बसपा जिलाध्यक्ष रमेश गौतम को हटाने का क्या है असली कारण भयादोहन या कुछ और? दिनेश फिर बने जिलाध्यक्ष
मुस्लिम बाहुल्य जिले में बसपा के पास एक भी प्रभावी मुस्लिम चेहरा नहीं, 27 फीसदी आबादी के बिना प्रभावित होगा बसपा का जनाधार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बसपा के जिलाध्यक्ष रमेश गौतम को जिलाध्यक्ष बनाने के मात्र डेढ़ महीने बाद उनको हटा दिया जाना यहां राजनतिक हल्कों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यद्यपि कि उन्हें हटाये जाने के बारे में पार्टी ने कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी है, मगर कयासबाजियों की माने तो भ्रष्टाचार के लगे आरोपों का कारण उन्हें हटाया गया है।
मिली जानकारी के अनुसार बसपा के जिलाध्यक्ष रमेश गौतम को गत 11 अक्तूबर को उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया। उन्हें गत 24 अगस्त को ही इस पद पर मनोनीत किया गया था। इस पर रमेश गौतम जिलाध्यक्ष पद पर मात्र डेढ़ माह ही रह पाये थे कि उन्हें हटा कर दिनेश कुमार गौतम को नया जिलाध्यक्ष बना दिया गया। दिनेश गौतम इससे पूर्व भी जिलाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुके हैं। उनका पिछला कार्यकाल अच्छा बताया जा रहा है। लेकिन इससे अलग और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर रमेश गौतम को इतने कम समय में ही पार्टी ने पद से क्यों हटा दिया।
आरोप है कि रमेश गौतम जिलाध्यक्ष बनने के बाद धनवसूली को लेकर आरोपों से घिरते जा रहे थे। हालांकि तमाम बसपा कार्यकर्ता इससे इंकार भी करते हें मगर कुछ ऐसे भी कार्यकर्ता ऐसे हैं जो इस आरोप को सच मानते हैं। पार्टी के कार्यकर्ता बसपा के अनुशासनात्मक कार्रवाई के डर से अधिकृत रूप से कुछ खुल कर तो नहीं कहते मगर कई कार्यकर्ता आफ द रिकार्ड यह बताते हैं कि पिछले महीने डुमरियागंज के एक नेता से धन न मिलने के कारण उनके खिलाफ कार्रवाई की गया या कराई गई।
डुमरियागंज के एक कार्यकर्ता का तो यहां तक कहना है कि वे गत 10 अक्तूबार को डुमरियागंज के बसपा नेता और नगर पंचायत अध्यक्ष के पति अतीकुर्रहमान को निकाले जाने के पीछे के पीछे भी पूर्व अध्यक्ष की यही मंशा थी। यह और बात है कि यह मामला तूल पकड़ता इससे पूर्व 11 अक्तूबर को जिलाध्यक्ष रमेश गौतम खुद ही हटा दिये गये। इस बारे में रमेश गौतम समर्थकों का कहना है कि बसपा नेता अतीकुर्रहमान को पार्टी विरोधी गतवधियों के कारण निकाला गया। मगर वे पार्टी विरोधी गतिविधियां क्या थीं, इसे वे नहीं बता पाते।
बहरहाल अब बसपा की हालत यह है कि जिले में बसपा में एक प्रभावी मुस्लिम चेहरा नहीं है। तो सवाल यह उठता है कि सामाजिक न्याय की पक्षधर पार्टी बिना मुसलमान नेताओं के अपनी क्षेत्रीय विस्तार कैसे कर पायेगी। जब कि जिले में मुस्लिम आबादी 27 प्रतिशत है। डुमरियागंज में तो यह आबादी 36.90 प्रतिशत है। यह बात बसपा को समझना चाहिएवर्ना यह पार्टी के जनाधार केलिए हानिकारक सिद्ध होगा।