दीपावली विशेषःसिद्धार्थनगर जेल में बंद मासूमों को क्या पता, कैसी होती है पटाखों की गूंज और सिवइयों की मिठास
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर की जेल में बंद अनेक महिलाओं के साथ रह रहे उनके मासूम बच्चों के लिए त्यौहार एक सपना है। उन्हें यह नहीं मालूम कि दीवाली में पटाखों की गूंज या ईद पर सिंवइयों की मिठास कैसी होती है। एक बार फिर दीपावली का पर्व है। लोग इसे प्रकाश पर्व भी कहते हैं, मगर जेल में बेकसूर बंद इन बच्चों के लिए तो हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा है।
सिद्धार्थनगर जेल में इस समय 9 बच्चे ऐसे हैं, जो कम उम्र होने के कारण अपनी माओं के साथ जेल में ही रह रहे हैं। जेल में इनकी देखभाल जेल प्रशासन के जिम्मे है, लेकिन यह बच्चे जीवन की चकाचौंध और त्यौहारों के धूम घड़कों से अनजान हैं। कैसी विडम्बना है कि जिन त्यौहारों में सबसे अधिक आनंद बच्चों को मिलता है, वह उसी से महरूम हैं।
छः साल की कांक्षी को ही लीजिए उसे पता है दीवाली में पटाखे फोड़े जाते हैं, मगर पटाखे कैसे होते हें, वह नहीं जानती। बड़ मासूमियत से पूछती है कि अनार कैसे जलते हैं। राकेट कैसे दगता है।
कांक्षी की मां धनवती देवी एनडीपीएस एक्ट के तहत 10 सल की सजायाफृता है। वह बताती है कि अगर मुझे अहसास होता कि मेरे साथ मेरी बच्ची को इस तरह के आनंद से भी वंचित होना पड़़ जायेगा तो शायद मै यह गुनाह नहीं करती।
हत्या के जुर्म में अजीवन कारावास की सजा काट रही सलीमुन पत्नी हुसैनी के 6 साल के बेटे साहिल का दर्द भी कांक्षी से जुदा नहीं है। साहिल को नहीं पता की ईद के त्यौहार पर सिंवइयों की मिठास और ईदगाह पर लगने वाले मेले का लुत्फ क्या होता है। पूछने पर बताता है कि उसने सिंवई कभी नहीं खाई। वह यह भी सवाल करता है कि यह सिंवई होती कैसी है।
कृष्णा मगर पत्नी दलवीर मगर की बच्ची ष्वेता हो या सुनीता की बेटी नी तू या अन्य कोई बच्चा। सभी की जिंदगी में अंधेरा इस कदर है कि रौशनी का वह यहसास तक नहीं कर पाते। जेल मैनुअल के मुताबिक 6 साल की उम्र पूरी करने के बाद ही वह जेले से बाहर अपने घर भेजे जा सकते हैं।
सिद्धार्थनगर ही नही पूरे भारत की जेलों में एस तरह के लाखों बच्चे उस सजा को भुगतने को मजबूर है जो उनकी माताओं ने किया है। सामाजिक कार्यकर्ता विजित सिंह कहते हैं कि सरकार अगर ऐसा कानून बना दे कि पर्वो पर जेल प्रशासन उन बच्चों को कुछ देर के लिए सामूहिक रूप से बाहर की दुनियां दिखा दे तो शायद उनका ही नही उनकी माओं को गम भी कुछ कम हो जाएं।
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