प्रधान मंत्री जी! विकास के लिए हमे कुछ न दीजिए, मगर हमारा अस्थि कलश तो दे दीजिए
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। गौतम बुद्ध की क्रीड़ास्थली रूप में मशहूर सिद्धार्थनगर जिले में पर्यटकीय विकास की जबरदस्त उम्मीद है, लेकिन तथागत बुद्ध का अस्थिकलश यहां न होना विकास में सबसे बड़ी रूकावट है। कपिलवस्तु से प्राप्त अस्थि कलश जब तक नहीं आयेगा, जिले के विकास की रफ्तार थमी ही रहेगी। लोगों को विकास के पुरोधा और पीएम नरन्द्र मोदी जी से अपेक्षा है कि वह कलश को उसके मूल स्थान पर जरूर भेजेंगे।
सिद्धार्थनगर ने पर्यटकीय विकास की जरूरी शर्ते पूरी कर ली हैं। कपिलवतु को देष के तमाम हिस्सें से जोड़ने लिए ब्राडगेज लाइन का रेल नेटवर्क तैयार हो चुका है। कपिलवस्तु को सड़क मार्ग से राजधानी व तमाम बड़े शहरों को जोड़ने के लिए नेशनल हाइवे तैयार होने के कगार पर है।
बस जरूरत है गौतमबुद्ध के अस्थि कलश को कपिलवतु में स्थापित करने की। पहले सरकार की दलील थी कि इसे लिए कपिलवस्तु में सुरक्षा नहीं है। अब वहां संग्राहालय भी बन चुका है। लेकिन केन्द्र सरकार इस दिशा में उदासीन है। लोगों का कहना है कि मोदी साहब हमें विकास के नाम पर सिर्फ अस्थि कलश दे दें तो हमारा विकास अपने आप हो जायेगा।
बताते चलें कि अस्थि कलश को पूरी दुनियां के बौद्धमतावलंबी बेहद आदर देते हैं। उसके दर्शन के लिए वह दुनियां के कोने कोने से आते हैं। जब कलश यहां होगा, तो जाहिर है दुनियां के कोने कोने से लोग सिद्धार्थनगर आयेंगे। लेकिन सवाल यही है कलश आयेगा कब?
कलश लाने का प्रयास- जगदम्बिका पाल
इस बारे में क्षेत्रीय सांसद जगदम्बिका पाल का कहना है कि पिछले पखवारे उन्होंने केन्द्रीय र्प्यन मंत्री को कपिलवस्तु की भूमि पर ले जाकर हालात से रूबरू करा दिया है। वह कलश को लाने के लिए कोशिश का रहे हैं। उम्मीद है वह जल्द कामयाब होंगे। याद रहे कि अस्थि कलश खुदाई के दौरान कपिलवतु से ही मिला था।
विकास में अस्थि कलश का रोल
दरअसल सिद्धार्थनगर के विकास में अस्थि कलश का रोल बहुत ज्यादा है। अभी कपिलवस्तु के दर्शन के लिए साल में पांच हजार से भी कम विदेशी आते हैं। कलश के यहां आ जाने पर यह तादाद पांच लाख से अधिक हो जायगी। इससे होटल, जलपानगृह, टेराकोटा, दस्तकारी, कशीदाकारी आदि से ताल्लुक रखने वाले व्यापार को बहुत बल मिलेगा। इससे जिले का व्यवसाय प्रति साल 500 करोड़ बढ़ सकता है।
क्या है अस्थि कलश?
तथागत गौतम बुद्ध की मृत्यु के बाद उनका अस्थियों को आठ हिस्सों में बांटा गया ाा। उसका एक हिस्सा उनके राजमहल कपिलवस्तु में भी आया था, 70 के दशक में खुदाई के बाद मिले कलश को पहले कलकत्ता, बाद में दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में रख दिया गया। तब से कलश वहीं पर है।
कपिलवस्तु पोस्ट ने पहली बार दिया अस्थि कलश का चि़त्र
तथागत का अस्थि कलश किस हालत में हैं, कपिलवस्तु पोस्ट ने इसकी खोज की तो पहली बार उसका चित्र सामने आया। दमकता कलश हर बौद्ध विचार समर्थक को पहली नजर में आकर्शित करता है। अगर यहां आ जाये तो बौद्ध मतावलंबी अपने पवित्र अस्थि कलश को देखने सिद्धार्थनगर टूट पड़ेंगे, इसमें संदेह नहीं।