कपिलवस्तु:सरकारें आईं और चली गईं, किसी ने नहीं ली राजमहल की सुधि, बुद्ध तुम कब आओगे
नजीर मलिक
“गौतम बुद्ध के रूप में कुल विश्व को अपने ज्ञान प्रकाश से आलोकित करने वाले शाक्यराज शुद्धोधन पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ का राजमहल पूरी तरह उपेक्षित है। 39 साल पहले इसके वजूद में आने के बावजूद अभी तक प्रदेश में आई आधा दर्जन सरकारें इस ऐतिहासिक क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाने में नाकाम रही हैं”
सिद्धार्थनगर जिला मुख्यालय से 19 किमी दूर नेपाल सीमा से सटे गनवरिया गांव में महाराज शुद्धोधन के महल के अवशेष आज खडे़ हैंं। सिद्धार्थ ने युवावस्था के दिन इसी राजमहल में व्यतीत किये थे। यहीं पास में वह उपवन भी है, जहां घायल हंस का क्रंदन देख सिद्धार्थ के मन में नये विचारों ने द्धंद मचाया था। यहीं बीमार बूढ़े को देख कर उन्होंने घर छोडा था और बुद्धत्व पाप्ति की थी। आज उनका खंडहर बन चुका राजमहल बुद्ध को फिर आवाज दे रहा है।
इस स्थान को पुरातत्वविदों ने 1971 से 76 तक हुई के बाद खोजा था। भव्य राजमहल को शुंगकाल तक बेहद महत्वपूर्ण माना जाता था। बुद्धकाल मे उनका राजमहल क्षेत्र कपिलवस्तु नगर का हिस्सा था। उस समय कपिलवरूु की यश कीर्ति पूरे विश्व में फैली हुई थीं।
1976 में राजमहल के अवशेष मिलने के बाद 1980 में तत्कालीन केन्द्र सरकार ने क्षेत्र के विकास के लिए 2 सौ करोड की महायोजना घोषित की। उसके बाद मायावती, मुलायम और राजनाथ सरकारों ने भी अरबों की योजनाएं घोषित कीं, लेकिन उसे धन देने की कौन कहे, मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने वहां हवाई पटृटी का निर्माण तक कैंसिल कर दिया।
राजमहल व स्तूप क्षेत्र के विकास के लिए प्रदेश सरकार ने 98 एकड भूमि अधिग्रहण कर रखा था। सारे विकास कार्य इसी भूमि पर किये जाने थे। मगर अखिलेश सरकार ने इसमें से भी पचास एकड भूमि लेकर विश्वविदृयालय की स्थापना कर दी। जबकि इस अच्छे कार्य कार्य के लिए जिला मुख्यालय पर जमीन की कमी नहीं थी।
इस बारे में राम कुमार बौद्ध का कहना है कि मुलायम राजनाथ कल्याण सभी बुद्ध विरोधी हैं। मायावती ने कुछ किया था, मगर तभी उनका शासन चला गया। उनके अनुसार अब तो इस इलाके के विकास के लिए बुद्ध को फिर से अवतरित होना पड़ेगा। दूसरी तरफ जिला पर्यटन अधिकारी अरविंद राय का कहना है कि क्षेत्र के विकास के लिए शासन क्रमशः धन दे रहा है। योजनाएं चल रही हैं। आने वाले दिनों में इस इलाके का निश्चित ही विकास होगा।