सैलाब से राप्ती व बूढ़ी राप्ती नदी के दोआब में बसे ग्रामीण घर छोड़ सुरक्षित स्थानों पर कर रहे पलायन

September 20, 2022 12:35 PM0 commentsViews: 488
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अजीत सिंह

सिद्धार्थनगर। बूढ़ी राप्ती के बाद राप्ती नदी के भी खतरे कानिशान पर कर जाने के कारण दोनों नदियों के बीच की ग्रामीण आबादी में दहशत छा रही है। बाढ़ के सैकड़ों ग्रामीणों ने गांव छोड़ कर स्कूल में शरण ले रखा है। गोशालाओं के डूबने से गायों को लावारिस छोड़ दिया गया है। 120 गायों का पता नहीं नहीं चल रहा है। बाढ़ की विभीषिका झेल रहे गांव के लोगों का आरोप है कि प्रशासन ने बाढ़ सुरक्षा के पूरे इंतजाम नहीं किए हैं। यहीं कारण है कि जो गांव पिछले साल कटान के मुहाने पर थे, वे इस बार भी तबाही का मंजर झेल रहे हैं। नेपाल की पहाड़ियों में बारिश के कारण राप्ती और बूढ़ी राप्ती नदी उफान पर है।
जानकरी के अनुसार, विकास खंड बढ़नी के दक्षिणांचल में तौलिहवा के बालानगर टोले के पास नदी कटान कर रही है। गांव से दो-तीन मीटर की दूरी पर कटान के कारण गांव के लोग घर में ताला लगाकर परिवार के साथ स्कूल में रह रहे हैं। कटान से बालानगर टोले का अस्तित्व ही खतरे में नजर आ रहा है। बूढ़ी राप्ती के तट पर बसे इस टोले के लगभग आधा दर्जन से अधिक घर वर्ष 2012 में नदी में विलीन हो गए थे। एक दशक बाद भी प्रशासन ने बाढ़ से बचाव का कोई ठोस उपाय नहीं किया।
बालानगर के लोगों ने आरोप लगाया कि अधिकारी अधिकतर बाढ़ के समय ही टोले में दिखाई देते हैं और उसके बाद साल भर उनका पता नहीं रहता। इसी प्रकार जनप्रतिनिधि केवल चुनाव और बाढ़ के वक्त टोले में आते हैं और लाई-चूरा व साड़ी बांटकर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा लेते हैं। रघुवीर चौधरी, बेचन निषाद, अशर्फी निषाद, राममिलन निषाद, भग्गन निषाद, जुगुन यादव, रतिभान यादव, मोलहू निषाद, राजकुमार, पारस, तौलू, जंगबहादुर, जितेंद्र कुमार सहित सात दर्जन से अधिक घर नदी की कटान की जद में हैं। इनके घरों से नदी मात्र दो मीटर की दूरी पर बह रही है।
टोले के जुगुनी यादव, रामअचल, सुघरा देवी, भगवती, गंगाराम, गीता, पारस, राजाराम, हरिराम, रामरतन, संवारे, झकड़ी, सरजू, राजेश, पाती, बीपत, गरीब, रामबृक्ष, जंगबहादुर, चंद्रिका, नाजिर, भग्गन, हंसराज, श्रीराम, चिन्नू व बरखू आदि के घरों को नदी के कटान से खतरा है। शोहरतगढ़ तहसील क्षेत्र में बूढ़ी राप्ती नदी किनारे बसे तौलिहवा ग्राम के तौलिहवा, प्रतापपुर, कचरिहवा, बालानगर, लालपुर, फुलवरिया टोलों के लोगों के जेहन में पिछले कई सालों की बाढ़ का मंजर आज भी कौंध रहा है। बूढ़ी राप्ती नदी के किनारे बसे तौलिहवा ग्राम के कचरिहवा व बालानगर टोलों में गत कई सालों से कटान हो रही है। शोहरतगढ़ के एसडीएम उत्कर्ष श्रीवास्तव का कहना है कि गांवों प्रभावित गांवों के लेखपालों से रिपोर्ट मांगी गई है, सुरक्षा के प्रबंध किए जाएंगे।

इस संदर्भ  में बाला नगर के अशर्फी कहते हैंकि वर्ष 2012 में तो किसी प्रकार मेरा मकान नदी में गिरने से बच गया था, लेकिन प्रशासन का यही रवैया रहा तो इस बार कई लोग बेघर हो जाएंगे। गांव के लोगों ने प्रशासन व क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से टोले को नदी के प्रकोप से बचाने की कई बार अपील की, लेकिन 2014 के बाद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
यहीं के भग्गन बताते हैं कि आजादी के बाद से बाढ़ की विभीषिका से बचाव का कोई ठोस उपाय सरकार की ओर से नहीं किया गया। आगे भी लोग बाढ़ से बच सकें, उसका उपाय करती सरकार दिखाई भी नहीं दे रही है। टोलेवासी इस समय हर रात को आखिरी रात मान कर भयभीत हैं। रविवार की रात तो हम लोगों ने प्राथमिक विद्यालय में शरण लेकर रात बिताई।
यदि प्रशासन ने कटान से बचाने का कोई ठोस उपाय किया होता तो टोले का अस्तित्व खतरे में नहीं होता। साथ ही लोग सुरक्षित महसूस करते। दुर्भाग्य है कि हमारे जनप्रतिनिधि और अधिकारी बाढ़ आने का इंतजार करते हैं। बाढ़ आने पर लाई-चूरा बांटकर हम लोगों को गुमराह कर हमदर्दी जताते हैं।

बिजौरा क्षेत्र में लोग बचाव का इंतजाम खुद कर रहे हैं ।
राप्ती नदी के तेजी से उफान लेने से बिजौरा गांव में पंचायत भवन, गोशाला, पुलिस चौकी, श्मशान स्थल व आजादनगर डिहवा के आधा दर्जन मकान बाढ़ से घिर गए हैं। मंगलवार सुबह सुबह बाढ़ का पानी सलीम के घर में घुसने लगा तो उनकी पत्नी व पुत्री मिट्टी का ढेर लगाकर पानी रोकने की कोशिश करती नजर आईं। बीडीओ भनवापुर धनंजय सिंह ने कहा कि गोशाला के कुछ पशु बांध पर रखे गए हैं और कुछ गोवंश को परसोहिया गोशाला में रखा गया है, जबकि बिजौरा के प्रधान के प्रतिनिधि प्रणवीर अग्रहरि ने बताया कि बिशुनपुर औरंगाबाद के पास खाली खेत में गायों को चराया जा रहा है। जानकारी मिली है कि बिजौरा से परसोहिया गोशाला में गायें नहीं भेजी गई हैं।
बता दें कि इस समय राप्ती नदी खतरे के निशान से 83.67 के सापेक्ष  83.928 से ऊपर बह रही है, जबकि बूढ़ी राप्ती नदी पहले से खतरे के निशान के ऊपर है। नेपाल की पहाड़ियों में बारिश के कारण दोनों नदियों का जलस्तर देखकर बाढ़ प्रभावित गांवों के लोग सहमे गए हैं। शोहरतगढ़ क्षेत्र के कई मार्गों पर पानी भर जाने के कारण ग्रामीणों को नांव के सहारे आना-जाना पड़ रहा है।

 

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