डुमरियागंज: भाजपा के जगदम्बिका पाल के मुकाबले विपक्ष से कौन बनेगा उम्मीदवार?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले की एक मात्र संसदीय सीट डुमरियागंज, इंडिया एलायंस में कांग्रेस के लिए काफी मुफीद हो सकती है। भाजपा ने अपने तीन बार के सांसद जगदंबिका पाल पर चौथी बार दांव लगाकर इसे और आसान बना दिया है। यहां एमवाईबी का फार्मूला काम कर जाता यदि कांग्रेस किसी ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाती। फिलहाल यह सीट सपा के हिस्से में है जबकि कायदे से इसे कांग्रेस को देनी चाहिए थी। इस सीट के कांग्रेस के हिस्से में जाने की संभावना के बीच सपा के ही कई नेताओं ने कबूला है कि कांग्रेस से कोई ब्राह्मण चेहरा मैदान में होता न केवल मुकाबला कांटे का होता, गठबंधन उम्मीदवार के जीत की भी पूरी संभावना थी।
क्या कहते हैं सियासी तर्क
इसके पीछे तर्क यह है कि लगातार तीन बार से जगदंबिका पाल के सांसद होने से उनके खिलाफ इनकंबैंसी का माहौल है। बतौर सांसद पाल ने जनहित का काम करने के बजाय केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के सहारे अपने को विकास पुरुष होने का दावा करते रहे हैं। सन 2014 के लोकसभा चुनाव में उनके भाजपा में जाने से यहां का 26 फीसदी मुस्लिम आबादी उनके विरोध में है। इसके अलावा 10 प्रतिशत यादव मतदाता भी सपा कांग्रेस गठबंधन के कारण उनके खिलाफ लामबंद है। कांग्रेस के पास दलित अध्यक्ष के रूप में मल्लिका अर्जुन खड़गे जैसा वरिष्ठ लीडर है। इसलिए यहां के 19 फीसदी दलितों को जोड़ कर कांग्रेस मुस्लिम-दलित़-ब्रहमण वोटो का अपना पुराना समीकरण फिर साध सकती है।
कांग्रेस को यहां पिछड़े वर्ग के प्रत्याशी पर गौर करने की कदापि जरूरत नहीं। वह पूर्व विधायक पप्पू चौधरी अथवा अपने अन्य किसी कुर्मी नेता को लाकर बिलकुल सफल नहीं हो सकती है। स्वय चौधरी भी सपा कांग्रेस से लड़ कर कई चुनाव हार चुके हैं। यहां का कुर्मी समाज परम्परागत रूप से जनसंघ (आज के भाजपा) का समर्थक वर्ग रहा है तथा वह मात्र शोहरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र में प्रभावी है। अतः कांग्रेस को इस दौर पर नये प्रयोग करने के बजाए अपने परम्परागत मतदाताओं पर ही भरोसा करना होगा।
आंकड़ों के आइने में डुमरियागंज
आंकड़े बताते हैं कि यहां जब कभी मनपसंद मुस्लिम उम्मीदवार हुआ है तो उसे ब्राह्मण वोटरों का पूरा समर्थन हासिल हुआ है और जब ब्राम्हण उम्मीदवार हुआ तो उसे मुस्लिम वोटरों का भी भरपूर सहयोग मिला है। सीट सपा के खाते में है लेकिन उसके पास जनता की पसंद का ब्राम्हण चेहरा नहीं है। ले दकर एक माता प्रसाद पाण्डेय हैं जो वेशक कई बार के विधायक, मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं लेकिन अब उनकी उम्र इस लायक नहीं रही कि वे लोकसभा चुनाव लड़ सकें। यही नहीं माता प्रसाद पिछला दो चुनाव जगम्बिका पाल से लड़ कर हार भी चुके हैं और जो दो एक लोग हैं तो सपा में उनकी शिनाख्त खुद अतिथि सपाई की है।
जातीय समीकरण में कांग्रेस
जातीय अंकगणित पर गौर करें तो एलांयस में तीन जातियों का बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ वोट करने को तैयार है। इसमें मुस्लिम,यादव और ब्राम्हण! दलित वोटर भी यह मानने लगा है कि बसपा केवल उनके वोटों का सौदा करती है। ब्राम्हण समाज के साथ लगातार हो रही उत्पीड़न की घटनाओं ने उन्हें खुद के बारे में सोचने को मजबूर किया है। उस समाज में यह चर्चा होने लगी है कि कम से कम कांग्रेस में तो ऐसा नहीं था। सपा से गठबंधन के नाते यादव बिरादरी भी भाजपा के खिलाफ है। मुस्लिम वोटर इस बार कांग्रेस के पक्ष में पूरी तरह मन बना चुका है। बस उन्हें भाजपा के खिलाफ लड़ने वाला जुझारू उम्मीदवार चाहिए। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने एक ब्राह्मण को चुनाव लड़वाया था लेकिन उनकी भाजपाई छवि होने के नाते मुस्लिम वोटर उधर नहीं मुखातिब हो सके। इस बार इस सीट के जो समीकरण दिख रहे हैं उस हिसाब से कांग्रेस ने यदि पार्टी के परंपरागत उम्मीदवार पर दांव लगाया तो परिणाम चौंकाने वाले हैं सकते हैं।
निष्कर्ष
ऐसे में सवाल है कि कांग्रेस क्या करे। तो उसे इन समीकरणों के आधार पर डुमरियागंज की सीट अपने खाते में लेनी चाहिए। उनके पास पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री नर्वदेश्वर शुक्ल जैसे अनुभवी नेता के साथ सच्चिदानंद पांडेय या कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष ठाकुर तिवारी जैसे नेता उपल्ब्ध भी हैं। जो इस महासंग्राम का जम कर सामना तो कर ही सकते हैं।