शोहरतगढ़ में साम्प्रदायिक झड़प की आशंका जनता को थी? तो सुरक्षा एजेंसियों को क्यों नहीं थी?
नजीर मलिक
कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी उठाने वाली हमारी पुलिस भी गजब हैं । पुलिस के अभिलेखों में षोहरतगढ़ साम्प्रदायिक लिहाज से संवेदनशील टाउन के रूप में दर्ज है। आम आदमी को इस बार आशंका थी कि शोहरतगढ़ पिछले कई दिनों से गर्म हो रहा है। इसलिए वहां कुछ गलत हो सकता है, मगर हैरत है कि सुरक्षा एजेंसियां खास कर मुकामी पुलिस इसे नहीं भांप पाईं।
शोहरतगढ़ टाउन पिछले कई दिनों से गर्म था। कटृटरपंथी तत्व तो हमेषा से ही यहां मुहर्रम और दुर्गापूजा में कुछ खास करने की ताक में रहते हैं। इस बार दोनों त्यौहारों से एक हफृता पहले एक ऐसी घटना हुई, जिससे सियासत को भी रोटी सेंकने का मौका मिल गया।
दरअसल इन त्यौहारों से पहले हिंदू युवा वाहिनी के बड़े नेता सुभाश गुप्ता की पत्नी और षोहरतगढ़ नगर पंचायत अध्यक्ष बबिता कसौधन का पावर भ्रटाचार के आरोप में शासन ने सीज कर दिया।
इस घटना को दोनों समुदाय के कटृटर पंथियों ने जय पराजय के रूप में लिया। हिंदू कटृटरपंथियों की जमात का मानना था कि सरकार के इस कदम से हिंदुत्व को चोट पहुंची है। दूसरी तरफ मुस्लिम कटृटरपंथियों का मानना था कि सरकार ने उन्हें जश्न मनाने का का मौका दिया है।
बहरहाल जय पराजय की चर्चा टाउन में निरंतर बढ़ रही थी। इसी के साथ बढ़ रहा था अविश्वास का माहौल। लेकिन मामला गर्म हुआ शस़्त्र पूजन के दिन। उस दिन इक्कावान मुहल्ले में नगर पंचायत अध्यक्ष पति सुभाष गुप्ता ने बहुत गरम भाषण दिया। कपिलवस्तु पोस्ट ने अपनी रिर्पोट में उसी दिन इशारा कर दिया था।
मुहर्रम के दिन ताजिए का जुूलूस निकला तो झड़प हुई। एक पक्ष का आरोप था कि मुसलमानों ने मंदिर के सामने नारे लगाये। दूसरे पक्ष का कहना था कि हिंदुओं ने उनके ताजिए पर पत्थर फेंके। सच्चाई जो भी हो, मगर पुलिस तो वहां मौजूद थी। उसने कार्रवाई क्यों नहीं की।
एक सवाल यह भी है कि शस्त्र पूजन के दिन आपत्तिजनक भाषण के दौरान पुलिस मौके पर खामोश क्यों रही? अगर वह उसी वक्त सख्ती कर देती तो शायद यह नौबत नहीं आती।
सब लोग जानते थे कि माहौल गर्म हैं। टाउन में कुछ भी हो सकता है। इसके बावजूद थानाध्यक्ष शोहरतगढ़ सारी बातों को देख कर अनदेखा करते रहे। इसी लापरवाही का अंजाम है यह घटना।
हालांकि पुलिस अधीक्षक अजय कुमार साहनी ने घटना पर कुछ ही घंटों में नियंत्रण कर लिया। उनकी और डीएम की भूमिका देख दोनों बड़े अफसरों की नीयत पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, लेकिन अधीनस्थों की बेवकूफी ने दोनों के माथे पर एक दाग तो लगा ही दिया।
समाचार लिखे जाने तक टाउन में शांति है। पुलिस गश्त कर रही है। दो दर्जन लोग हिरासत में भी हैं, लेकिन असली दोषी तो घूम रहे हैं।