जी हांǃ इस बार मझाैली झील, लेवड और पथरा तालों में सुरखाब के पर लगे हैं
नजीर मलिक
सुरखाब के पर, यानी बेहद खास। इसीलिए यह मुहावरा प्रचलित है, कि क्या फलां में सुर्खा के पर लगे हैं। जाहिर है कि सुर्खाब का पर बेहद खास होगा। फिर जनाब अगर सुरखाब का पर इतना खास है तो इतने खास परों वाला सुरखाब परिंदा तो और भी खास होगा ही।
बेहद खुशी है कि दशकों बाद जिले की कम से कम तीन झीलों में अद्धितीय और बेहद खूबसूरत पक्षी सुर्खाब के कई जोड़े साइबेरिया से यहां मेंहमाान नवाजी के लिए आये हुए हैं। इनके साथ अन्य कई प्रकार के साइबेरियन पक्षी भी आये हुए हैं
खबर है कि सुरखाब के जोड़े इस बार जिले के मझौली सागर, लेवड़ ताल और पथरा ताल में देखे गये है। इनकी तादाद कितनी है, यह तो पता नहीं, लेकिन अनुमान है कि कम से कम डेढ़ सौ जोड़े तो होंगे ही। मुमकिन है यह तादाद और भी ज्यादा हो।
इधर दस सालों से सुरखाबों का जोड़ा यहां नहीं दिखता था। अचानक साइेबेरियन पक्षियों के आगमन पर इस बार सुर्खाब भी दिख गये। चटख रंगों वाले यह पक्षी जितने खूबसूरत होते हैं, उनका मांस भी उतना ही लजीज होता है। इसलिए यह शिकारियों की पहली पसंद होते हैं।
सुरख़ाब यानी हंस की प्रजाति का एक पक्षी जिसके पखों की खूबसूरती की वजह से प्राचीनकाल से इस पखेरु को ख़ास रुतबा मिला हुआ है । हंस जहाँ सफेद रंग के होते हैं वहीं सुरखाब अपनी पीली, नारंगी,, भूरी, सुनहरी व काली रंगत के पंखों की वजह से अत्यधिक आकर्षक होते हैं ।
ख़ूबसूरत, मुलायम, रंगीन पंखों का उपयोग कई तरह के परिधानों में होता रहा है, जिसकी वजह से दुनियां भर में अंधाधुंध शिकार होने से अब सुरख़ाब दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों में हैं और इसके शिकार पर पाबंदी है
बहरहाल अर्से बाद जिले में आये इन मेहमानों की सुरक्षा सरकारी जिम्मेदारी है। वन और पुलिस विभाग को इन झीलों पर नजर रखनी चाहिए, ताकि यह सुरक्षित लौट सकें और अगले साल उनके और अधिक तादाद में आने की उम्मीद बन सके।