डुमरियागंज में बहुकोणीय लड़ाई के आसार, कोई किसी से कम नहीं नजर आ रहा
सपा, बसपा, भाजपा, कांग्रेस, एमिम और मित्रसंघ में एक एक वोट
के लिए आपस में जबरदस्त रस्साकशी, गावों में वोटर हलकान
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। विधानसभा सीट डुमरियांगंज पर बहुकोणीय लड़ाई के असार है। कम से कम 6 उम्मीदवार ऐसे हैं जो हर कीमत पर मुख्य संघर्ष मे बने रहने को उद्त है। इसके लिए सभी उम्मीदवार डोर टू डोर जनसम्पर्क कर एक एक वोट को साध लेने की फिराक हैं। इसी क्रम में क्षेत्र में साधुओं और मौलवियों की टीमें भी कतिपय प्रत्याशियों के प्रचार प्रसार में लग गई है। कोोना के साये में हो रहे चुनाव में सभीदलों के कार्यकर्ता एकएक गांव में डेराडाल कर बैठे हुए हैं।
बसपा की निगाह ब्राह्मण वोट बैंक पर
डुमरियागंज का चुनावी संघर्ष अभी भाजपा के राधवेन्द्र सिंह, सपा की सैयदा खातून, बसपा के अशोक त्रिपाठी कांग्रेस की कांती पांडेय, एमिम के इरफान मलिक और मित्रसंघ के राजू श्रीस्तव के बीच जारी है। इस चुनाव में जहां भाजपा को सत्ता की इनकम्बेंसी से जूझना पड़ रहा है, वही भाजपा के पूर्व विधायक जिप्पी तिवारी के भाई अशोक तिवारी के बसपा उम्मीदवार बन जाने से उनके द्धारा भाजपा के जनाधार में सेध लगाने की आशंका व्यक्त की जा रही है। अशोक तिवारी बसपा के दलित बोटों के साथ 12 प्रतिशत ब्राहम्ण वोटों को जोड़ कर जीत का समीकरण बनाने की कोशिश में लगे हैं। इसके अलावा मित्र संघ के राजू श्रीवास्तव भी भाजपा के कायस्थ वोटों पर नजर गड़ाये हुए हैं। अब भाजपा इस संभावित क्षति का डैमेज कंट्रोल कैसे करेगी यह देख्ने की बात होगी।
सपा के पास बगावत रोकने का अचूक नुस्खा नहीं
इसके अलावा सपा की ओर से सैयदा खातून चुनाव मैदान में हैं। वै 37 प्रतिशत मुस्लिम और 9 प्रतिशत वोटों को सहेज कर जीत का लक्ष्य भेदने की फिराक में हैं। परन्तु उनकी अपनी कठिनाइयां हैं। डुमरियागंज में सपा इस समय बगाावत की शिकार है। चिनकू यादव का टिकट कटने की वजह से सपा का कोर वोटर (यादव) उने बेहद नाराज है और वह भाजपा अवा अन्य दलों की ओर देख् रहा है। सैयदा खातून की कठिनाई यह है कि स्थानीय स्तर पर उनके पास यादवों में बड़ी छवि वाला नेता नहीं है जो सपा के नाराज कोर वोटर को मना कर उनके खेमे में खड़ा कर सके। सोनहटी से लेकर भालूकोनी जब्ती तक अनेक ऐसे यादव परिवार मिले जो खुल कर कहते दिखे कि उनके नेता का टिकट कटने के बाद अब भजपा को वोटदेने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
भाजपा सपा दोनों को चोटदे रहीं कांग्रेस
बसपा के अशोक तिवारी अपने परम्परागत दलित वोटों के साथ ब्राहम्मण मतों को जोड़ कर जहां अपी ताकत बढ़ाने में लगे हैं वहीं कांग्रेस की की कांती पांउेय भी ब्राह्मण और मुस्लिम मतों में सेधमारी करने में लगी हैं। उनके पति सच्चिदानंद पांउेय का मुस्लिम समाज पर अच्छा प्रभाव है। मुलिम बाहुल्य सीट से उनका जिला पंचाायत सदस्य के रूप में जीतना इसका प्रमाण है। वह भाजपा के साथ सपा को भी डैमेज करने में लगे हैं। भाजपा और सपा उम्मीदवार इस खतरे का अपने अपने स्तर से सामना करने के लिए क्या करते हें, यह देखने की बात होगीं
इरफान मलिक फैक्टर भी महत्वपूर्ण
बहुकोणीय संघर्ष वाले इस चुनाव का सबसे महत्वपूर्ण कोण के रूप में एमिम के उम्मीदवार इरफान मलिक की चर्चा के बगैर यह पटकथा अधूरी रहेगी। इरफान क्षेत्र के दिग्गज सपा नेता और मंत्री तक रहे मलिक कमाल यूसुफ के बेटे हैं। वह सपा गठबंधन में टिकट के मजबूत दावेदार थे, लेकिन टिकट न मिलने की दशा मे औवैसी की पार्टी के उम्मीदवार बन गये। डुमयिगंज में इस पार्टी का कोई प्रभाव नहीं है, लेकिन कमाल यूसुफ के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता। 2012 मे भी वे सपा से टिकट कटने पर पीस पार्टी से चुनाव जीत कर अपनी राजनैतिक ताकत का परिचय दे चुके हैं। ऐसी हालत में वे सहां मुस्लिम मतों बंटवारा करने में जरूर सफल होंगे। सही नहीं वर्तमान में काल यूसुफ उन बिरले मुस्लिम नेताओं में शुमार है जिनके पास पार्टी से हट कर भरी तादाद में हिंदू वोटर जुड़े हुए हैं। अतः भाजपा, बसपा और सपा की लड़ाई में इरफान मलिक की ताकत को नजरअंदाज कर पाना नामुमकिन है।
उपसंहार
फिल हाल डुमरियांगंज में अभी कोटे का संघर्ष जारी है। सपा भजपा को अपने वोटों में संधमारी को रोकने की भारी जिम्मदारी है। दानों दलों की सह पहली चिंता हे। दूसरी तरु बसपा और एमिम इस सेधमारी में जितना कामयाब होंगी, वह उतनी ही तकतर बन कर उभरेंगीं। त्रिसंघ को जितना भी बोट मिलेगा वह सभी भाजपा से खींच कर लाया गया वोट ही होगा। इस प्रकार अभी यह बहुकोणीय चुनाव दिख रहा है परन्तु राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अंत में यहां पंचकोणीय संघर्ष ही होगा। फिलहाल तो सभी डोर टू डोर जनसम्पर्क कर अधिक से अधिक वोटरों के घर हाजिरी देने की कवायद में लगे हुए हैं।