डुमरियागंज सीटः किसकी जय पराजय करा रहे सरकार के जातिगत आंकड़े व मतदान प्रतिशत
आंकड़ों के मुताबिक लडाई जोरदार होने के संकेत, किसी की जीत तय नहीं, जातीय समीकरणों की भूमिका अहम
नजीर मलिक
डुमरियागंज, सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज के विधानसभा चुनाव में यों तो त्रिकोणीय लड़ाई में सपा की बढ़त बताई जा रही है, लेकिन सरकार द्वारा जारी जातिगत आंकड़े एवं वोट पोलिंग का प्रतिशत का अध्ययन करने पर कुछ और ही कहानी नजर आती है। जिससे संकेत मिलता है कि हालात सपा के पक्ष में उतने अधिक नहीं हैं जितना कि राजनीति के जानकार बता रहे हैं। सपा के जीतने के चांस केवल कड़े़ त्रिकोणीय मुकाबले में ही बनते हैं। तो आइये देखते हैं कि आंकड़े क्या कहते हैं?
आंकड़ों के आइने में चुनाव
सबसे पहले आपको यह जान लेना जरूरी है कि डुमरियागंज में इस बार 50.80 प्रतिशत वोट डाले गये है। यदि इसमें पोस्टल बैलेट जोड़ लिए जाये तो यह लगभग 51 फीसदी के करीब हो जाता है। क्षेत्र में कुल मतदाताओं की तादाद 409596 है। इसके सापेक्ष कुल पोल हुए वोटों की संख्या 2 लाख 11 हजार के आसपास होते हैं।
दूसरी ओर सन 2011 के सरकारी जनगणना के आंकड़ो के मुताबिक डुमरियागंज में मुस्लिम मतदाताओं की तादद 36.86 प्रतिशत है। जबकि दलित वोटरों की संख्या 16 प्रतिशत है। पिछड़े 27 प्रतिशत हें जिनमें यादव की तादाद अनुमानतः 9 प्रतिशत है। शेष वोटर सवर्ण जाति के हैं। जिनमें ब्राह्मणों की संख्या अनुमान के मुताबिक 11 फीसदी बताई जाती है।
किस जाति के कितने वोट पड़े
उपरोक्त दोनों आंकड़ों के अनुसार इस बार चुनाव में यहां से 2.11 लाख वोट पड़े, जिनमें मुस्लिम समाज के कुल 78 हजार वोट डाले गये। इसके अलावा दलितों के 35 हजार, पिछड़ा वर्ग में यादव के 20 हजार व अति पिछड़ों के 38 हजार तथा ब्राह्मण के 23 हजार वोट डाले गये। इसके अलावा अन्य सवर्ण जातियों यथा कायस्थ, वैश्य व राजपूत समाज के मत 40 हजार मत पड़ने की संभावना है।
सपा का पक्ष होनी अनहोनी
अब यहां जातिवार वोट पड़ने के आधार पर विश्लेषण किया जाए तो तो इस बार मुस्लिम और जातियों के गठजोड़ से सपा का कुल वोट 98 हजार वोट बनता है। इसमें AIMIM उम्मीदवार इरफान मलिक का वोट यदि 15 हजार भी मान लिया जाए तो सपा का विशुद्ध वोट 83 हजार बचता है। इसमें भी भितरघात के चलते कितना यादव वोट सैयदा खातून के विरोध में गया है यह अलग से शोध का विषय है। फिर भी इस वोट के आधार पर भी सपा की सैयदा खातून के लिए अधिक नुकसानदेह नहीं दिखती।
जीत हार पर क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
राजीतिक विश्लेषकों के अनुसार दूसरी तरफ दलितों का 35 हजार वोट यदि बसपा के अशोक तिवारी का मान लिया जाये तो अति पिछड़ा वर्ग, जिनका सारा वोट गत चुनाव में भाजपा को गया था, जिनकी संख्या इस बार 37 हजार है तथा ब्रहमणों के 23 हजार तथा अन्य सवर्ण समाज के संयुक्त रूप से 40 हजार मत यानी कुल 1 लाख वोट बचते हैं। जिनमें बसपा और भाजपा दोनों दलों के सवर्ण उम्मीदवार बराबर के दावेदार है।
विश्लेषकों का निष्कर्ष
यदि इन मतों में बराबर का विभाजन हुआ तो बसपा के अशोक तिवारी की लाटरी लग सकती है। हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हुआ होगा तो भाजपा के राघवेंद्र प्रताप सिंह विजय पताका फहरा सकते है। परन्तु सरकारी नौकरियों में पुरानी पेंशन व अति पिछड़ा वर्ग आरक्षण व जातिवार जनगणना के मुद्दे ने जरा भी असर दिखाया होगा तो सपा उम्मीदवार सैयदा खातून के भारी मतों से जीतने की उम्मीद बढ़ जाती है। लेकिन अगर इरफान मलिक 25 हजार से उपर वोट पाने में सफल रहे तो सपा के अरमानों पर आरी भी चल सकती है।