सरकारें चाह लें तो उत्तर प्रदेश का नैनीताल बन सकता है कपिलवस्तु का बौद्ध सर्किट
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बात सिर्फ ठानने की है। सियासतदान और अफसर ठान लें तो कपिलवस्तु का तीस वर्ग किमी क्षेत्र उत्तर प्रदेश का नैनीताल बन सकता है, जिसमें कम से कम तीन लाख लोगों को रोजगार के साधान मिलेंगे। इससे सरकार को हर साल अरबो रुपये की विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होगी।
कपिलवस्तु सर्किल में कम से कम एक दर्जन झीलें हैं, जो नैनीताल की झीलों से विशाल हैं। यहां के बजहा सागर, मझौली, बटुआ, मरथी आदि सागरों में कम से कम 10 लाख क्यूसेक फुट पानी की क्षमता है। इसके अलावा ककरहवा और मझौली के वन क्षेत्र भी हैं।
कपिलवस्तु के मुख्य स्तूप और बुद्ध के राजमहल के चारों ओर उन झीलों का विकास कर नैनीताल के भीम ताल,,खुरपा ताल, सहित अन्य मल्ली और तल्ली तालों की तरह आकर्षक बनाया जा सकता है। एक दो झीलों को पक्षी विहार के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।
गौतम बुद्ध की क्रीड़ास्थली और उनके अस्थिकलश स्थल की वजह से कपिलवस्तु दुनियां के 3 करोड़ बौद्धों के लिए आस्था का पवित्र केन्द्र बन गया है, लेकिन विदेशी सैलानी यहां होटलों के न होने और अन्य पर्यटकीय आकर्षण नहीं होने से आने में हिचकिचाते हैं।
जिले में गौतम बुद्ध के राजमहल के अलावा शोहरतगढ का परिगवा, डुमरियागंज का भारतभारी व धर्मसिंहवां भी बौद्ध स्थल ही है। कपिलवस्तु में सुविधायें मिलेंगी तो पर्यटक वहां भी जाएंगे।
तकरीबन 50 हजार सौलानी यहां हर साल आते हैं, लेकिन वह स्तूप का दर्शन कर तत्काल लौट जाते हैं। कपिलवस्तु पर काफी लेख लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार सत्य प्रकाश गुप्ता कहते हैं कि झीलों का विकास कर उनमें शिकारे आदि की व्यवस्था कर विदेशी सैलानियों को रोका जा सकता है। सैलानी रात में रुकने लगेंगे तो टैक्सी चालन, रेस्तरां, होटल, गाइड और दस्तकारी कशीदाकारी से सम्बंधित रोजगार यहां बढ़ जायंगे।
याद आते हैं जगन्नाथ सिंह
कपिलवस्तु और उसके इर्द गिर्द फैली झीलों का महत्व समझ कर जिले के पहले सीडीओ जगन्नाथ सिंह ने 1993 में क्षेत्र के विकास की एक योजना शासन को भेी थी, जो अब तक राजधानी में धूल फांक रही है।
कोई बड़ा राजनीतिज्ञ अगर पैरवी कर उस योजना को स्वीकृत कर दे तो जिले के हजारों लोगों को अपने जनपद में ही रोजगार मुहैया हो सकता है, लेकिन सवाल है कि करेगा कौन ?