डुमरियागंज सीटः अनुसूचित जातियों में खिसकता दिखा भाजपा का जनाधार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाताओं की तादाद कुल वोटरों का लगभग 1/5 वां भाग है। 2014 और 2019 के संसदीय और 2022 के विधान सभा चुनावों में इस वर्ग का बड़ा हिस्सा भजपा को मतदान करते आ रहा है। लेकिन 2024 के चुनाव में एक चौकाने वाली बात यह देखी गई कि अनुसचित जातियों के बड़े हिस्से ने भाजपा से मुंह मोड़ लिया है।
जिले में अनुसूचित जाति की आबादी 18 प्रतिशत है। जिससमें 11 से 12 प्रतिशत जाटव (हरिजन) तथा 4 से 5 प्रतिशत पासी, तथा शेष में अन्य जातियां जैसे धोबी समाज, खटिक समाज आदि शामिल है। इस लिहाज से जिले में अनुसचित जातियों का वोट लगभग 3 लाख 60 हजार बैठता है। इसमें जाटव वोट लगभग 2 लाख 20 हजार, पासी लगभग 1 लाख धोबी व अन्य लगभग 40 हजार है। डुमरियागंज सीट पर इस बार लगभग 52 फीसदी मतदान हुआ है। माना जाता है की मंदिर आंदोलन के बाद से इनमें से गैर जाटव अनुसूचित जातियां जैसे पासी, धोबी और खटीक जाति के मतदाताओं का रुझान भाजपा की तरफ रहता आया है। यही नही बसपा से हट कर कुछ जाटव समाज भी भाजपा के खेमे में जाता देखा गया है। उदाहरण स्वरूप 2014 और 2019 के चुनाव में इस सीट पर अनुसूचित जातियों के वोट भाजपा के पक्ष में जम कर पड़े।
इस बार 25 मई को इस सीट पर हुए मतदान के बाद ग्रामीण क्षेत्रों से चौकाने वाली सूचनाएं मिल रही है। भाजपा, सपा और बसपा तीनों ही दलों के वर्करों का मानना है कि इस बार पासी और धोबी समाज के बड़े हिस्से ने बसपा और भाजपा की अपेक्षा सपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया है। स्नातक छात्र पंकज बरुण कहते हैं कि उन्होंने सपा को नही संविधान व आरक्षण बचाने के लिए आवाज़ उठाने वाले राहुल गांधी के नाम पर गठबंधन प्रत्याशी को वोट दिया है, ताकि भाजपा को सत्ता में आने से रोका जा सके। पंकज की बात का समर्थन उस समाज के अन्य कई लोग भी करते हैं।
यही हाल जाटवों का भी रहा। इस बार बसपा के अलावा भीम आर्मी का प्रत्याशी भी होने के कारण जाटव वोटों में विभाजन तो ज़रूर हुआ, मगर बीते चुनावों में भाजपा के पक्ष में जाने वाले जाटव मत इस बार आश्चर्यजनक रूप से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कुशल तिवारी के पक्ष में गए। जबकि भाजपा प्रत्याशी जगदंबिका पाल ने उन्हें साथ लेने का अथक प्रयास भी किया। इसका क्षरण स्पष्ट करते हुए बसपा के पूर्व जिला अध्यक्ष रमेश कहते हैं कि 50 वर्ष से ऊपर आयु के लोगों ने हाथी निशान पर बटन दबाया तो 50 की उम्र से नीचे वालों ने भीम आर्मी के पक्ष में मतदान किया। मगर जागरूक और शिक्षित जाटवों ने संविधान बदलने के भय से गठबंधन को बिना मांगे ही वोट दे दिया। इस नए समीकरण की जानकारी से यहां सपा और भी उत्साहित दिखती है। सपा के जिला प्रवक्ता कलाम सिद्दीकी कहते हैं कि दलितों ने सपा के पक्ष में वोट डाले। वही जीत की श्रेय के असली हकदार हैं।