सिद्धार्थनगरः बीजेपी के श्याम बिहारी को टक्कर देने की रणनीति बनाने में जुटे सभी उम्मीदवार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। नगरपालिका सिद्धार्थनगर के अध्यक्ष पद के चुनाव की सारी रणनीति बीजेपी के इर्द गिर्द घूम रही है। वर्तमान में हर उम्मीदवार जनता के सामने यही दावा करने में जुटा है कि बीजेपी को हराने की ताकत उसी में है। यह सही है कि जिसकी भी लड़ाई होगी, बीजेपी से ही होगी, मगर उसे टक्कर देने वाला उम्मीवार कौन होगा, अभी स्पष्ट नहीं हो रहा है।
भाजपा ने इस बार अपना उम्मीदवार श्याम बिहारी जायसवाल को बनाया है। गत नगर पालिका चुनाव में श्याम बिहारी ने निर्दल चुनाव लड़ कर 2265 वोटों के साथ दूसरा स्थन हासिल किया था। तब सपा समर्थित जमील सिद्दीकी 3165 वोटों के साथ चुनाव जीते थे। आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा का सिंबल मिलने के बाद श्याम बिहारी की स्थिति और मजबूत हुई है।
दूसरी तरफ गत चुनाव में 2208 वोट पाकर फौजिया तीसरे नम्बर पर रहने वाली आजाद, 1668 मत पाकर चौथे नम्बर पर रहने वाले पूर्व अध्यक्ष घनश्याम जायसवसल के अलावा सपा के नये प्रत्याशी संजय कसौधन तथा कांग्रेस के मनव्वर हुसैन लड्डन हैं, जो भाजपा को हराने का दावा कर रहे है।
सपा के संजय कसौधन की रणनीति ?
समाजवादी पार्टी की गणित साफ है। वह नगर के लगभग 2000 कसौधन वैश्य मतों को सामने रख कर पिछड़ों व मुस्लिमों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि समाजवादी पार्टी को वहीं शिकस्त दे सकती है। लेकिन सपा उम्मीदवार संजय कसौधन की दिक्कत यह है कि अभी तक शहर का कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा उनके समर्थन में खुल कर नहीं उतरा है। सपा की चुनावी रणनीति अभी कमजोर दिख रही है।
फौजिया आजाद खेमा
निर्दल उम्मीदवार फौजिया आजाद पढ़ी लिखी महिला हैं। पिछले दो चुनावों में वह अच्छे वोट बटोर चुकी हैं। वह महिलाओं से घरों के अंदर पहूंच कर सीधे संवाद करती हैं। वो लोगों को बताती है कि यदि थोड़े से अल्प संख्यक वोट उनकी तरफ और बढ़ जायें तो बो चुनाव जीत सकती हैं। उनकी प्राथमिकता अल्पसंख्यक और कमजोर तबके के वोटों में घुसपैठ बनाना है। उनके हौसले बुलंद हैं।
घनश्याम जायसवाल हो सकते है छुपा रुस्तम
इस बार निर्द के रुप में मैदान में उतरे घनश्याम जायसवाल हालांकि पिछले चुनाव में चौथे नम्बर पर थे, मगर इससे उनकी ताकत का अंदाजा लगाना भूल होगी। वह दो बार चुनाव जीत भी चुके हैं। वह चुनावी रणनीति बनाने में कुशल हैं। पुराना नौगढ़ के ९ वार्डों में उनकी पकड़ किसी से छुपी नहीं है। इस बार भाजपा के बजाय निर्दल लड़ने से वो मुस्लिम मतों में भी पैठ बनाने में लगे हैं। वह इस चुनाव में डार्कहार्स बनने में सक्षम हैं।
कांग्रेस के लड्डन
कांग्रेस प्रत्याशी मुनव्वर हुसैन भी पहली बार मैदान में उतरे हैं और ठाजपा को हराने का दावा कर रहे हैं। वो कहते हैं कि शहर का ब्रहमण समाज इस बार कांग्रेस के साथ है। दलित भी बसपा से नाराज है। वो भी कांग्रेस के पारम्परिक वोटर रहे हैं। फिर उसमें मुस्लिम वोट जोड कर चुनाव जीता जा सकता है। कांग्रेस के ब्रहमण नेता कैलाश वाजपेयी सजातीय लोगों में काम करने के लिए जुट गये हैं।
कुल मिला कर अभी मतदाता का रुझान स्पष्ट नहीं है। वह पूरी तरह खामोश हैं। शहर का भाजपा विरोधी मतदाता अभी स्थिति का आंकलन करने में लगा है कि भाजपा को कौन हरा सकता है। फिलहाल भाजपा उम्मीदवार श्यामबिहारी जायसवाल अपने प्रतिबद्ध वोटों के कारण काफी निश्चिंत दिखते हैं। लेकिन हर बार भाजपा को इस नगर से अंतिम समय में जबरदस्त चुनौती मिली है। यही कारण है कि विगत पांच चुनावों में ३ बार यह सीट भाजपा से छीनी गई है। इस बार ऊट किस करवट बैठेगा, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।