चुनावी चकल्लसः मिलगै हमरे परधान कै मनपसंद निसनियां, एक.एक बित्ता उछाल मारी अबकी परधनियां।
हमीद खान
प्रधान जी को चुनाव निशान मिलने के बाद समर्थक टोपी, बिल्ला, झंडा अंगोछा से सज गये। झूमते और गाते हुए होटलों पर बढ़ चले। होटलों में बैठने की जगह तो थी नहीं, खडे़ खडे़ समोसा और चाय की चुस्की लेते हुए गुनगुनाने लगे। मिलगै हमरे परधान कै मनपसंद निसनियां, एक एक बित्ता उछाल मारी अबकी परधनियां।
चाय, समोसा के बाद पान में गुटका डाल कर कूचते हुए सब समर्थक आत्मविश्वास के साथ घर की तरफ चल पडे। बडे़ मजे में गुजर रहा है प्रधानी चुनाव का समय। खाना, अमल पानी सब कुछ मिल रहा रहा है। ऐसा ही चुनाव हर साल आवै तो बडा अच्छा है। अपने लोगों की सारी गरज निपट जाया करेगी।
वै बोले अरे यार हमार तो तबियत खराब हयी है। मेहररूवा के खराब होइगवा। भैया परधान बेचारे तुरन्त हम दोनों कै अपने मोटरवा से हास्पिटवा में पहुंचाय दिहिन। जुगजुग जियो प्रधान जी। बात सुनते सुनते इनके पेट बडे तेज दर्द होने लगी। बोले अरे यार खाली खाने पीने के लिये यह चुनाव आया है। पता है तुम को गांव के विकास के लिये कितने मद से सरकार पैसा देती है।
किसको आवास की जरूरत है। किसको वृद्धा पेंशन चाहिये। कितने मनरेगा मजदूरों को जाब की जरूरत है जो गांव छोड कर मुम्बई में भंगार ढ़ोते और झिल्ली बटोरते हैं। जूतों की फैक्टरी में हथौडी पीटते सुलेशन लगाते लगाते हाथ के हथेली की चमडी मोटी हो जाती है। सप्ताह भर चड्डी और बंडी में कटता है। सिर्फ घर आते समय जींस और शर्ट पर काला चश्मा और हैट चढा़कर निकलते हैं।
गांव के छुटकुवा को चच्चा पहचान नहीं पाये। का हो कहिया आयो। मेरे को तो परसो ही आया थकान वकान के वजह से आज ही घूमने को निकला है। इधर प्रधानी चुनाव आया न तो अपने को वोट मारने के लिये मुलुक आया है।
देखो तो यह है मेरे गांव के लोगों की जिन्दगी का सच सपना। यार खाने, पीने की बात को पीछे छोडो, जीना है तो खाना है। खाने के पीछे मत भागो। सिर्फ देखो कौन प्रधान गांव के सभी लोगों के लिये विकास का एजेंडा लेकर आया है। हम अपने गांव की सरकार बना रहे हैं। हमें सही प्रत्याशी चुनने की जरूरत है।