न पढ़ाएंगे, न भोजन देंगे, गांव के बच्चे हैं, किसी अफसर, नेता के नहीं
एम सोनू फारूक
“सिद्धार्थनगर के रमपुरवापुर दुबे गांव में टीचर न होने से जूनियर हाई स्कूल जुलाई से बंद है। उसी गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई तो चल रही है, लेकिन बच्चों को मिड डे मील नहीं दिया जा रहा है। दो महीनों से व्यवस्था में सुधार के लिए कोई प्रयास नहीं हुआ। होता भी कैसे, बच्चे तो गरीब के हैं। अगर यह किसी अफसर या नेता के बच्चे होते तो अब तक आसमान सिर पर उठा लिया गया होता”
मिठवल ब्लाक के इस गांव में जूनियर स्कूल में 180 बच्चों का दाखिला है, मगर स्कूल में सिर्फ एक चपरासी ही तैनात है। लिहाजा बच्चों की पढ़ाई ठप्प है। उनका दोपहर का भोजन भी बंद है। वैसे अब बच्चे स्कूल से मुह मोड़ चुके हैं। स्कूल पर ताला लगा है। कहने को परसा कला जूनियर स्कूल के टीचर उमेश चौधरी को यहां पढ़ाई की जिम्मेदारी दी गयी है। चौधरी का कहना है कि वह अपना स्कूल देखें या इसे। वैसे भी उन्हें कोई लिखित आदेश तो मिला नहीं है।
दूसरी तरफ उसी गांव के प्राइमरी स्कूल में 220 बच्चे पढ़ते हैं। वहां कई सहायक अध्यापक भी तैनात हैं, मगर वहां भी बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल रहा है। यहां सरकारी नियम आडे़ आ रहा है। नियम कहता है कि स्कूल में जब तक प्रधानाध्यापक नहीं होगा, भोजन नहीं बनेगा। अब साहब की मर्जी है कि वहां हेडमास्टर कब भेजेंगे। फिलहाल तो 4 सौ बच्चों को पढ़ाई और दुपहरिया भोजन दोनो का दंश झेलना पड़ रहा है।
मिठवल ब्लाक के सहायक बेसिक शिक्षाधिकारी चंद्र भूषण पांडेय का कहना है कि उन्होंने इसकी जानकारी बेसिक शिक्षाधिकारी को दे रखी है। जल्द कोई व्यवस्था होगी। लेकिन गांव वाले उनके बयान की चुटकी लेते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इस स्कूल में न नेता के बच्चे पढ़ते हैं, न अफसर के। इसलिए बच्चों का भविष्य खराब होता है, तो नेता और अफसरों की बला से।
6:30 PM
बेहतरीन रिपोर्ट