सियासत के बाजार में बसपा का ‘बाजार भाव’ ठंडा, हाथी को नहीं मिल रहे खरीदार?
कभी लड़ते थे यहां से मुहम्मद मुकीम, अरशद खुर्शीद जैसे धाकड़, अब चिमटे से भी नहीं छूना चाहते टिकट, ढूंढे से भी नहीं मिल रहे उम्मीदवार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जब तक यह राइटअप पाठकों तक पहुंचेगा, आचार संहिता घोषित करने का समय आ जायेगा। यानी चुनाव सर पर खड़े हैं, मगर डुमरियागंज संसदीय सीट से अभी तक बहुजन समाज पार्टी से टिकट की दावेदारी करने वाले चेहरे समाने नहीं आ सके हैं। राजनीतिक प्रेक्षक इसके पीछे राजनीति की बाजार में बसपा के बाजार भाव का गिरना बताते हैं। वह बाजार के गणित के हवाले से कहते हैं कि जब मंडी में किसी वस्तु की बिक्री घटती है तो उसके दाम को कम कर दिया जाता है, ताकि उसके खरीदार बड़ें। लेकिन यहां की सियासी मंडी में बसपा की दुकान पर टिकट को कोई ग्राहक दिख ही नहीं रहा है।
कभी टिकट के लिए लगती थीं लाइनें
बता दें कि बसपा जिले का वह राजनीतिक दल है जिसके टिकट की दावेदारी के लिए जिले में लम्बी लम्बी लाइने लगीं रहती थी। यहां के विधानसभा व लोकसभा चुनाव के दौरान सदा बाहर से उम्मीदवार लाये जाने की परम्परा रही है। धन बल से मजबूत ऐसे उम्मीदवार यहां सदा ही अपने प्रतिद्धंदी उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर देने में सफल भी रहे हैं। लेकिन इस बार डुमरियागंज लोकसभा सीट से बसपा के टिकट का कोई दावेदार चेहरा सामने नहीं आया है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर सियासत के बाजार में बसपा का बाजार भाव गिरने की वजह क्या है?
ध्रुवीकरण के चलते टूट गया ब्राह्मण वोट बैंक
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी प्रदेश के 19 फीसदी दलित थोक वोटों के बल पर किसी भी सीट से किसी बड़े जातीय समूह के उम्मीदवार को चुनाव में उतार कर विरोधियों को कड़ी टक्कर देती थी। ऐसे में उसके टिकट की काफी कीमत होती थी। लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनावों में वोटों के निरंतर ध्रुवीकरण के कारण उसका दलित वोट घट कर मात्र 13 पतिशत पर आ गया। बसपा से लड़ने वालों में ब्राह्मण और मुस्लिम नेताओं की तादाद अधिक होती थी। मगर बसपा नेता सतीश मिश्र की लाख कोशिशों के बावजूद ब्राह्मण मतों पर भी उसकी पकड़ छूटती गई। लिहाजा इस बार बसपा से टिकट का दावेदार कोई भी ब्राह्मण नेता सामने नहीं दिख रहा है।
चिमटे से भी हाथी नहीं छूना वाहते मुसलमान
इसके अलावा बसपा में टिकट की दावेदारी करने वाला मुस्लिम नेताओं का बड़ा तबका भी उनसे दूर होता चला गया। पहले मुसलमान 19 फीसदी दलित और इतने ही प्रतिशत मुस्लिम मतों के सहारे चुनाव लड़ता था। लकिन अब उसे लग रहा है कि उसके दलित वोट घट कर 13 प्रतिशत ही रह गये हैं तथा समय समय पर बसपा की बढ़ती नजदीकियों के चलते अब मुसलमान भी उसे वोट देने से परहेज करने लगे हैं। यही कारण है कि बसपा का टिकट मुस्लिम नेताओं की नजर में किसी कीमत का नहीं रह गया है। यहां गत विधनसभा, लोकसभा चुनावों में मुहम्मद मुकीम, अफरोज मलिक, अरशद खुर्शीद जैसे साधन सम्पन्न नेता की पहली पसंद बसपा हुआ करती थी। मगर अब यही लोग इस पार्टी का टिकट लेने को कौन कहे, चिमटे भी से भी छूना पसंद नहीं करते।
बहन जी उतारेंगी कोई न कोई उम्मीदवार
इस बारें में जब कपिलवस्तु पोस्ट ने बसपा के कई बड़े नेताओं से बात की तो बहन जी के खौफ से अधिकृत बयान न देते हुए बताया कि पार्टी का कैडर आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं है। इसके अलावा वोटों का गणित भी गड़बड़ाया हुआ है। इसलिए उम्मीवार सामने नहीं आ पा रहे। लेकिन बहन मायावती जी के पास कुछ टिकट के दावेदार जरूर पहुंचे होंगे, वह जल्द ही किसी न किसी के नाम का घोषणा करेंगी।