आतंकवाद के अाखिरी मामले से भी बरी हुए मुबीन मलिक, लेकिन 8 साल की जेल, पुलिसिया जुल्म अभी याद हैं

May 22, 2017 1:20 PM0 commentsViews: 588
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नजीर मलिक

अपने घर में बैठे डा. अब्दुल मुबीन मलिक

अपने घर में बैठे डा. अब्दुल मुबीन मलिक

सिद्धार्थनगर जिले का बगहवा गांव पूर्वी यूपी के पिछड़े गांवों में  शुमार किया जाता है। डुमरियागंज तहसील हेडक्र्वाटर के करीब के इस गांव के एक किसान परिवार में जन्मे अब्दुल मुबीन मलिक अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से डाक्टरी की पढाई खत्म ही की थी कि 4 सितम्बर 2000 में उन्हें आगरा और बांराबंकी में हुए आतंकी बम धमाकों के आरोप में यूनिवर्सिटी कैम्पस से उठा कर गिरफ्तार कर लिया गया। इसके अलावा गुलजार वानी नामक एक कश्मीरी छा़त्र को भी उठाया गया।

दोनों को पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने भयंकर यातनाएं दीं। उन्हें बिजली के झटके तक दिये गये।अंत में उन्हें  आतंकवाद के 11 मामलों का मुलजिम बना कर जेल भेज दिया गया। जहां से आठ साल बाद किसी तरह डा. मुबीन को जमानत मिली। लेकिन वानी आखिरी मुकदमें के फैसले  यानी 17 सालों तक जेल में ही रहे। अभी चार दिन पहले दोनों को अाखिरी मुकदमें से बाराबंकी कोर्ट ने बरी किया है। जिससे उन्होंने राहत की सांस ली है।

जानिये पूरी कहानी, मुबीन की जुबानी

‘नाम अब्दुल मुबीन, उम्र लगभग 44 – 45, सर के बाल लगभग सफेद। गले में मटमैला गमछा। बीमार, कमज़ोर और बहुत चुप सा दिखाई देने वाला यह शख्स अपने घर के आंगन में मुर्गियों और बकरियों के मेमनों से घिरा हुआ है। आंगन की छत पर कई सौ कबूतर हैं। इन सब के बीच से गुज़रते हुए वह हमसे कहते हैं कि आओ मेरा घर अंदर से देख लो।

कच्चा घर। खपरैल की छत। आंगन में छोटे-छोटे दो पेड़। वहीं अंदर वाले आंगन में घर की कई महिलाएं बैठी हुई हैं। वे हमसे केवल सलाम कहती हैं। किसी के पास कहने के लिए कुछ नहीं है। पथराई आंखों से देख रही हैं। मुबीन लगभग आठ साल सलाखों के पीछे रहे हैं। इस बीच परिवार ने जो सहा है उस से ये अभी तक नहीं उबर पाए हैं। मुबीन कहते हैं ‘मै ज़िंदगी में कई साल पीछे चला गया हूं, उसकी भरपाई नहीं हो सकेगी कभी।’

मुबीन की गिरफ्तारी 4 सितंबर-2000 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कैंपस से हुई थी। 8 साल बाद 8 अगस्त-2008 को उन्हें रिहा कर दिया गया। आखिर में उन्हें अपने आखिरी मामले से भी बरी होने का इंतज़ार था, जो कि वह आज हो गए हैं। 17 साल बाद अब वह चैन की सांस ले पाएंगे। हालांकि इस बीच जो उन्होंने खोया है उसे चाह कर भी नहीं बना पाएंगे। बस सिर्फ कानूनी तौर पर अब थोड़ा चैन है। मुबीन के तीन बेटे हैं। असद अहमद, मुशाहिद और मसूद। एक बेटी भी है जिसका नाम जैनब मलिक है। पत्नी सुम्बुल भी है।

मुबीन के जेल जाने से सभी बच्चों की पढ़ाई छूट गई। जैसा और जो मुबीन इन्हें बनाना चाहते थे अब नहीं बना पाएंगे। वह कहते हैं कि ‘शुरू में तो मुझे घर में बहुत अजीब सा लगता था। मैं बच्चों को पहचान नहीं पाता था। जब मैं जेल गया तो बहुत छोटे-छोटे थे तब ये।’ गौरतलब है कि मुबीन के साथ ही आज 17 साल बाद कश्मीरी छात्र गुलज़ार वानी भी जेल से रिहा हुए हैं।

मुबीन इन दिनों डुमरियागंज के जबजउआ स्थित अबुल कलाम आज़ाद एजूकेशन इंस्टीट्यूट में अंग्रेज़ी पढ़ा कर गुज़ारा कर रहे हैं। घर की कुछ ज़मीन है। वह  बताते हैं कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीयूएमएस किया है।

अपने बारे में ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि सिमी के विचार मुझे प्रभावित करते थे। मैं उन दिनों अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा था।  उसके साथ ही सिमी की लाइब्रेरी संभालता था। उस दिन मैं सुबह 10-11 के बीच अपने हॉस्टल से निकला। एक दोस्त की शादी रद्द हो गई थी, इसकी जानकारी मौलाना को देने के लिए फोन करने जाना था। हल्की सर्दी थी। पांच-छह लोग सिविल ड्रेस में आए और मुझे किडनैप करके ले गए। मुझे उस समय मगरिब की नमाज़ करनी थी।

