जातिवादी व बागी आवाजों की बुलंदी के चलते बिगड़ते दिख रहे उम्मीदवारों के समीकरण
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज लोकसभा सीट पर ‘दूल्हा सजा नहीं मगर बारातियों में भगदड़ शुरू’ के तर्ज पर नई राजनीतिक हालात बन रही है। उम्मीदवारों की जाति के मद्दनजर जहां दलीय सीमा तोड़ कर लोग अपने अपने उम्मीदवारों के पक्ष में लामबंद हो रहे है वहीं बगावत के कारण भी कुछ नेता के समर्थक अपने मूल दल को त्याग कर विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में दिखाई प़ड़ने लगे हैं। हालांकि चुनाव तो दूर अभी नामांकन की प्रक्रिया में भी एक माह की देर है। लेकिन इस सीट का चुनावी तापमान समय से पहले ही गरमाता दिख रहा है।
हाट सीट बन चुकी है डुमरियागंज
डुमरियागंज सीट इस बार उत्तर प्रदेश की हाट सीट बन गई है। एक तरफ भरतीय जनता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी जगदम्बिका पाल जैसे धुरंधर उम्मीदवार है जो लगातार तीन चुनाव जीत कर अब रिकार्ड चौथी जीत के लिए मैदान में हैं तो दूसरी तरफ सपा से भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी हैं जो गोरखपुर की राजनीति में सीएम योगी आदित्यनाथ की राजनीति के विपरीत खड़े रहने वाले पंडित हरिशंकर तिवारी के बड़े पुत्र हैं। वे भी दो बार संसद सदस्य रह चुके हैं। अरसे बाद दो दिग्गजों की टक्कर में दलीय और जातीय प्रतिबद्धता टूटती नजर आ रही है।
ब्राह्मण समाज में उत्साह
इन प्रतिबद्धताओं के टूटने का स्पष्ट नजारा सपा प्रत्याशी कुशल तिवारी के जनपद भ्रमण के दौरान देखने को मिला। वे जहां जहां भी गये, उनके इर्द गिर्द सपा के प्रतिबद्ध सपोर्टरों के अलावा ब्राह्मण सामाज में भी उत्साह देख गया। सिद्धार्थनगर में ब्राह्मणों का बड़ा वर्ग आमतौर से भाजपा के साथ माना जाता है। मगर कुशल तिवारी के आते ही विप्र समाज उनके इर्द गिर्द जुटने लगा है। वैसे भी हाता परिवार को पूर्वांल में ब्राह्मण समाज में बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। कपिलवस्तु पोस्ट के पास ऐसे कई विडियो मौजूद हैं जिनमें भाजपा समर्थक अनेक चेहरे भी कुशल तिवारी के समर्थन में नारे लगाते देखे जा सकते हैं। राजनीतिक जानकार बताते है कि सपा के एमवाई (मुस्लिम यादव) समीकरण को कुशल तिवारी एमवाईबी (मुस्लिम यादव ब्राह्मण) समीकरण में तब्दील करते दिख रहे हैं।
सपा में भी पार्टी द्रोह की आशंका
लेकिन ऐसा नहीं कि इस प्रकार की कवायदें केवल ब्राह्मण समाज में ही हो रही हैं। समाजवादी में भी दलीय प्रतिबद्धता टूटने का खतरा मंडरा रहा है। सपा से टिकट मांग रहे एक यादव नेता के समर्थक भी खुल कर विद्रोही तेवर दिखा रहे हैं। अपने प्रत्याशी को टिकट नहीं मिलने पर यह लोग सोशल मीडिया पर खुल कर बगावत करने की बात कह रहे हैं। कहीं कहीं उनकी बातों से यह भी इशारा मिल रहा है कि वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में जा सकते हैं। वैसे भी टिकट न पाने की दशा में इन नेता जी की दलीय वफादारी सदा ही संदिग्ध रही है। बहारहाल दोनों प्रत्याशी खुद पर मंडरा रहे इस खतरे से कैसे निपटेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा।
बसपा में असमंजस की हालत
इस मामले में बसपा की हालत कम दिलचस्प नहीं है। बसपा के अधिकृत प्रत्याशी ख्वाजा शमसुद्दीन का कुछ अता पता नहीं है। लगता है कि उन्हें इन दो दिग्गजों के बीच अपने रजनैतिक हश्र का अनुमान है। ऊपर से पूर्व विधायक अमर सिंह भी ने भी बसपा से टिकट मिलने की आस नही छोड़ा है। चर्चा है कि उन्हें टिकट मिल सकता है। आम ख्याल है कि अगर ख्वाजा शमसुद्दीन का टिकट बहाल रहा तो सपा की तथा अमर सिंह को मिल गया तो भाजपा की उलझने बढ़ सकती हैं।