कमाल यूसुफ को तलाश है एक अदद चुनाव निशान की

March 17, 2016 8:44 AM0 commentsViews: 1230
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नजीर मलिक

 

 

सपा नेता चिनकू यादव और प्रभारी मंत्री शादाब फातिमा के संग समाजवादी विकास दिवस कार्यक्रम में दीप जलाते विधायक कमाल यूसुफ

सपा नेता चिनकू यादव और प्रभारी मंत्री शादाब फातिमा के संग समाजवादी विकास दिवस कार्यक्रम में दीप जलाते विधायक कमाल यूसुफ मलिक 

सिद्धार्थनगर। जिले के सबसे सीनियर सियासतदान और डुमरियागंज के विधायक कमाल यूसुफ मलिक अगला चुनाव किस दल से लड़ेंगे, यह सवाल सियासी गलियारे में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस चर्चा को पिछले दिनों उनके समाजवादी विकास दिवस में भागीदारी से काफी बल मिला है।

वर्ष 1977 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर विधायक बनने वाले कमाल यूसुफ पिछला चुनाव पीस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन फतह के बाद उन्होंने पीस पार्टी से नाता तोड़ लिया।

पीस पार्टी छोडने के बाद वह एक बार फिर अपनी पुरानी पार्टी और समाजवादी खेमे में दिखने लगे। इस दौरान डुमरियागंज के सपा नेता चिनकू यादव पार्टी में अपना कद निरंतर बढाने लगे और कमाल यूसुफ को इस खेमे से दूर करने की कोशिशें भी तेज करते रहे।

दो दिन पूर्व समाजवादी विकास दिवस कार्यक्रम में जिले की प्रभारी मंत्री शादाब फातिमा के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति देख, उनकी अगली राजनीति के बारे में फिर से कयासबाजी शुरू हो गई है।

जानकार बताते हैं कि पीस पार्टी में उनके दरवाजे बंद हो चुके हैं। बहुजन समाज पार्टी में सैयदा मलिक पार्टी की घोषित उम्म्ीदवार है। ऐसे में उनकी सारी उम्मीदें सपा पर टिकी हैं। समाजवादी पार्टी में उनके तमाम पुराने साथी आज भी उनकी कद्र करते हैं। शिवपाल सिंह यादव तो उन्हें बेहद पसंद भी करते हैं।

मगर सवाल यह है कि डुमरियागंज के उभरते नेता राम कुमार उर्फ चिनकू यादव के रहते ऐसा मुमकिन है। हाल के दिनों में चिनकू यादव ने अखिलेश के दरबार में अपनी तगड़ी पहुंच बनाई है। चिनकू यादव ने जिला पंचायत चुनावों में अपनी ताकत दिखा कर अखिलेश के भरोसे को और पुख्ता किया है।

जाहिर है कि चिनकू यादव के चलते कमाल यूसुफ को सपा का टिकट मिलना तकरीबन नामुमकिन दिखता है, लेकिन राजनीति में समीकरण बहुत अहमियत रखते हैं। इसके तहत अगर शिवपाल यादव की कोई गोट फिट बैठी तो चमतकार भी मुमकिन है।

जानकार बताते हैं कि सपा के अलावा और किसी दल में उनका समीकरण फिट नहीं है। ऐसे में सपा से निराशा मिलने पर उनके पास दो ही विकल्प बचते हैं। पहला या तो चुनाव से किनाराकशी या फिर एमिम जैसी किसी पार्टी का साथ। लेकिन कमाल यूसुफ जैसे वरिष्ठ सियासतदान अपनी आखिरी सियासी जंग में एमिम जैसी पार्टी का दामन थामेंगे, ऐसा मुमकिन नहीं लगता है।

चुनाव में अभी देर है, इस दौरान ही कमाल यूसुफ को अपना नया आशियाना बना लेना है। उनकी नजरें तो बसपा सपा दोनों पर हैं। उनके पारिवारिक सूत्र इसकी पुष्टि भी करते हैं। आने वाले कुछ दिनों में अगर कोई बड़ी सियासी खबर सुनने का मिले तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

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