शोहरतगढ़: आज़ाद पार्टी के नारों की अनुगूंज से बदल सकता है सियासी माहौल
गठबंधन के लिए खतरे का सबब बन सकती है डॉ सफराज़ की उम्मीदवारी
नज़ीर मालिक
सिद्धार्थनगर। विधानसभा सीट शोहरतगढ़ से डॉ सरफ़राज़ का आज़ाद समाज पार्टी (कांसीराम) के बैनर तले चुनाव लड़ने के एलान ने कई सेक्युलर दलों, खास कर सपा गठबंधन और कांग्रेस के खेमों की नींद उड़ा दी है। डॉ सरफ़राज़ की उम्मीदवारी ने ऐसे सारे दलों का राजनैतिक समीकरण को असंतुलित कर दिया है। ऐसे में उन दलों के चुनावी महारथी अब नए सिरे से रणनीति बनाने में जुट गये हैं।
समाजवादी गठबंधन द्वारा यहां के लिए सुभासपा से एक नए चेहरे को टिकट देने के बाद डॉ सरफ़राज़ अंसारी का भीम आर्मी वाले चन्द शेखर रावण की पार्टी से चुनाव लड़ना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। क्षेत्र से अकेला मुस्लिम उम्मीदवार होना ही उनकी सबसे बड़ी ताकत बन गई है। आजादी के बाद से अब तक इस क्षेत्र से कोई मुस्लिम जनप्रतिनिधि न चुना जाना भी मुस्लिम वोटरों में एक नया उत्साह भर रह है जो पूर्व के सारे राजनीतिक अनुमान को गड़बड़ा सकता है।
बन सकता दलित मुस्लिम गठजोड़
दरअसल लगभग 3 दशक बाद ऐसा मौका आया है जब शोहरतगढ़ सीट से किसी भी दल द्धारा किसी मुस्लिम चेहरे को मैदान में नहीं उतारा गया है। यही नही इस बार समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार तक मैदान में नहीं है।जिससे क्षेत्र में साइकिल निशान और लाल हरे झंडे भी नही दिखते। सपा ने यह सीट गठबन्धन के तहत ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा को दे दी है। जिसके उम्मीदवार यहां के लिए अनजान हैं ।ऐसे में डॉ सरफ़राज़ के समर्थकों का मानना है कि एक अकेला मुस्लिम उम्मीदवार शोहरतगढ़ क्षेत्र में 26 प्रतिशत मुस्लिम वोटों और 18 प्रतिशत दलित वोटों के बल पर अपराजेय बन सकता है।
डिवाइड होता रहा मुस्लिम
डॉ सरफ़राज़ कहते हैं कि मुसलमान अपने विवेक का प्रयोग करेगा तथा दलितों के साथ मोर्चा बना कर इस जंग को जिताएगा। ऐसा नहीं है कि शोहरतगढ़ में इकलौता मुस्लिम उम्मीदवार का लड़ना जीत की गारंटी है, पिछले दो दशकों से इस सीट मो जमील सिद्दीकी मुमताज़ अहमद जैसे धाकड़ उम्मीद्वार चुनाव लड चुके हैं, एक बार तो वे मात्र कुछ सौ वोटों से जीत से वंचित रह गए। दरअसल उस समय इस क्षेत्र मे पप्पू चौधरी और स्व.दिनेश सिंह का भी मुसलमानो पर बड़ा ज़बरदस्त प्रभाव था इसलिए मुस्लिम मत स्वाभाविक रूप से विभाजित हो जाते और मुस्लिम उम्मीदवार का वोटबैंक डिवाइड हो जाता था।
मगर आज हालात दूसरे है, जिसकी वजह से डॉ सफराज़ अंसारी के जीतने की संभावनाएं बलवती हो गईं हैं। क्षेत्र के राजनीतिक विश्लेषक सिराज खान कहते हैं आज दिनेश सिंह जैसा कोई चेहरा सामने नही है। पूर्व विधायक पप्पू चौधरी भी बढ़ती उम्र के कारण शिथिल हुए हैं। मुस्लिम मतों उनका पुराना कायम है इस बात की परख होनी शेष है। ऐसे में आज़ाद समाज पार्टी (भीम आर्मी) के उम्मीदवार के रूप में डॉ सरफ़राज़ अंसारी एक लोकप्रिय रहनुमा बन कर उभर सकते है। सरफ़राज़ अंसारी शिक्षित समाज सेवी हैं।वे ज़िले के सफल सर्जन ही नही एकमात्र ऐसे बड़े डॉक्टर हैं जो पिछले चार सालों से घूम घूम कर गांवों में गरीबो को निशुल्क स्वास्थ्य सेवा दे रहे है। एक बेदाग छवि के समाजसेवी पर जनता के विश्वास करने का बड़ा कारण भी बनता है।
उपसंंहार
कुल मिला कर शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र 3.58 लाख मतदाता है। 26 प्रतिशत के हिसाब से मुस्लिम मतदातों की तादाद 93 हज़ार बैठती है। इसी तरह 17 फीसदी के हिसाब से दलित वोटरों की तादाद 60 हज़ार है, जिसमे भीम आर्मी अपने असर का करती है, ये डॉ सरफ़राज़ अंसारी का कोर वोट है। इसके अलावा छवि के आधार पर डॉ अंसारी खुद भी विभिन्न वर्गों के वोट मिलने का भी भरोसा रखते हैं। इस प्रकार कागज़ पर तो डॉ सरफ़राज़ अंसारी बेहद मजबूत दिखते हैं। अगर इसे वे कागज़ से उतार कर ज़मीन पर साकार कर सके तो इस सीट पहली बार किसी मुस्लिम राजनेता की न केवल जीत होगी बल्कि वो इतिहास रचने में भी कामयाब होगा।