यूपी में भाजपा और लोकदल साथ मिलकर लड़ेंगे चुनाव, चौधरी अजीत सिंह बनेंगे केंद्र में मंत्री ?
विशेष संवाददाता
लखनऊ। यूपी में भाजपा और लोकदल का गठबन्धन होने जा रहा है। आगामी विधानसभा के आम चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के मुखिया चौधरी अजीत सिंह एक बार फिर भाजपा से हाथ मिलाने जा रहे हैं।भाजपा और लोकदल साथ मिल कर चुनाव लड़ेंगे ।
सूत्रों से मिल रही खबरों के अनुसार भाजपा के शीर्ष नेताओं और चौधरी अजित सिंह के बीच एक दौर की बातचीत हो चुकी है।दोनों दलों में गठजोड़ की पहल इस बार भाजपा की तरफ से हुई है। बस औपचारिक घोषणा बाक़ी है। लोक दल ने भाजपा के सामने समझौते का जो फार्मूला रक्खा है, उसके मुताबिक़ विधानसभा चुनाव में 45 सीटों पर लोकदल लड़ेगी।भाजपा 25 से 30 सीटें लोकदल को देने के लिए तैयार है।
इसके अलावा अजित सिंह को राज्यसभा के साथ केंद्र में मंत्री भी बनाया जाये ।साथ ही दशकों से अजित सिंह के पास रही 12 तुग़लक़ रोड कोठी जो सरकार ने उनके बाग़पत से लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनसे खाली करा ली थी और जिसमे कभी चौधरी चरण सिंह रहा करते थे, अजित सिंह को वापस मिल जाये।
सूत्र बताते हैं की भाजपा ने अजीत सिंह की सारी शर्तें मान ली हैं ।अब सिर्फ सीटों पर पेंच फंसा है ।वो भी दो चार दिन में तय हो जायेगा।बताया जाता है कि भाजपा से जाटों की नाराज़गी ने भाजपा को लोकदल के क़रीब लाने पर मजबूर कर दिया है।अजित सिंह की मजबूरी ये है कि वो बागपत से लोकसभा चुनाव हार गए उनके सुपुत्र जयंत चौधरी मथुरा से हारे।जिसके बाद से जाटों में उनका वर्चस्व लगातार कम होता जा रहा है।
मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के बाद से जाट और मुस्लिम जो लोकदल के परंपरागत वोटर रहे हैं उनदोनो का एक साथ आना भी अब मुश्किल दिख रहा है।वहीं भाजपा को लग रहा है हरियाणा में हुए बवाल से जाटों की नाराज़गी का असर यूपी चुनाव में पड़ सकता है।इसलिए अजित सिंह जाटों के बड़े नेता हैं ।उन को साथ रख कर भाजपा से जाटों का पलायन रोका जा सकता है।ऐसे में दोनो को एक दुसरे की सख्त ज़रुरत है।
उधर कांग्रेस नितीश लालू के साथ अजित सिंह के न जाने से नए गठबंधन को तगड़ा झटका लगेगा।अजीत सिंह बिहार से राज्यसभा चाहते थे।मगर ये नामुमकिन था। हालांकि अजित सिंह अब यूपी में विरासत खोते जाने वाले नेता बन कर रह गएं हैं। नीतीश कुमार पर दबाव बनाने के लिए वह बीजेपी के नेताओं से संपर्क में होने का खेल कर रहें हैं, ताकि नीतीश कुमार से अपनी मांगों को मनवा सकें। नीतीश उनकी मांगों पर गौर नही करेंगे, तब ही अजित बीजेपी से हाथ मिलाएंगें।