खबर गढ़ने के लिए बीमार बुजुर्ग को मुर्दा बता दुबारा जिंदा कर दिया पत्रकारों ने

October 10, 2024 2:54 PM0 commentsViews: 344
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नजीर मलिक

अकरम, जिसे पहले मुर्दा फिर मुर्दा से जिंदा होना बता दियागया।

सिद्धार्थनगर। पत्रकारिता की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में एक खास खबर बना कर बेचने के लिए कई बार पत्रकारों को अपनी आत्मा तक गिरवी रख देनी पड़ती है।इसी को साबित करते हुए जिले के प़त्रकारों ने एक खबर दिया कि डुमरियागंज के सिकहरा गांव में बुधवार एक मुर्दा आदमी की कबर खोदी जा चुकी थी, मगर दफनाने से पहले ही अचानक वह दुबारा से जिंदा हो गया। यह हैरतनाक खबर जिले में चर्चा का विषय बन गई।

सिकहरा गांव निवासी 55 वर्षींय अकरम बहुत बीमार था।  उसे गंभीर हार्ट अटैक आया था और उसे एम्बुलेंस से आक्सीजन के सहारे  अपने पैतृक गांव  सिकहरा लाया जा रहा था। वैसे भी मूम्बई के सरकारी अस्पताल में मृत व्यक्ति के लिए डेथ सर्टीफिकेट जारी होता है जो जारी नहीं था। मतलब साफ है कि अकरम सफर में जिंदा था। गांव वालों के अनुसार उसे एम्बुलेंस में ला रहे लोग फोन पर परिजनों को बता रहे थे कि उसकी हालत ठीक नहीं है, बचने की उम्मीद कम है। वह कुछ घंटों का ही मेहमान है। फोन पर कहा गया कि वह अकरम को लेकर बुधवार भोर तक पहुंच जायेंगे। इस खबर के बाद गांव वालों ने आपसी सलाह के बाद उसकी कब्र बना दी ताकि अगर उसकी मौत हो जाये तो गर्मी में  दूर सफर के बाद लाश खराब होने से पहले उसे दफनाया जा सके। लेकिन बुधवार की भोर में जब असलम को कोहड़ा गांव में एम्बुलेंस से उतारा गया तो वह मरा नहीं था। केवल बेहोश था उसके जिस्म में हरकत नहीं थी।  ताजा हवा और आराम पाकर  उसके होंठ हिलते ही घर वाले उसे अस्ताल ले गये जहां उसका इलाज होने लगा।

अब आता है मीडिया का रोल। उसकी गिध जैसी नजरें तो खबर बनाने की तलाश में रहती है।। लिहाजा उसने यह खबर बनाया कि अकरम मुर्दा था मगर दफनाने से पहले वह जिंदा हो गया। इसे इस अंदाज में लिखा गया कि पाठक चाह कर भी खबर की तह तक न पहुंच पाये। पत्रकार समझदार होता है। उसे इतना तो पता होना ही चाहिए कि अगर अकरम मर गया होता तो उसकी लाश ऐम्बुलेंस के बजाय लाश गाड़ी से लाई जाती। उसके पास डेथ सर्टीफिकेट भी होता। क्योंकि उसे तीन तीन स्टेट पार  करना था। लेकिन पत्रकार भाइयों को सारी सूचना को ट्वीस्ट कर एक सनसनीखेज खबर बना कर बेचना था। लिहाजा उन्होंने सूचना को सनसनीखेज खबर बनाने का खेल खेला।

दरअसल आज प्रतिस्पर्धा के दौर में पत्रकारों पर बाजार का दबाव बढ़ गया है। विज्ञापन के लालच में सरकारी खबरों और निजी व्यापारिक, शौक्षिक और चिकित्सीय स्थानों आदि में भ्रष्टाचार से जुड़ी खबरें नहीं छपती हैं। क्योंकि इससे उनका विज्ञापन रुक सकता है। उदाहरण के लिए अभी दो दिन पूर्व 22 साल की एक पैरामेडिकल की छात्रा की संदिग्ध हालात में मौत हो गया, लेकिन पत्रकारों ने उस पैरामेडिकल संस्थान का नाम तक नहीं छापा। क्योंकि वह पत्रकारों को विज्ञापन देता है। इसी प्रकार जिले के कई नेताओं के बारे में कुछ भी निगेटिव नहीं छप सकता। सरकार व प्रशासन के खिलाफ तो कभी नहीं, कत्तई नहीं।

ऐसे में हमारे पत्रकार भाइयों के पास बचता ही क्या है? मुर्दो को जिंदा कर देने जैसी फर्जी सूचनाएं या भूत प्रेत की खबरें अथवा अपराध या सूचनात्मक खबरें। और जनता बेचारी मजबूर है ऐसी खबरों को पढ़ने अथवा सुनने के लिए।

 

 

 

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