सिद्धार्थनगर की समाजवादी राजनीति से मुस्लिम कयादत का खात्मा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बस्ती जिले के उत्तरी इलाका यानी मौजूदा सिद्धार्थनगर नगर जिले में मुस्लिम लीडरशिप यो तो आजादी के बाद से ही मजबूत हालत में थी। लेकिन यहां की समाजवादी राजनीति में मुस्लिम लीडरशिप दशक में बनी और मुलायम सिंह के रिटायर होने (किये जाने) के साथ ही इस युग का भी अंत हो गया।
1991 में समाजवादी पार्टी के दो दिग्गज मुस्लिम लीडर थे। डुमरियागंज के विधायक मलिक कमाल यूसुफ 80 के दशक से ही मुलायम सिंह के साथ थे। 90 दशक में इस खेमे में विधायक मुहम्मद सईद भ्रमर भ्रमर भी जुड़ गये। सदर सीट से पराजय के बाद भी सईद्र भ्रमर को जिला पंचायत अध्यक्ष मनोनीत करना इस बात का सबूत था कि मुलायम सिंह मुस्लिम बाहुल्य इस जिले में मुस्लिम लीडरशिप का कितना महत्व समझते थे।
युग बदला, कयादत बदली
मुलायम युग बदला तो यहां मुस्लिम कयादत का कद भी छांटा जाने लगा। कपिलवस्तु सीट के रिजर्व हो जाने के बाद सईद भ्रमर के लिए कोई सीट न बची थी। अखिलेश के शासन में पूरे प्रदेश में लल्लू पंजू तक भी मलाईदार पद पा गये, लेकिन सईद भ्रमर उपक्षित कर दिये गये। उन्हें कभी भी मंच पर वरिष्ठ नेता का भी सम्मान नहीं मिला। एक अन्य नेता जुबैदा चौधरी को गत चुनाव में टिकट देने की घोषणा कर वापस ले ली गई।
महंगी पड़ी मुलायम से यारी
रही कमाल यूसुफ की बात तो मुलायम और शिवपाल से जनजदीकियां उन्हें खा गईं। अपवाद छोड़ कर 1977 से ८९ तक लगातार विधायक बनने वाले कमाल यूसुफ 2012 में सपा छोड़ कर पीस पार्टी के विधायक बने। विधायक बनने के बाद पुराने साथी मुलायम की एक पुकार पर उन्होंने पीस पार्टी को लात मार दिया। इस वफादारी के बावजूद अखिलेश ने उनका टिकट काट दिया। टिकट काटा नहीं बल्कि धोखा किया। इस प्रकार अखिलेश ने अपने पांच साल के शासन में यहां सपा से मुस्लिम कयादत का खात्मा कर दिया।