सभी दलों में सेंध लगा कर चुनावी त्रिकोण का चौथा कोण बनाने में जुटे चौधरी अमर सिंह
अमर सिंह की चुनावी रणनीति से सपा का कम और भाजपा की अधिक क्षति संभव
आने वाले दिनों में दिख सकता है डुमरियागंज में रोमांचक चुनावी नजारा नजारा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज संसदीय सीट पर चल रहे चुनावी घमासान में सपा, भाजपा, बसपा के अलावा आसपा भी पूरी ताकत से जुटी हुई है। भीम आर्मी समर्थित आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार व पूर्व विधायक चौधरी अमर सिंह इस लड़ाई में त्रिकोण का चौथा कोण बनाने के प्रयास में हैं। वह इसके लिए वह विभिन्न सियासी दलों के पक्के वोट बैंक में सेधमारी कर अपनी पोजिशन को मजबूत बनाने में लगे हैं।
कौन है किसका वोट बैंक
डुमरियागंज संसदीय सीट पर कुल 19 लाख 61 हजार 7 सौ 94 मतदाता हैं। इनमें सबसे बड़ा वोट बैंक 26.50 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम समाज के हैं, जो आम तौर पर भाजपा समर्थक माने जाते हैं। इसके बाद 19 फीसदी वोटर दलित और बसपा के समर्थक हैं। संख्या दृष्ष्टि से मतदाताओं के 6ठा सबसे बड़ा वोट बैंक कुर्मी समाज का है, जिससे अमर सिंह स्वयं आते हैं। लगभग 7 प्रतिशत वाला यह वोट बैंक अभी तक भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। अमर सिंह इन्हीं वोट बैंकों में सेंधमारी कर इस लड़ाई में जीत का झंडा बुलंद करने का ताबाना बुनने में लगे हैं। जबकि विपक्षी उनकी इस रणनीति को विफल करने में लगे हैं।
अमर का दलितों अल्पसंख्कों में प्रभाव?
अमर सिंह जिस बर्डपुर नम्बर एक क्षेत्र से आते हैं, वह मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है। वे वहां के प्रधान भी रहे हैं। सो मुस्लिम वोटों पर उनकी पकड़ स्वाभाविक है। वह अपने क्षेत्र के प्रभावशाली मुसलमानों को पूरे संसदीय इलाके में दौड़ा कर अल्पसंख्यकों के विशाल वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी करने की फिराक में हैं। देखिए वे इसमें कितना सफल होते हैं। पूर्व विधायक अमर सिंह बसपा में रहे हैं। बसपा के कैडरों में उनकी खासी पैठ है। इससके अलावा चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी से चुनाव लड़ने से दलितों को अपनी तरफ खींचना आसान भी है। वैसे भी गत दिनों बसपा वर्करों द्धारा अपने जिला स्तरीय पदाधिकरियों की सार्वजनिक रूप से पिटाई करना इस बात का सबूत है कि पार्टी का कैडर दिल से अमर सिंह के साथ था। उन्हें टिकट न मिलने की दशा में उसने अपना आक्रोश भी दिखा दिया। नतीजा यह यह है कि बसपा प्रत्याशी नदीम मिर्जा मैदान में लगभग न के बराबर दिख रहे हैं।
भाजपा के लिए दोहरा नुकसान
अमर सिंह के लिए सबसे मुफीद कुर्मी समाज हैं। कुर्मी बिरादरी का वोट अभी तक भाजपा के साथ रहा है, मगर अमर सिंह के मैदान में उतरते ही हालात बादल गये लगते हैं। उनके साथ कुर्मी समाज का बड़ा तबका चल रहा है। कुशल तिवारी के सपा से लड़ने के कारण इस सीट का 13 फीसदी वाले ब्राह्मण समाज का एक बड़ा हिस्सा पहले ही भाजपा से टूट कर सपा से जुड़ गया दिखता है, ऊपर से अमर सिंह के पीछे कर्मियों का लामबंद होना भाजपा के लिए खतरनाक और दोहरे नुकसान वाला साबित हो सकता है। अमर सिंह की रणनीति यह है कि कुर्मी समाज को आगे कर मुसलमान और दलितों के वोट खींचे जा सकते हैं। क्योंकि उनका सजातीय वर्ग आगे दिखता रहा तभी अन्य दोनों वोट बैंक का कुछ भाग जीत की उम्मीद में उनके साथ आ सकता है।
क्या कहते राजनीतिक विश्लेषक
इस बारे में राजनीतिक विश्लेषक अनूप तिवारी कहते हैं कि अमर सिंह की रणनीति मारक है। बशर्ते यह सफल हो जाये तो। उनके अनुसार यदि कुछ मुस्लिम वोट टूटे भी तो सपा प्रत्याशी उसकी भरपाई भाजपा के पूर्व वोब् बैंक रहे अपने सजातीय ब्राह्मण वोटों से कर लेंगें, मगर भाजपा प्रत्याशी अपनी क्षति पूर्ति कहीं से कर पायेंगे, इसमें संदेह है। इसके लिए भाजपा को अपनी विशेष रणनीति बनानी होगी। इसलिए कहा जा सकता है कि भाजपा एक कठिन संघर्ष से दो चार हो रही है। ऐसे में इस सीट पर भविष्य में चुनाव बेहद रोमांचक होने वाला साबित हो सकता है।