बसपा नेता मुमताज ने इंसानियत के तहत जुर्माना जमा कर, दो कैदियों को कराया रिहा
— प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा का नहीं मिला कैदियों को लाभ, एक नेता ने रखी इंसानियत की लाज
नजीर मलिक
बसपा नेता मुमताज अहमद, जेल अफसर व रिहा हुए दोनों कैदी
सिद्धार्थनगर। जिले के नौजवान महज कुछ हजार रुपयों के लिए जेल में अनिश्चित काल की सजा काट रहे थे। तभी प्रधानमंत्री के जन्म दिवस पर कैदियों कि रिहाई में रियायत देने का फरमान जारी हुआ। रिहाई के वक्त पता चला कि कैदी किसी संस्था द्धारा जुर्माने की रकम जमा करने पर ही रिहा हो सकेंगे। जिले के एक बसपा नेता मुमताज अहमद को जैसे ही इसका पता चला, उन्होंने इंसानियत के तकाजे के तहत उन दोनो नौजवानों की रिहाई के लिए जुर्माना अदा कर उन्हें जेल से आजाद करा दिया। उनके इस काम की शहर में काफी चर्चा है।
क्या था पूरा मामला?
बताया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी के 68वें जन्मदिन के अवसर पर प्रदेश के अड़सठ कैदियों को रिहा किया जाना था, जो सजा काट चुके थे, और नकद जुर्माना न दे पाने की वजह से जेलों में बंद थे। ऐसे कैदियों में सिद्धार्थनगर जेल में बंद दो कैदियों का नाम भी शामिल था, जिन्हें रिहा किया जाना था।
बताया जाता है कि ढेबरुआ थाना क्षेत्र के ग्राम झकहिया के रफीक और कठेला के गुडुडू जायसवाल नामक उन दोनों कैदियों की आशाओं पर तुषारापात हो गया जब उन्हें पता चला कि उन्हें जुर्माना देने के बाद ही रिहाई मिलेगी। उन कैदियों का कहना था कि अगर उनके पास जुर्माने की रकम की व्यवस्था ही होती तो वे कब के ही छूट जाते।
मुमताज अहमद ने जमा किया जुर्माना
इस मामले की जानकारी किसी तरह बसपा नेता मुमताज अहमद को लगी तो वे जेल पहुंचे। घटना की कवरेज के लिए मौके पर मीडिया भी मौजूद थी। मीडिया ने जेलर से सवाल किया कि जब जुर्माना अदा करके ही रिहाई पानी तो उसमें सरकार का क्या एहसान? जवाब में जेलर ने शासना देश के हवाले से बताया कि किसी संस्था द्धारा जुर्माना देने के बाद ही रिहाई का आदेश है।
इस पर बसपा नेता मुमताज अहमद ने दोनों कैदियों के जुर्माने की रकम 4900 जमा कर दोनों की रिहाई कराया। बता दें कि दो बंदी युवकों के घर कोई अन्य सदस्य नहीं है। वह एक मामले में अदालत द्धारा निर्धारित सजा काट चुके थे, मगर केवल ५ हजार जुर्माना न जमा कर पाने के कारण अरसे से रिहा नहीं हो पा रहे थे। हालांकि दोनों युवकों को मुमताज अहमद ने इंसानियत के तकाजे के तहत रिहा तो करा दिया, मगर एक सवाल कायम है कि जब कैदियों को जुर्माना अदा करने के बाद ही रिहा किया जाना था तो इसमें सरकार की घोषणा का सहसान कहां है? इस बारे में जब मुमताज अहमद से पूछा गया तो उन्हों ने केवल इतना ही कहा कि…
“उनका जो काम है वह अहले सियासत जानें,
मेरा पैगाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे”