राप्ती नदी बौराई, बाढ़ का पिछले 75 सालों का रिकार्ड टूटा, लोगों ने कहा, ‘सैलाब नहीं जलप्रलय’
डुमरियागंज़-कादिराबाद-बिथरिया मार्ग पर पानी, भनवापुर ब्लाक के 75 फीसदी गांव पानी से घिरे, कठेला, मेचुका की हालत दयनीय
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। राप्ती नदीं के सैलाब ने आजादी के बाद से अब तक यानी पचहत्तर सालों का रिकार्ड तोड़ दिया है। अपनी सहायक नदी बूढ़ी राप्ती के साथ मिल कर वह जिले में कहर मचा रही है। इसकी बाढ़ से जिले के 600 गांव जलमग्न हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की साढे तीन सौ सड़के पानी में डूब गईं है जिससे गांवों में भी आवागमन लगभग ठप है। टापू सरीखे दिख रहे जिले की 75 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि तथा साढ़े तीन लाख आबादी बुरी तरह प्रभावित है। लोगइस सैलाब को अब खंड प्रलय की संज्ञा देने लगे हैं। प्रशासन पीड़ितों के राहत और बचाव में लगा है लेकिन बाढ़ पीडितों की भारी तादाद को देख राहत और बचाव का प्रयास नाकाफी माना जा रहा है।ग घरों से निकल कर तटबंघों पर सहारा ले रहे हैं। हर ततरॅ राहत और बचाव केलिए चीख पुकार बढ़ती जा रही है।
ड्रेनेज खंड द्धारा दी गई सूचना के मुताबिक वर्तमान में राप्ती नदी ने पिछले 75 सालों के जलस्तर का रिकार्ड तोड दिया है। बांसी पुल के गेज के मुताबिक राप्ती नदी अपने खतरा बिंदू 84.900 के सपेक्ष 86.110 पर बह रही है। इससे पूर्व राप्मी नदी के सवोच्च जलस्तर का रिकार्ड 85.960 था जो उसने वर्ष 1998 में कायम किया था। इसी प्रकार बूढ़ राप्ती नदी अपने खतरा बिंदु 85.650 से 1.9० मीटर ऊपर बह रही है। जो १९९८ केरिकार्उ जलस्तर से कुछ ही सेमी कम है। इसके अलावा कूड़ा नदी भी खतरे केनिशान से ऊर चल रही है। सरकारी अभिलेखों में राप्ती की बाढ़ का रिकार्उ स्वाधीनता से पूर्व का नहीं मिलता है। स्वाधीनता के बाद के बीते 75 सालों में यह उसका सबसे ऊंचा जलरूतर हैं।
तटबंधों पर शरण ले रहे पीड़ित
इन दोनों नदियों की बाढ़ से जिले की लाखों आबादी घर छोड़ कर सूरक्त सथान की ओर भग रहे हैं। मगर उन क्षेत्रों के तमाम स्कूल कालेज भी पानी डूबे हुए हैं। इसलिए बाढ़ पीड़ितों के पास नदियों के किनारे तटबंधों पर शरण लेने के अलावा अन्य कोई चारा नहीं है। सबसे अधिक तबाही मैरुंड हो चुके लगभग साढ़े तीन सौ गांवों की है। अनेक लोग पानी से घिरे इलाके में मकानों की छतों पर भूखे प्यासे शरण लिये हुए हैं। वह लोग किसी नाव या स्टीमर के इंतजार में टकटकी लगाये मदद की उम्मीद में ताक रहे हैं। हालांकि प्रशासन ने अभी तक मैरूंड गांवों की तादाद 182 ही बताया है।
प्रशासन कम आंक रहा भयानकता
प्रशासन की रिपोर्ट के मुताबिक सैलाब से 2.47 लाख आबादी और 31 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल बाढ़ प्रभावित है। जबकि बाढ़ की भयानकता को देखते हुए यह आंकड़ा कम माना जा रहा है। बाढ़ की भयानकता को जनने वाले लोग मैरूंउ गांवों की संख्या तीन सौ तथा बढ़ प्रभावित आबादी लगभग चार लाख आंक रहे हैं। इसी प्रकार वह फसलों के क्षति का अनुमान भी लगभग 70 हजार हेक्टेयर मान रहे हैं। सके अलावा जिले में 154 नावें और 30 मोटरबोट लगाई गई हैं। इन्हीं संसाधनों के भरोसे जनप्रतिनिधि और अधिकारी भी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जा रहे हैं। बताया जाता है कि अनेक मैरुंड गांवों में नावें अभी भी नहीं पहुंच सकी है।
