डुमरियागंज में 74 के बाद कभी नहीं जीत पाई कांग्रेस, सर्वाधिक पांच जीतें कमाल यूसुफ के नाम
नजीर मलिक
स्व. काजी जलील अब्बासी और विधायक कमाल यूसुफ मलिक
सिद्धार्थनगर। नये परसीमन के बाद नवगठित डुमरियागंज विधान सभा सीट पर 1974 के बाद से कांग्रेस कभी नहीं जीत पाई। 77 के चुनाव में कांग्रेस का यह किला ढहा तो आगे कि लड़ाई में समाजवादी कमाल यूसुफ क्षेत्रीय राजनीति के मुख्य किरदार बन कर उभरे और अभी तक वह इसकी धुरी बने हुए हैं।।
आजादी के बाद १९५२ में हुए पहले चुनाव से लेकर ९१६२ मे डुमरियागंज सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा। लेकिन परिसीमन के बाद अचानक उलट पुलट हो गया। १९६७ के चुनाव में कांग्रेस से यहां के पूर्व एमएलए काजी अदील अब्बासी के छोटे भाई जलील अब्बासी मैदान में थे। उनके मुकाबले जनसंघ (आज की भाजपा) ने बड़ोखर के सामंत जयद्रथ सिंह उर्फ बच्चा बाबू को मैदान में उतारा था। चुनाव नतीजे चौकाने वाले थे। जयद्रथ सिंह२८१९६ वोट पाकर ३ हजारसे अधिक मतों से चुनाव जीत गये। जलीज अब्बासी को २५११२ मिल सके।
सरकार के भंग हो जाने के कारण ६९ में हुए चुनाव में जलील अब्बासी ने ३७२५४ मात बटोर कर जयद्रथ सिंह को हरा दिया। उन्हें ३३११२ मत मिले। ७४ के चुनाव में भाजपायानी जनसंघ ने उम्मीदवार बदल दिया और सेहरी के कुंवर अजय सिंह काे टिकट दिया, मगर वे भी जलील अब्बासी के मिले ३७५२६ मतों के मुकाबले २४३७२ वोट पाकर बुरी तरह हारे। इसी चुनाव में कमाल युसुफ ने नौजवान प्रत्याशी के रूप में उतर कर १४ हजार से ज्यादा वोट हासिल किया था।
कमाल का उदय
१९७७ के चुनाव में जलील अब्बासी का सामना कमाल यूसुफ मलिक से हुआ। जिसमेंकमाल ने अब्बासी को ४५३२४ मत लेकर अब्बासी को २३ हजार वोटों से करारी शिकस्त दी। ८० के चुनाव में काल ने एक बार फिर कांग्रेस के उम्मीदवार मलिक तोफीक को १४ हजार मतों से हराया। १९८५ का चुनाव काला यूसुफ की लोकप्रियता का शिखर था। इस चुनाव में उन्हें ५६४५० मत मिले जबकि उनके विपक्षी कांग्रेस के काजी शकील को २९४२९ हजार वोट ही मिल सके और २७ हजार वोटो से हारे।
जिप्पी का शिखर और पराभव
आगे की कहानी तो हाल की है। इसके बाद मंदिर आंदोलन के चलते ८९, ९१ और ९३ के विधानसभा चनावों में लगातार तीन बार भाजपा के जिप्पी मिवारी को जीत मिली। १९९६ में सपा ने प्रयोग किया और पुराने कांग्रेसी तोफीक मलिक को सपा का टिकट दे दिया। और पहली बार सपा का खाता खुला। २००२ के चुनाव मे फिर कमाल यूसुफ को सपा से टिकट मिला और उन्होंने भाजपा के जिप्पी तिवारी को हरा दिया।
२००७ के चुनाव में मलिक तौफीक बसपा से लडें और कमाल यूसुफ को हरा कर बसपा का खाता खोला। २०१० में उनकी मौत के बाद हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी खातून मलिक ने एक बार फिर कमाल यूसुफ को हरा दिया, लेकिन २०१२ के गत चुनाव में कमाल यूसुफ ने तौफीक मलिक की बेटी और बसपा उम्मीदवार सैयदा मलिक को हरा कर हिसाब बराबर कर दिया।