लगातार दूसरे साल भी सूखे का संकट, किसान त्रस्त, अफसर चुनाव में व्यस्त
नजीर मलिक
मानसून के लौट जाने के मौसम विभाग के दावे के बाद सिद्धार्थनगर में लगातार दूसरे साल सूखे का खतरा मंडराने लगा है। धान की सिंचाई का वक्त है। नहरों और नलकूपों में पानी नहीं है। प्रशासन पंचायत चुनावों में व्यस्त है, लिहाजा उसे किसानों की इस विपदा का ध्यान नहीं है। अगर इस साल भी सूखा पडा तो किसान की बर्बादी तय है।
सिद्धार्थनर जिले में इस बार खरीफ की बुआई तकरीबन दो लाख हेक्टेयर में की गई है। धान की फसल रेड़ने के कगार पर है। इस वक्त उसे पानी की सख्त दरकार है। लेकिन जिले की बानगंगा, जमींदारी और सरयू परियोजना की नहरों में पानी नहीं है। नलकूपों की हालत भी ठीक नहीं है। सम्पन्न किसान किसी तरह निजी नलकूपों से कुछ सिंचाई कर रहे है लेकिन अस्सी प्रतिशत किसान केवल बरसात के भरोसे है।
जब से मौसम विभाग ने दावा किया है कि चार दिनों में मानसून वापस लौट जायेगा, किसानों के होश उड़े हुए हैं। इस साल बारिश औसत से 30 प्रतिशत कम होने के कारण तालाब भी भरे नहीं है। धान की फसल को पकने तक दो बार पानी की जरूरत है। प्रशासन अगर चाहे तो नहरों नलकूपों के माध्यम से किसानों की बर्बादी रोक सकता है, लेकिन वह पंचायत चुनावों में व्यस्त है। उसकी नजर में किसान महत्वहीन से हैं।
पनेरा गांव के किसान बाल गोविंद यादव कहते हैं कि धान के पौधे पानी की कमी से पीले पड़ने लगे है, अगर चार दिन पानी नहीं बरसा तो पचास पतिशत उपज घटना तय है। यदि इसके बाद भी पानी नहीं मिला तो शत प्रतिश्त बर्बादी होकर रहेगी।
सिंचाई विभाग के अभियंता मुख्यालय से गायब हैं। डीडी एग्रीकल्चर राजीव झा का कहना है कि जिले में सिंचाई के साधन सीमित है। ऐसे में प्रकुति पर निर्भरता अधिक है। प्रकृति से लड़ पाना किसी के बस की बात नहीं है।