जलती फसल की आग बुझाने में सरकारी नियम सबसे बड़ी बाधा, एमपी एमएलए नहीं देते ध्यान?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। खेतों में पककर तैयार गेहूं की फसल में आग से आफत आ रही है तो नहरों में पानी के अकाल से बुझाने में चुनौती आ रही है। बिजली की चिंगारी से आग लग रही है और अग्निशमन विभाग पूरी तरह मददगार नहीं साबित हो पा रहा है। तो सिंचाई विभाग नहरों में पानी न छोड़ने के लिए नियम कानून की दुहाई देकर पल्ला झाड़ रहा है। फलतः किसानों के फसलों की सुरक्षा एक तरह से नियम कानून के जालमें उलझ गई है। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई है।
जानकारी के अनुसार पकड़ी बाजार के खरगवार गांव में बाणगंगा नहर के किनारे ही आग लगी और बुझाने में देर होने के कारण 100 बीघा फसल खाक हो गई। किसानों का कहना है कि नहर में पानी होता तो इतनी तबाही न होती। इसी प्रकार क्षेत्र के सेमरा, केसार और खुनुवां माइनर भी सूखी है। आग लगने पर लोग पेड़ों की झाड़ियों से बुझा रहे थे तो पानी के लिए पंपसेट का सहारा लेना पड़ा। इसी प्रकार इटवासे बांसी के बीच में आग लगने से भारी नुकसान इसलिए हुआ क्योंकि नहरों में पानी था।ग्रामीणों का कहना है कि नहरों में पानी होता तो आग लगने पर जल्द ही बुझाने में कामयाबी मिल जाती है।
बता दें कि डेनेज खंड, राप्ती नहर खंड और सरयू नहर खंड की 95 नहरें हैं, जो नौगढ़, शोहरतगढ़, इटवा, बांसी, डुमरियागंज में 1180 किमी दायरे बह रही है।इनका कमांड क्षेत्र 50 हजार हैक्टेयर से भी अधिक है। कहा जाएं तो जिले के खेतों में नहरों का जाल है, लेकिन वे सभी सूखी हुई हैं।
इस बारें में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता आरके नेहरा ने का कहना है कि नियम के मुताबिक नहरों में पानी सिर्फ सिंचाई के लिए छोड़ा जाता है। इस सीजन में सिंचाई नहीं होनी है इसलिए पानी नहीं छोड़ा जाता। आग बुझाने के उद्देश्य से कभी भी नहरों में पानी नहीं छोड़ा गया।लेकिन किसान कहते हैं कि यदि जनप्रतिनिधि चाहें तो नियम शिथिल भी कराये जा सकते हैं।