सीमा पर सायबेरियन पक्षियों की जबरदस्त तस्करी, नेपाल के होटलों पर जुट रही भीड़
अजीत सिंह
सिद्धार्थनगर। बारिश कम होने के कारण पूर्वांचल के तालाबों में पानी तकरीबन खातमे पर है। पानी की कमी से प्रवासी पक्षियांे ने इस साल अपना ठिकाना नेपाल के झीलों में बना लिया है। जिसके कारण भारतीय क्षेत्र के शौकीन चिड़ियाखोर वहां से तस्करी कर साइबेरिन पक्षी लाते हें या फिर वहीं जाकर होटलों में अपना जायका बदलते हैं।
प्रवासी साइबेरियनों में मशहूर लालसर, नीलसर, करछा, शिप्पर, पुछार, कैमा, सीखपर, मुगलिया बत्तख इत्यादि सीमाई इलाके की भारतीय झीलों में कम पानी के कारण नेपाली झीलों में कलरव कर रहे हैं। लिहाजा इस बार नेपाली चिड़ीमारों का धंधा अच्छा चल निकला है।
इस साल नेपाल के शिकारी उन सैलानी पक्षियों का जम कर शिकार कर रहे है और भारतीय मूल के चिड़ियाखोरों का स्वाद बदलने के लिए उनसे भारी मुनाफा कमा रहे हैं। भारतीय चिड़ियाखोर नौ सौ रूपये से लेकर बारह सौ रूपये जोड़ा कीमत देकर चोरी छिपे भारत में लाते हैं।
यही नहीं अगर चिड़ियों को घर न लाना हो तो नेपाल के बार्डर इलाको में स्थित कई होटलों पर बनवाकर खाने की भी व्यवस्था है।
इसके अलावा उन होटलों में भी पच्चीस से तीस रूपये प्रति पीस के हिसाब से बिकता भी है। जिससे कम पैसा खर्च करने वाले शौकीन भी अपने मन की मुराद पूरी कर लेते हैं। हालांकि भारत और नेपाल दोनो ही जगहों पर उनके षिकार पर रोक है, लेकिन नेपाल में कानून का पालन नही हो रहा है।
स्थानीय सीमा से सटे नेपाल के बहादुरगंज, नानपारा, कृष्णानगर, खुनुवा बाजार, तौलिहवा, ंअलीगढ़वा, ककरहवा, भैरहवा,रुपईडीहा सहित कई बार्डर के बाजारों में यह कार्य हो रहा है। इस कार्य को अंजाम होटल मालिक ही देते हैं।
वैसे कुछ भारतीय पक्षी जैसे बटेर, पड़खी, टिकिया आदि स्थानीय हैं। शिकारी इन्हें भी पंसद करते हैं। इनका बसेरा बजहा, चेतिया, हथिवड़ताल, बटुआ ताल एवं पड़ोसी जिले महाराजगंज के फरेन्दा जंगल में स्थित सरुआ ताल आदि हैं। जहां से इनकी तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है।