EXCLUSIVE: विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय के ज़िले में सभी बड़े अफसर ब्राह्मण
नज़ीर मलिक
“यादव जाति के अफसरों की तैनाती पर अखिलेश सरकार को चौतरफा तीखी आलोचना झेलनी पड़ रही है। मज़े की बात यह है कि पार्टी के दूसरे बड़े नेता आलोचनाओं से सबक लेने की बजाय अपने सीएम के नक्श-ए-कदम पर चल रहे हैं। नया मामला विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय के गृह जनपद सिद्धार्थनगर का है जहां सभी अहम ओहदों पर उनकी जाति के अफसर काबिज़ हैं।”
सिद्धार्थनगर ज़िले की कुल जनसंख्या में मुस्लिम और पिछली जातियों की भागीदारी तकरीबन 60 फीसदी है। मगर दलित और पिछड़ी जातियों के अफ़सर यहां इक्का-दुक्का हैं जबकि अल्पसंख्यक समुदाय का एक भी अधिकारी किसी बड़े विभाग में नहीं है। कमोबेश सभी पदों पर अगड़ी जाति और उनमें भी ब्राह्मण जाति के अफसरों का बोलबाला है।
ज़िला हेडक्वॉर्टर पर तैनात डीएम डॉक्टर सुरेंद्र कुमार जाति से ब्राह्मण हैं। इसी तरह मुख्य विकास अधिकारी अखिलेश तिवारी, परियोजना निदेशक प्रदीप कुमार पांडेय, मनरेगा कमिश्नर उमेशचंद्र तिवारी, उप कृषि निदेशक राजीव झा, जिला पंचायत राज अधिकारी शशिकांत पांडेय, परियोजना अधिकारी नेडा राजीव कुमार मिश्रा, अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी आशुतोष पांडेय भी सजातीय हैं।
ज़िले में कुल पांच तहसीलें हैं जिनमें से तीन के एसडीएम ब्राह्मण हैं। बांसी तहसील में योगानंद पांडेय, शोहरतगढ़ तहसील में सुरेंद्र कुमार पांडेय और इटवा तहसील में रामसूरत पांडेय की तैनाती है। बाकी दो तहसीलों में पिछड़ी जाति के मजिस्ट्रेट ड्यूटी कर रहे हैं। वहीं लोक निर्माण विभाग के तीन खंडों में से दो तथा ड्रेनेज खंड में एक एग्जिक्यूटिव इंजीनियर ब्राह्मण जाति से हैं। यह मामला सिर्फ़ ब्राह्मण जाति के अफसरों के वर्चस्व से नहीं जुड़ा है। ज़िले में बाकी महत्वपूर्ण विभागों में भी सवर्ण जाति के ही अफसर लगाए गए हैं। जैसे कि बेसिक शिक्षा अधिकारी अजय कुमार सिंह, खादी ग्रामोद्योग अधिकारी महेंद्र सिंह और मुख्य पशु चिकित्साअधिकारी फणीश सिंह जाति से क्षत्रिय हैं।
सिर्फ इक्का-दुक्का विभागों में ही पिछड़ी जाति के अफसर तैनात हैं जबकि पूरे ज़िले में अल्पसंख्यक समुदाय के मात्र एक अधिकारी मोहम्मद रज़्ज़ाक हैं जोकि जिला उद्योग केंद्र में प्रबंधक हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश का सिद्धार्थनगर ज़िला अल्पसंख्यक बाहुल्य है। यहां मुसलमानों की अबादी 25 फीसदी से ज़्यादा है। इसमें पिछड़ों को भी जोड़ लिया जाए तो यह 60 प्रतिशत को पार कर जाता है। मगर भेदभाव का आलम यह है कि पूरे ज़िले को प्रथम श्रेणी का मुस्लिम अफसर तो दूर, एक मुसलमान थानाध्यक्ष तक नसीब नहीं है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक वर्ग विशेष के अफसरों के इस वर्चस्व का मुद्दा कई बार बैठकों में उठाया गया, जिसका नतीजा सिफर रहा। वजह यह थी कि विधानसभा अध्यक्ष ने इस असंतुलन को ठीक करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। क्षेत्रीय सांसद जगदम्बिका पाल भी इस मुद्दे पर एतराज़ कर चुके हैं। कपिलवस्तु पोस्ट से उन्होंने कहा है कि इस अराजकता के पीछे विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय हैं। उन्हें जिले के विकास की बजाए केवल अपने हितों की चिंता है।
दूसरी तरफ ज़िला कमेटी के तीन टॉप पदाधिकारियों में से एक ने कपिलवस्तु पोस्ट से हुई बातचीत में दावा किया है कि यहां सिर्फ एक खास नेता की चल रही है। अफसर उन्हीं की मर्जी से लाए या हटाए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर आगामी विधानसभा चुनाव में 2007 की भांति पूरा अल्पसंख्यक एक बार फिर बसपा के साथ खड़ा हो जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए।
9:28 PM
पाण्डेय बाबा के नाक में नकेल लगाकर ही छोडिये…बुढऊ बहुत शातिर हैं.
9:35 PM
ये ब्राह्मणवाद नहीं बल्कि जातिवाद हैं. ब्राह्मणवाद तो झूठ को सही के रूप में पेश करना और झूठी शान का दिखावा होता हैं….झूठे इतिहास, रेसिस्म आदि होता हैं.