैठक में जुटे तमाम प्रभावशाली व पुराने चेहरों को देख कर उन्हें यह भरोसा हुआ कि वह भले ही मुख्यधारा की पार्टी में न हों मगर उनका समर्थक वर्ग अभी बरकरार है।

क्या है कमाल यूसफ की रणनीति

अब सवाल उठता है कि कमाल युसूफ के चुनाव लड़ने की रण्नीति क्या है। वे आगे कौन सी पार्टी सा गठबंधन से चुनाव लड़ेंगे। इस बारे में उना कहना है कि वे वर्तमान में शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से जुड़े हैं। शिवपाल यादव की पार्टी का सपा से गठबंधन प्रस्तावित है। यदि ये गठबंधन बना तो इस क्षेत्र से कमाल यूसुफ का सपा प्रसपा गठबंधन का उम्मीदवार बनना  निश्चित है। लेकिन यदि ऐसा संभव नहीं हुआ तो? इस सवाल के जवाब में उनके करीबी समर्थक और परिजन बताते हैं कि सपा से गठबंधन न होने की दशा में उनके विकल्प खुले हैं। सपा ने यदि गठबंधन न किया तो प्रसपा अन्य कई दलों से गठबंधन कर करेगी। कमाल यूसुफ की करीबियों की बातों से यह तय है कि वह चुनाव लड़ेंगे। 

 

इन हालातों में क्या क्या होगा

अब प्रश्न यह उठता है कि सपा और प्रसपा के बीच गठबधंधन होने और न होने यानी दोनों ही स्थितियों में से क्षेत्रीय समीकरण क्या क्या हो सकते हैं?  डुमरियागंज की राजनीति को अपने वाले यह भली भांति समझते हैं कि डुमरियागंज के पिछले 40 दशकों की राजनीति में बड़ी तादाद में हिंदू मतदाता उनके साथ रहा है। कमाल यूसुफ ने एक बार उसे दूसरे को ट्रांसफर कराना चाहा जो संभव तो नहीं हुआ। लेकिन पिछले चार दशक में वे जब जब भी चुनावी अखाड़े में उतरे इन हिंदू मतों का एक बड़ा हिस्सा सदैव उनके साथ रहा है इसे उन्होंने बार बार साबित भी किया है।

ऐसी दशा में लोग मानते हैं कि यदि कमाल सूसुफ सपा प्रसपा के साझा उम्मीदवार बनते है तो उनके लिए जीत की राह आसान बन सकती है। इस दौर भाजपा के पक्ष में खड़ा बहुसंख्यक तबके का एक हिस्सा उनके पक्ष में खड़ा होगा। इसके अलावा मुस्लिम और यादव मतदाता उनकी स्थिति को बेहद मजबूत बनाएंगे, ऐसी उन्हें व उनके समर्थर्कों को उम्मीद है।

यदि सपा प्रसपा समझाैता न हुआ तो?

दूसरी तरफ यदि सपा प्रसपा से अलग होकर लड़ी तो उनके साथ क्षे़त्र का अधिकांश मुस्लिम मतदाता और उनके व्यक्तिगत बहुसंख्क वोट मिल कर उन्हें संघर्ष में तो खडा कर ही देंगे। ऐसे में वे पूर्व  सपाई व शिवपाल के नाम पर  सपा का परम्परागत यादव कितना मत तोड़ पायेगे यह उनकी योगता पर निर्भर करता है। इसमें यह भी महत्चपूर्ण होगा कि  सपा से हटने के बाद उनका गठबंधन किस छोटे दल से होता है। यदि भासपा और एक्लब्य पार्टी के साथ एलायंस हुआ  तो कमाल यूसुफ निश्चित लाथ में रहेंगे। क्यों कि यह दल आज कल भाजपा से नाराज व खुन्नस खाऐ हुए हैं। क्षेत्र में राजभर व मल्लाह समुदाय के खासे वोट हैं। जो इन्हीं दोनों पार्टियों के समझे जाते हैं।

कुछ मिला कर कमाल यूयुफ के पास मात्र यही दो विक्ल्प हैं। इसी के आधार पर उन्हें अपनी जीत की राह बनानी होगी। फिलहाल चुनाव गत वर्ष इसी महीने में होने की संभावना है। मगर किन्हीं हालात में सरकार पहले भी घोषित कर सकती है। ऐसे में राजनीतिक दलों की गतिविधियां में जल्द शुरू हो जाऐगी। इसी को ध्यान में रख कर कमाल यूसुफ और उनके समर्थक भी सक्रिय होने की तैयारी में लग गये हैं। अब निकट भविष्य में गठबंधन के स्वरूप की स्थिति ही कमाल यूसफ के आखिरी चुनाव के जीत या हार की इबारत लिखेगी।

 

 

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