धर्मवार जनसंख्या के आंकड़े खुले, बनेंगे नए सियासी समीकरण
नज़ीर मलिक
जनगणना 2011 के ताज़ा आंकड़ों में मुसलमानों की आबादी स्पष्ट होने से स्थानीय राजनीतिक समीकरण पलट गए हैं। नए आंकड़ों के मुताबिक सिद्धार्थनगर ज़िले में मुस्लिम आबादी लगभग एक तिहाई है। ज़ाहिर है कि मतदाता भी इसी अनुपात में होंगे। नए सरकारी आंकड़े ने सेकुलर दलों और मुस्लिम सियासतदानों में हलचल मचा दी है। वहीं धर्म और जाति के भ्रामक आंकड़े पेशकर जीत की बिसात बिछाने वाले सियासतदानों के माथे पर बल पड़ गया है। फिलहाल ऐसे राजनीतिज्ञ इस पशोपेश में हैं कि सिद्धार्थनगर की राजनीति में अब उनकी दाल गल पाएगी या बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ेगा।
ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक सिद्धार्थनगर ज़िले की कुल आबादी 25 लाख 59 हजार 297 है। इसमें मुसलमानों की आबादी 7 लाख 48 हजार 73 यानी कि कुल आबादी का 29.23 प्रतिशत है। अगर बौद्ध, सिख और इसाई अल्पसंख्यकों की एक प्रतिशत आबादी अलग कर दी जाए तो बाकी 69 प्रतिशत आबादी हिंदू समाज की है जिसमें जिसमें लगभग 17 फीसदी अनुसूचित समुदाय के हैं।
सिद्धार्थनगर ज़िले में मुसलमानों की सर्वाधिक 37.91 फीसदी आबादी डुमरियागंज में है जबकि 36.92 फीसदी भागीदारी के साथ इटवा में दूसरे पायदान पर हैं। नौगढ में यह फीसदी 26.53 और शोहरतगढ में 26.86 हैं। पूरे ज़िले में सबसे कम मुसलमान बांसी तहसील में हैं जहां इनकी भागीदारी महज़ 20.86 फीसदी है।
धर्मवार जनसंख्या जारी होने से ज़िले में दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों के माथे पर जहां शिकन हैं, वहीं सेकुलर दलों के हौसले बुलंद हैं। उनका मानना है कि इस समीकरण के मद्देनज़र अब उन्हें चुनावों में ताकतवर प्रत्याशी उतारने में मदद मिलेगी। सर्वाधिक जोश मुस्लिम नेताओं में है। उनमें विश्वास जगा है कि इस घोषणा के बाद अब मुकामी सियासत में उनका कद बढ़ेगा। अभी तक भ्रम फैलाकर अक्सर उन्हें राजनीति से वंचित कर दिया जाता था। चुनावों के दौरान आबादी का भ्रामक आंकड़ा पेश करके सेकुलर दलों और मुस्लिम प्रत्याशियों को हताश कर दिया जाता था।
शहर के एक दक्षिणपंथी नेता का कहना है कि भविष्य में अगर मुसलमानों का पिछड़ों या दलितों के साथ सबल गठबंधन हुआ तो उनकी विचारधारा वाले दलों को नुकसान हो सकता है। मालूम हो कि जिले में दलित आबादी 17 प्रतिशत है। पिछड़ों की गिनती अभी सामने नहीं आई है। सपा नेता मुमताज अहमद, कांग्रेसी नेता अतहर अलीम, पूर्व ब्लॉक प्रमुख सलमान मलिक का कहना है कि मुकामी राजनीति में अब उनका वज़न ज़रूर बढ़ेगा। मगर एक चिंता भी बनी हुई है। सपा नेता निसार बागी और खुर्शीद अहमद का कहना कि आबादी का महत्व देख यहां विशुद्ध मुस्लिम राजनीति करने वाली पार्टियां भी अपने प्रत्याशी उतारेंगी, जिन्हें रोकने भी कम आसान नहीं होगा। बहरहाल यूपी का विधानसभा चुनाव अभी साल भर दूर है, लेकिन धर्मवार आंकड़े ने राजनीतिक दलों और जागरूक तबके में हलचल ज़रूर मचा दी है।
10:12 PM
वोटर लिस्ट में इस्सी ज़्यादा मुस्लिम हैं चाचा ज़रा एक बार वोटर लिस्ट भी मिला ले मेरी आप से गुज़ारिश है क्यों की वोटर लिस्ट के हिसाब से संक्या और होनी चाहिए जब वोटर ज़्यादा है तो पापुलेशन उससे ज़्यादा होगी
12:23 AM
सियासत की जंग होगी अब सुरु
मुस्लिम नेता खुश ना हों क्योंकि जब वक़्त अता है एक होने की तो ये खुद चंद रूपये लेकर अपना उल्लू सीधा करते है
उस वक़्त इन नेताओ को 1 ही बात याद रहती है ।
अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता