analysis: करवट बदलने की तैयारी में डुमरियागंजी सियासत, पहचानिए हालात के तेवर बदल गये

February 9, 2016 12:29 PM0 commentsViews: 1891
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नजीर मलिक

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सिद्धार्थनगर। जिप्पी तिवारी के भाजपा को सलाम बोलने के बाद समाजवादी राजनीति में राम कुमार उर्फ चिनकू यादव के तेजी से उभरने के बाद डुमरियागंज की सियासत करवट बदलने की तैयारी में है। ऐसे में अपनी सोशल इंजीनियरिंग को बेहतर बनाने वाला ही नेता बनेगा।

हाल तक डुमरियागंज में राजनीति के दो ही ध्रुव थे। पूरी सियासत वर्तमान विधायक कमाल यूसुफ मलिक व स्व. विधायक मलिक तौफीक अहमद के इर्द गिर्द घूमती थी। बीच में मंदिर आंदोलन के चलते भाजपा के जिप्पी तिवारी का तेवर भी रहा, मगर वह क्षणिक था।

पिछले चुनाव से पूर्व तीन घटनायें हुईं। मलिक तौफीक अहमद विधायक रहते हुए जन्नतनशीं हो गये और जिप्पी तिवारी ने भाजपा को राम-राम कह दिया। इसके अलावा विधायक मलिक कमाल यूसुफ ने सपा को त्याग दिया। उनकी जगह समाजवादी पार्टी ने एक आम कार्यकर्ता चिनकू यादव को सपा का उम्मीदवार बना दिया गया।

प्रारम्भ में तो लोगों ने चिनकू को सीरियसली नहीं लिया, लेकिन चिनकू ने वक्त के तेवर को पहचाना। सत्ता की हनक के बल पर ही सही, मगर चिनकू यादव ने उुमरियागंज की सियासी बिसात पर अपने मोहरे बहुत सलीके से बिछाये। नतीजा यह हुआ कि तकरीबन तीन सालों में उन्होंने दो कोणों में घूमने वाली डुमरियागंज की सियासत में तीसरा कोण बना डाला। हाल के पंचायत चुनाव इसके गवाह हैं।

अब सवाल है कि आने वाले दिनों में डुमरियागंज की सियासत का रुख क्या होगा। जानकार बताते हैं कि चिनकू के आने से कमाल युसुफ और मरहूम तौफीक मलिक की सियासी वारिस और बेटी सैयदा मलिक का जनाधार पिछड़ों में घटा है। दूसरी तरफ चिनकू यादव ने मलिकों में सेंधमारी की है। कई मलिक वंशज चेहरे उनके साथ देखे जा रहे हैं।

दूसरी तरफ गत चुनाव में भाजपा के ब्रहमण मतों में गिरावट देखी गई थी, जिसका बड़ा हिस्सा कमाल युसुफ के खाते में गया था। उसी के बल पर वह बसपा की सैयदा मलिक और चिनकू यादव को हरा कर विधायक बने थे।

वर्तमान में 28 प्रतिशत पिछडों में 13 प्रतिशत यादव सपा के पीदे लामबंद हैं तो तकरीबन इतनी ही तादाद में मलिक वंशज दो खेमों में बंटे हैं। शेष मुस्लिम सपा के साथ व्यक्तिगत रूप से सैयदा मलिक और कमाल यूसुफ के बींच बंटे हैं। गैर यादव पिछड़ों में आठ प्रतिषत कुर्मी और 7 प्रतिशत अति पिछड़ों तथा 11 प्रतिशत ब्रहमण फिलहाल तटस्थ हैं।

आने वाले चुनाव में ले दे कर सारी सोशल इंजीनियरिंग इन्ही के बीच होनी है। जो इनमें सेंध लगाने में कामयाब रहा, वही इस गढ़ को फतह करेगा। हांलांकि भाजपा अगर किसी समीकरण के तहत अपना उम्मीदवार बदलती है तो सोशल इंजीनियरिंग का तरीका भी बदलने के लिए तैयार रहना होगा।

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