भनवापुर में सैकडों गांव डूबे
जहां तक बाढ़ की भयानकता का सवाल है तो उसका पता इसी से चलता है कि डुमरियागंज-उतरौला वाया कादिराबाद मार्ग पर आजादी के बाद से अब तक पानी नहीं आया था। वर्ष 1998 की बाढ़ में भी उस मार्ग पर आवाजाही ठप नहीं हुई थी, मगर इस बार डुमरियागंज से ग्राम कादिराबाद, बिथरिया तक 7 किमी की दूरी में सड़क जगह जगह डूब गई है। सबसे बुरी हालत भनवापुर ब्लाक, डुमयिगंज क्षेत्र तथा इटवा के बिस्कोहर और कठेला क्षेत्र की है। जोगिया-मेचुका क्षेत्र की हालत भी दयनीय है। 80 वर्षीय जमाल भाई का कहना है कि उन्होंने इतनी खतरनाक बाढ़ और भयानक बर्बादी अपनी आयु में नहीं देखी हैं।
खबरों के मुताबिक भनवापुर प्रतिनिधि के अनुसार, ब्लाक क्षेत्र के धनोहरा, पेड़ारी मुस्तहकम, मछिया, सोनखर, खुरपहवा, फत्तेपुर, डुमरिया, भरवठिया मुस्तहकम, पिकौरा, भरवठिया बाजार, सेखुई गोवर्धन, अंदुआ शनिवार, तेतरी, बुढियाटायर, डिवलीडीहा मिश्र, सेमरा बनकसिया, बिजवार बढ़ाई पेंड़रिया जीत, वीरपुर, तेनुई आदि गांवों में लोगों का जीना दूभर हो गया है।
घर में पानी भर जाने से लोग छत पर पन्नी तान कर भोजन बनाने के लिए मजबूर हैं। रोजमर्रा की वस्तुएं खरीदने अथवा आपात स्थिति में गांव से बाहर जाने के लिए या तो जुगाड़ू की नाव है या फिर गले तक पानी में घुस कर लोग बाहर जा रहे है। पेड़ारी मुस्तहकम गांव के मो उमर, धनोहरा गांव के लालचंद्र चौधरी, बृजेश चौधरी का कहना है बाढ़ में फंसे लोग खाद्य अथवा अन्य जरूरी सामग्री के लिए तरस रहे हैं। भरवठिया मुस्तहकम के कई घर में पानी भर जाने के कारण लोग रिश्तेदारी में शरण लेने के लिए पलायन कर चुके हैं। तेतरी गांव के पूर्व प्रधान जफर मलिक उर्फ पप्पू मलिक ने बताया कि हालात भयानक होते जा रहें। उन्होंने प्रशासन से राहत बचाव कार्य में तेजी लाने की मांग की है।
जोगिया मेंचुका में कयामत ही कयामत
खबर के अनुसार बांसी ब्लॉक की ग्राम पंचायत मेचुका के 75 फीसदी घरों में बाढ़ का पानी भर जाने से वहां के लोगों के सामने मुसीबत खड़ी हो गई है, लेकिन अब तक प्रशासन की तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं कराई गई है। गांव में बिजली, पानी, पशुचारा व शौचालय की समस्या खड़ी हो गई है।
बाढ़ के पानी से 95 फीसदी इंडिया मार्का हैंडपंप डूबे गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस संबंध में 10 अक्तूबर से लगातार ब्लॉक व तहसील प्रशासन को अवगत कराया जा रहा था, फिर भी अब तक कोई सुविधा ग्रामवासियों को नहीं उपलब्ध कराई गई।
क्षेत्र पंचायत सदस्य दिग्विजय सिंह ने कहा कि प्रशासन की ओर से लापरवाही बरती जा रही है। अगर गांव में लगे इंडिया मार्का हैंडपंपों का उच्चीकरण कार्य समय रहते पूर्ण किया गया होता तो आज की दुर्गति से बचा जा सकता था।