सत्ता पक्ष के विधायक बनाम पुलिस कप्तान की जंग में योगी सरकार की किरकिरी

September 17, 2024 1:21 PM0 commentsViews: 167
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नजीर मलिक

समर्थकों के साथ धरने पर बैठे विधायक विनय वर्मा

सिद्धार्थनगर। सरकार की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) के विधायक विनय वर्मा और पुलिस अधीक्षक सुश्री प्राची सिंह के बीच चल रही जंग के चलते अब योगी सरकार की किरकिरी होनी शुरू हो गई है।  लोग बाग चर्चा करने लगे हैं कि जिस सरकार के साये तले सरकारी पक्ष के विधायक की नहीं सुनी जा रही है, उसके तले आम अवाम की क्या सुनवाई होगी? गत मंगलवार से विधायक विनय वर्मा को धरने पर बैठे आठवां दिन है, मगर अभी तक शासन प्रशासन में इसे लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं है।  

जिला मुख्यालय स्थित नगरपालिका कार्यालय के सामने अपना दल विधयक विनय वर्मा किसी आम आंदोलनकारी की तरह धरने पर बैठे हैं। वह वहीं रह कर मिलने वालों से केवल एक ही बात कहते हैं कि वह तो आम आदमी के सवालों को लेकर धरने पर बैठे हैं। यह जनहित का सवाल है, वह इस पर समझौता नहीं कर सकते। भले ही उन्हें इस सरकार के बाकी बचे ढाई साल धरने पर ही बैठ कर गुजारना पड़े। इस बात को विधायक बार बार लोगों से कहते हैं। इस पर जनसाधरण के बीच से आवाजें आना शुरू हो गई हैं कि आखिर जीरो टालरेंस वाली सरकार कहां है?  जााहिर है कि जनता का यह व्यंगात्मक सवाल सरकार की किरकिरी कराने लग गया है।

क्या है धरने का कारण?

दरअसल विधायक के धरने का वाजिब कारण भी है। विधायक स्वयं बताते हैं कि एक दलित की हत्या के मामले को थानाध्यक्ष ढेबरुआ ने साजिशन दबा दिया। मैने गरीब की मदद के लिए दारोगा के खिलाफ कारवाई की मांग की। बात छोटी थी। इस आरोप के बाद दारोगा को हटा कर नये थानाध्यक्ष के माध्यम से जाचं करा लेनी चाहिए थी। लेकिन पुलिस कप्तान ने इतनी छोटी सी कार्रवाई भी नहीं की।उन्होंने इस मामले को तमाम बड़े अधिकारियों से कहा। सीएम तक भी बात पहुंचाई लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। वे कहते हैं कि इसके बाद उनके पास शांतिपूर्ण आंदोलन के बाद कोई चारा नही बचता था।

विधायक विनय वर्मा गत 10 सितम्बर कोधरने पर बैठे थे। धरने पर जाने के पहले डीएम की एसपी से वार्ता भी हुई, मगर सूत्र बताते हैं कि कोई नतीजा न निकला। मतलब जीरो टालरेंस का दावा करने वाली सरकार में भी कुछ न हो सका। जिसके कारण विधायक विनय वर्मा कहते हैं कि उन्होंने मन बना लिया है कि अगर अगले चुनाव की घोषणा तक भी उन्हें धरने पर बैठे रहना पड़े तो भी वे बैठेंगे। उन्होंने कहा कि एक राजनीतिज्ञ के लिए जनता का विश्वास ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी होती है। इसे वे कैसे छोड़ सकते हैं।

 

 

 

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