मदमस्त हाथी की चाल हुई पस्त
नज़ीर मलिक
“उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का मौजूदा हाल क्या है, इसका सटीक आंकलन बसपा सुप्रीमो मायावती लगा सकती हैं। मगर सिद्धार्थनगर ज़िले में पार्टी की ज़मीन दरक रही है। बसपा के स्थानीय नेताओं ने बीते तीन साल में ऐसी कोई रैली या प्रदर्शन नहीं किया है जिससे उसकी मौजूदगी का पता चल सके। सत्ताधारी दल समाजवादी पार्टी से दो-दो हाथ करने वाली पार्टी के सभी नेता फिलहाल अपने-अपने घरों में दुबके हुए हैं।”
सत्ता विरोधी लहर और ओवर कॉनफिडेंस की वजह से बसपा गत विधानसभा चुनाव में एक भी सीट सिद्धार्थनगर ज़िले में हासिल नहीं कर पाई। मगर समाजवादी पार्टी के 24 फीसदी वोटरों के मुक़ाबले 21 फीसदी मत देकर बसपा वोटरों ने अपनी हैसियत ज़रूर बता दी थी। बावजूद इसके बसपा नेताओं में शिथिलता बढ़ती गई। हाल यह है कि बसपा के कद्दावर नेता और पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम, ज़िलाध्यक्ष दिनेश गौतम, पूर्व जिलाध्यक्ष पीआर आजाद समेत सभी लीडर सियासी परिदृश्य से लगभग गायब हैं। पूरे ज़िले में सिर्फ डुमरियागंज क्षेत्र में सैयदा मलिक और शोहरतगढ़ क्षेत्र में अमरसिंह चौधरी को ही सक्रिय देखा जा रहा है।
बसपा शासन के दौरान पार्टी का बड़ा नेता हो या फ़िर आम वर्कर, सभी सरकारी दफ़्तरों में उनकी हनक देखते बनती थी। थाना-कचहरी में में पार्टी काडर जमकर धौंस दिखाते थे। मगर आज इस पार्टी के नेता-काडर दशहरे के नीलकंठ की तरह गायब हो चुके हैं। थाना-कचहरी में इनका दिखना आश्चर्य की बात होती है। जनता में इस बात की चर्चा है कि लगभग तीन सालों में बसपा ने ज़िले की किसी भी बड़ी समस्या को लेकर आंदोलन नहीं चलाया, न संघर्ष किया। राजनीतिक सरगर्मियों पर पैनी नज़र रखने वाले विश्लेषक कहते हैं कि बसपा का संघर्ष की राजनीति से कटना उसके भविष्य के लिए घातक साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ सोशल इंजीनियरिंग के एक जानकारों का कहना है कि इस पार्टी को जनता के सवालों मसलन बिजली, पानी, खाद जैसी समस्याओं को लेकर संघर्ष करने में कोई लाभ नहीं है। पार्टी के प्रतिबद्ध वोटर दलित हैं, जिन्हें यह समस्याएं अधिक प्रभावित नहीं करती हैं। इसके अलावा चुनाव में पार्टी जिस जाति के व्यक्ति को टिकट देती है, वह अपनी जाति के साथ-साथ दलितों का मत भी पाता है और उसका विजय रथ चल पड़ता है। हालांकि जनता से कटने के आरोप को पार्टी के स्थानीय नेता स्वीकार नहीं करते। पूर्व ज़िलाध्यक्ष पीआर आजाद याद दिलाते हैं कि अभी पिछले दिनों बसपा ने बहिन जी के निर्देश पर प्रदेश व्यापी आंदोलन चलाया है। मगर दिलचस्प यह है कि बसपा का प्रदेश व्यापी आंदोलन जनता को याद नहीं आ रहा।