मुझे कुछ नहीं बताया गया कि मुझे कहां और क्यों ले जाया जा रहा है। मुझे मेरे परिवार तक को फोन नहीं करने दिया गया। वे आईबी और एसटीएफ के लोग थे। इस बात की जानकारी मुझे बाद में मिली। वे लोग मुझे आगरा ले गए। आगरा में एक घटना हुई थी जिसमें 4 लोग जख्मी हो गए थे।वहां  एक लड़का था मआरूफ, उस से हमारा भी परिचय था। उसी जगह पर पुलिस को सिमी के कुछ पेंफलेट और मैग्ज़़ीन मिले थे।

हैरानी की बात है कि एएमयू के पास पोलो ग्राउंड में सिमी का एक अधिवेशन हुआ था। बरामद उन पेंफलेट से यह ज़ाहिर हो रहा था कि उसे आयोजित करवाने में मेरा हाथ है।

खैर जब मुझे किडनैप किया गया तो मुझे मेरे घर पर भी इत्तला करने की इजाज़त नहीं थी। मुझे थाने ले जाया गया। बोला गया कि इसे पानी पिलाओ। खाना खिलाओ। वहां जाकर मुझे पता लगा कि मुझे बम धमाके के आरोप में पकड़ा गया है। मैंने बहुत मना किया लेकिन पुलिस मेरी एक सुनने के लिए तैयार नहीं थी।

हालत यह हो गई, अत्याचार यहां तक किया गया कि एक तरह से पुलिस मेरे मुंह में अपने अल्फाज़ रख रही थी। मुबीन बताते हैं कि पुलिस के पास इक़बालिया जुर्म करवाने के हज़ार तरीके हैं। वह कहते हैं कि आप सोच भी नहीं सकती हैं कि पुलिस क्या-क्या करती है। जैसे मुझे करंट लगाए गए। कान पर, जुबान पर और शर्मगांहों पर। पुलिस के पास एक ही तरीका है वो है प्रताड़ित करना। चाहे वह तरीका कानून द्वारा मान्य है या नहीं की पुलिस को कोई फर्क नहीं पड़ता है। पुलिस को जवाब हां में चाहिए। मुझे वहां 24 घंटे रखा गया। सुबह 11 बजे मुझे मेजिस्ट्रेट के यहां पेश किया गया। खैर पुलिस ने मुझे 10 दिन के कस्टोडियल रिमांड पर ले लिया।

वह कहते हैं कि पुलिस का उगलवाने का सबसे अच्छा तरीका होता है कि वह सोने नहीं देती है। खाना खाने के लिए मिलता है। वहां हर ऑफिसर का मुझसे सवाल था कि मैंने दाढ़ी क्यों रखी है। अपनी दाढ़ी दिखाते हुए वह कहते हैं कि मेरी दाढ़ी इस कद्र नोची गई कि उसके बाल कम हो गए हैं। बार-बार, बार-बार एक ही सवाल था कि यह तुमने किया है, बताओ इसके लिए कितने पैसे मिले हैं।

मुबीन के अनुसार कई अधिकारी अच्छे भी थे। बोलते थे कि हम जानते हैं कि तुम निर्दोष हो लेकिन हम पर दबाव है। हुकूमत का दबाव। वह बताते हैं कि ज्यादातर पुलिस अधिकारी सांप्रदायिक थे। नफरत की भावना से भरे हुए। मुबीन के अनुसार वह जिस्मानी और मानसिक तौर पर बुरी तरह से परेशान हो गए थे। पथराई सी आंखों से कहते हैं कि  कलंक धोने की आप लाख कोशिशें करें लेकिन धुलता नहीं है।

मुबीन के खिलाफ चार मामले थे। 121,122,120-बी,123,124-ओ,3,4 एक्सप्लोसिव एक्ट। आगरा सेंट्रल, आगरा जिला,लखनऊ और बाराबंकी का मामला। अहम बात यह है कि आरोपी जो सहता है उसे तो सहना ही होता है लेकिन उसका परिवार उससे भी ज्यादा सहता है। उनका कहना है कि एएमयू में पढ़ते हुए उन्होंने सोचा था कि वह एक घर बनाएंगे। अपने बच्चों को बेहतरीन तालीम दिलवाएंगे। एक अस्पताल बनावाएंगे। लेकिन उनका बड़ा बेटा मसूद सिर्फ दसवीं तक ही पढ़ पाया। दूसरा बेटा बीएससी सेकेंड यीअर में है और बेटी जैनब सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ पाई। मुबीन के जेल में रहते हुए उनके बड़े भाई ने उनके परिवार की तमाम जिम्मेदारियां निभाईं।

आठ साल के बाद जब जेल से छूटकर आए तो देखा कि समाज का रुख भी बदला हुआ है। गांव के और करीबी रिश्तेदार कन्नी काटने लगे हैं। सामाजिक कलंक को धोने में बहुत वक्त लगा। वह कहते हैं कि शायद वह अपने कष्ट को ज़ुबान से नहीं बता पाएंगे। कहते हैं कि मैं शब्द नहीं जुटा पा रहा हूं। इस सारी प्रक्रिया में मुबीन का कहना है कि कानून तो न्याय करता है लेकिन राजनीतिक खेल बहुत तगड़ा है और मीडिया ट्रायल बरबाद कर देता है।

मुबीन के अलावा कश्मीर के पाटन इलाक़े के गुलज़ार वानी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 2000 में उठाया था। गुलज़ार वानी एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहे थे। गुलज़ार पर धमाकों के कुल 11 केस लगाए गए थे दिल्ली और यूपी में। सारे मामले एक के बाद एक ख़त्म हो गए थे। आज आख़िरी मामले में बाराबंकी की अदालत ने इन्हें भी बरी कर दिया।

 

 

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